शाम 4 बजते-बजते घर से घाट तक रौनक ही रौनक और रंग ही रंग थे. घर के लड़की-आदमी जो अब तक भूत-भंडारी बने हुए थे पीले-सजीले कुरतों में सामने आए.
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पटना: Chhath Ghat se Live: घड़ी की सुइयां हिल-मिल कर जो टाइम बता रही थीं वो दुपहरी बाद का 2 से 3 बजे का समय था. भगवान भुवन भास्कर पच्छिम की ओर बढ़ रहे थे.
गांव में यह वह समय था महिलाएं माहुरी-आलता लगा रही थीं.
ए दीदी, हमरो गोड़ (पैर) रंग देइँ कि मनुहार और छठ घाट पर बज रहे सुरीले गीत आपस में मिल जुल जा रहे थे. शारदा सिन्हा और अनुराधा पौड़वाल के सुर छठ की महिमा गा रहे थे और नए जुवान लड़के घाट सज़ा रहे थे. कुल मिलाकर हर कोई बिज़ी था. क्योंकि सबका अपना-अपना छठ था.
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दो-दो, तीन-तीन लड़के बाइक से लगातार घर से घाट, घाट से हाट( बाजार) और हाट से घर की दौड़ लगा रहे थे. उनके जिम्मे था कि पूजा में एक भी सामान कम न हो जाये.
दुआर से आवाज लगा देते थे, ए अम्मा देखि ला हो सब आ गइल? हां बाबू आ गईल का आश्वासन मिलते ही लड़के दूसरे तुरत-फुरत दूसरे काम में लग जाते, या फिर, अरे बाबू ई त नाही आइल कि टेर सुनते ही दोबारा हाट तक दौड़ लगा देते. घर की बिटिया-पतोहू चढ़ाए जाने वाले फल धुल रही थीं. एक ओर प्रसाद के पकवान बन गए थे तो घूघट में लुकी-छुपी कोई नई पतोहिया उनको करीने से दौरे में सज़ा रही थी.
यह जैसे कोई फिल्म सी चल रही थी और इसके बैकग्राउंड में एक जैसे सुर वाले गीत व्रती महिलाएं खुद ही गा रही थीं. ठेकुआ बनाते हुए जैसे-जैसे हाथ चलते थे,
चल छठ माई के दुअरिया, छठ मइया पूजाई, काच ही बांस के बाहगियां बहंगी लचकत जाए जैसे गीत भी अपनी धुन पकड़ते जाते थे.
शाम 4 बजते-बजते घर से घाट तक रौनक ही रौनक और रंग ही रंग थे. घर के लड़की-आदमी जो अब तक भूत-भंडारी बने हुए थे पीले-सजीले कुरतों में सामने आए.
ए अम्मा, लावा दौरिया द, ले चलीं.
उन्होंने फलों से भरे दौरे, सुपली, केले के घवद उठा लिए थे और उन्हें घाट तक पहुंचा रहे थे. कलश पर दीप जलाकर हाथों में थामें उनकी माताएं और बहनें आगे-आगे चल रही थीं. कार्तिक की शाम हल्की ठंड हो चली थी, हवा से बचाते हुए दीए को घाट तक पहुंचाना माताओं की ज़िम्मेदारी थी और उन्होंने इसे निभाया भी.
घाट पर पहुंचने पर ताल के तल से माटी निकाली गई और वेदी के पास रखकर उनमें चने चढ़ा दिए गए. हल्दी से वेदी को चारों ओर लीप दिया गया. छठी माता का ध्यान करते हुए उनके हाथ जोड़े, सिर नवाये गए और फिर अस्ताचल गामी सूर्य को नमन करते हुए माताएं-बहनें ताल में उतर गईं.
उनके हाथ में फलों और प्रसाद से भरी सुपली थी जिसके साथ वह सूर्य देव से घर-परिवार, पुत्र-पुत्री, समाज सबके बढ़ने का वरदान मांग रही थी. वह इस समय सूर्य देव को याद दिला रहीं थीं कि कैसे वह हरिश्चंद्र की पत्नी तारा के सहायक बनें, कैसे उन्होंने माता सीता को वनवास में सम्बल दिया. अक्षय पात्र देकर द्रौपदी की रक्षा की. जैसे सभी सतियों के सत्व और तप के सम्बल बनें, वैसे ही हमारे व्रत के भी सम्बल बनें.
घाट पर रहा उत्सव का माहौल
एक तरफ पूजा-व्रत का माहौल था तो वहीं दूसरी ओर बच्चों-बड़ों के बीच उत्सव का माहौल था. इनमें वे जवान और कामकाजी लड़के भी शामिल थे जो दिल्ली-नोएडा या पुणे-बेंगलुरु की मल्टीनेशनल कंपनियों में हैं. कोरोना के बाद Work From Home में वो घर पर थे. कुछ वापस लौट गए थे और कुछ ऐसे भी जो अब नई तलाश में हैं.
कुछ देर के बाद उनमें बातचीत शुरू हुई. और बताओ बे क्या हाल हैं से शुरू हुआ सिलसिला भाई, देखना यार, तुम्हारी कम्पनी में कोई जुगाड़ लगे तो बताना तक पहुंचा.
उधर घाट पर सबको सिंदूर तिलक लग रहा था. सूर्यदेव अब आकाश में नहीं थे, उनकी लालिमा कुछ बाकी थी. समय था सवा पांच. अखबार पढ़ने वाले बुजुर्ग बाबा ने कहा कि 5 बजकर 21 मिनट पर सूर्यास्त का समय है, तय हुआ कि 10 मिनट और जल में रहना है. 10 मिनट बाद अरघा दिया गया. इस दौरान नाक से केश के बीच तक व्रतियों का सिन्दूर चमक रहा था. कुछ लड़कियां जो शहर चली गईं हैं सिन्दूर लगाते हुए उन्होंने पहले ही निर्देश दे दिया, आँटी हमको छोटा ही तिलक लगाइएगा. यह निर्देश सुन कथित आँटी ने एक पल नई लड़कियों को देखा लेकिन फिर खुशी से उनके मन का तिलक लगा दिया.
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यह गोधूलि बेला थी. सूर्यदेव अस्त हो चुके थे. संध्या देवी ने अपना चांद-सितारों वाला आँचल पसार दिया. घाट से दौरा सुपली लिए लड़के लौट रहे थे, माताएं दीपक लिए आगे चल रही थीं. अब कल ब्रह्ममुहूर्त में दोबारा आना है. माताएं गीत गा रही थीं.
गंगा जमुनी जल धारा बाढ़े, बाढे हमरो परिवारवा, हे छठी मईया.