Chhath Parv Surya Pooja Story: छठी माता का पहला वर्णन सृष्टि के निर्माण से मिलता है. विधाता ब्रह्मा ने पांच भूतों (धरती, जल, अग्नि, वायु और आकाश) से सृष्टि का निर्माण कार्य किया. इन पांच भूतों की जो आंतरिक शक्ति है वह पंच शक्तियां है. धरती के लिए धैर्य, जल के लिए प्रवाह, अग्रि के लिए ताप, वायु के लिए वेग और आकाश के लिए जो शक्ति है उसे शून्य कहते हैं.
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पटनाः Chhath Parv Surya Pooja Story: लोक आस्था के कई रंगों से सजा छठ पर्व (Chhath Parv 2021) की छठा हर ओर बिखरी हुई है. नहाय-खाय और खरना के बाद अब तीसरे दिन शाम के अर्घ्य की तैयारी है. अस्ताचल गामी सूर्य जब पश्चिम दिशा में अपने लोक की ओर जा रहे होंगे तो व्रती महिलाएं और पुरुष उन्हें अर्घ्य देंगे.
छठ की बिखरी है छठा
छठ की इस छटा के बीच एक सवाल हमेशा बना रहता है. घाट पर जो लोकगीत गाए जा रहे होते हैं, वह छठी मईया के होते हैं. यानी किसी देवी के, और पूजा सूर्यदेव (Surya Dev) की होती है. इसके पीछे क्या कारण है. छठी माता कौन हैं. पुराणों में किन देवी छठ की मां कहा गया है.
दरअसल, ये कथा जितनी विचित्र है, उतनी ही रहस्यमय है. इसको समझ लेना ब्रह्मज्ञान पा लेने के बराबर है. इसे जाना तो जा सकता है, लेकिन इसके गूढ़ अर्थ और रहस्य नहीं समझे जा सकते हैं.
जानिए क्या है छठवीं शक्ति
छठी माता का पहला वर्णन सृष्टि के निर्माण से मिलता है. विधाता ब्रह्मा ने पांच भूतों (धरती, जल, अग्नि, वायु और आकाश) से सृष्टि का निर्माण कार्य किया. इन पांच भूतों की जो आंतरिक शक्ति है वह पंच शक्तियां है. धरती के लिए धैर्य, जल के लिए प्रवाह, अग्रि के लिए ताप, वायु के लिए वेग और आकाश के लिए जो शक्ति है उसे शून्य कहते हैं.
इन पांच भूतों और इनकी शक्तियों को धारण करने का सामर्थ्य कहीं नहीं था. इन्हें किस आधार पर रखकर इनका निर्माण किया जाए. तब सभी देवताओं की आंतरिक आवाज से एक अदृश्य शक्ति ज्योति के रूप में प्रकट हुई. शक्तियों में छठा स्थान होने के कारण इसे षष्ठी कहा गया है.
यही छठवीं शक्ति पांच ज्ञानेन्द्रियों के अलावा तर्कशक्ति के कारण विकसित होने वाली छठवीं इंद्री भी कहलती है. अक्सर महिलाओं में 6th Sense होने की जो बात कही जाती है. वह यही छठवीं इंद्री है. अदृश्य है, लेकिन है.
कौन हैं स्कंद माता और कात्यायनी देवी
पौराणिक कथाओं में देवी भागवत पुराण में कथा आती है कि असुरों के अत्याचारों से तंग आकर देवताओं ने परम सत्ता, परम शक्ति को पुकारा था. उस समय देवताओं की अंतरआत्मा से इसी छठवीं शक्ति का जन्म हुआ था. उन्हें इसे अंबा कहा और कन्या रूप में स्वीकार किया. देवी दुर्गा के नौ रूपों में यह पांचवीं शक्ति स्कंदमाता जो कि पार्वती हैं और कार्तिकेय की मां हैं और छठवीं शक्ति कात्यायनी यानी पुत्रों की रक्षक हैं. पांचवीं और छठवीं शक्ति एक ही हैं और एक ही में दो अलग-अलग स्वरूप हैं.
दुर्गा सप्तशती में है वर्णन
असुरों के अत्याचारों का विनाश करने के लिए शक्तिपुंज ने ऋषि कात्यायन के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया था, इसलिए कात्यायनी कहलाईं. जिनका वर्णन दुर्गा सप्तशती में दुर्गा, महिषासुर मर्दिनी, चंड-मुंड, रक्तबीज संहारक के रूप में किया गया है.
कार्तिकेय की जन्म कथा
कार्तिकेय के जन्म की भी एक कथा साथ ही उनके नाम की भी कथा रोचक है. सृष्टि के आरंभ में यही छह शक्तियां कन्या रूप में सूर्य लोक में रहती थीं. सूर्य देव का तेज भी परमसत्ता से ही है और उनकी सात किरणों में छह किरणें देवियां ही हैं. सातवीं किरण खुद उनके सारथी अरुण की है. तेज पुंज स्वरूप ये देवियां एक बार अपने लोक में विहार कर रही थीं. इसी दौरान उन्होंने देखा कि एक अग्नि पिंड जिसका ताप पृथ्वी सह नहीं पा रही है, वह सारे संसार को जलाए दे रहा है.
इस तरह पड़ा कार्तिकेय नाम
असल में यह अग्निपिंड महादेव शिव और पार्वती के पुत्र अंश का पिंड था. जब तक ये छह किरण कृत्तिकाएं पिंड तक पहुंच पातीं वह एक सरकंडे से लगकर छह भागों में टूट गया. कृत्तिकाओं के स्पर्श करते ही वहां छह बालक उत्पन्न हो गए और जब उन्हें एक साथ रखा गया तो वह छह मुख वाला एक बालक बन गया. इस तरह कार्तिकेय का जन्म का नाम षडानन है.
सूर्य लोक में रहती हैं षष्ठी देवी
सूर्य लोक की कृत्तिकाओं ने उनका लालन-पालन किया, इसलिए उन्हें कार्तिकेय कहा गया. यही नाम महादेव शिव और पार्वती ने उन्हें दिया. सूर्य लोक में निवास करने वाली और कार्तिकेय का पालन करने वाली यही छह कृत्तिका देवियां असल में एक छठ माता हैं.
लोक आस्था की देवियों में शीतला माता, शतावरी माता, शताक्षी माता, शाकुंभरी देवी सविता देवी और शकुंतला माता इन्हीं कृत्तिकाओं के स्वरूप हैं. यह देवी दुर्गा की परमशक्ति देवी ललिता का ही एक स्वरूप हैं. देवी ललिता का प्रसिद्ध एक मात्र प्राचीन-पौराणिक मंदिर असम के कामरूप क्षेत्र में है.
जगत का कर रही हैं कल्याण
छठ पर आज धूमधाम से इन्हीं छह कृत्तिकादेवियों की पूजा हो रही है. व्रती महिलाएं जब सूर्य देव दौरी-सुपली में रखा प्रसाद चढ़ा रही होती हैं और उन्हें अर्घ्य दे रही होती हैं तो असल में वह सूर्य लोक में रहने वाली इन्हीं कृत्तिकाओं को अर्घ्य दे रही होती हैं. ये कृत्तिकाएं सूर्यदेव की किरणों में विद्यमान हैं और सृष्टि के आरंभ से जगत का कल्याण कर रही हैं.