Muzaffarpur Eye Hospital: एमसीआई की गाइड लाइन के मुताबिक एक डॉक्टर दो शिफ्ट में 30 से ज्यादा ऑपरेशन नहीं कर सकता है. जिन लोगों की आंख का ऑपरेशन हुआ, उन्हें ऑपरेशन के बाद से ही परेशानी शुरू हो गयी.
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Muzaffarpur: 'आये थे आंखों में रोशनी की आस लेकर, मिला जिंदगी भर के लिए अंधेरा'. हम बात मुजफ्फरपुर आई हॉस्पिटल (Muzaffarpur Eye Hospital) में हुए आंखफोड़वा ऑपरेशन कांड की कर रहे हैं, जहां 22 नवंबर को ऐसी लापरवाही हुई, जिसने अब तक सामने आए मामलों के मुताबिक 21 लोगों की आंखों की रोशनी छीन ली. इन सभी की एक आंख निकाली जा रही है, ताकि इंफेक्शन आगे नहीं फैले. दूसरी तरफ जब मामले ने तूल पकड़ा, तो सरकार और स्वास्थ्य महकमे की आंख खुली और जांच शुरू हुई.
'अस्पताल स्तर पर हुई लापरवाही'
पटना से लेकर दिल्ली तक से जांच की टीम गठित हो गयी, जांच रिपोर्ट तलब की जा रही है, ताकि चूक कहां हुई है, इनका पता लगाया जा सके. ऐसी ही एक जांच टीम पटना से मुजफ्फरपुर पहुंची, जिसकी अगुवाई डॉ हरिश्चंद्र ओझा कर रहे थे, जिन्होंने पहले जिला के स्वास्थ्य पदाधिकारियों से बात की. फिर मौके का दौरा कर हर पहलू की पड़ताल की, जिसमें साफतौर पर कहा कि अस्पताल के स्तर पर लापरवाही हुई है.
मुजफ्फरपुर आई हॉस्पिटल एक ट्रस्ट से संचालित अस्पताल है, जो 1973 से उत्तर बिहार के लोगों को सेवाएं दे रहा है. इसका संचालन एक कमेटी की ओर से किया जाता है, जो सचिव के निर्देश पर काम करती है. अभी कमेटी के सचिव दिलीप जालान हैं. अस्पताल में हर साल निःशुल्क और पैसा लेकर हजारों लोगों की आंख का ऑपरेशन होता है. यहां मुजफ्फरपुर ही नहीं, उत्तर बिहार के विभिन्न जिलों से लोग आंख का ऑपरेशन करवाने के लिए आते हैं. अस्पताल लोगों को चिन्हित कर उनके आर्थिक स्थिति के अनुसार इलाज किया जाता है.
बीते 22 नवंबर को अस्पताल में कोई भी परमानेंट डॉक्टर मौजूद नहीं था. बाहर से एक डॉक्टर को बुलाया गया, जिसने 6 घंटे में 65 लोगों की आंख का ऑपरेशन कर दिया. अस्पताल के सहायक प्रशासक दीपक कुमारने बताया कि अस्पताल प्रबंधन के निर्देश पर बाहर से डॉक्टर को बुलाया गया. डॉक्टर ने ऑपरेशन करने में किसी तरह की परेशानी व्यक्त नहीं की और तीन-तीन घंटे की दो शिफ्ट में 65 मरीजो का आंख का ऑपरेशन कर दिया.
ऑपरेशन के बाद शुरू हुई परेशानी
यहां विशेष बात ये है कि एमसीआई ( MCI Guideline) की गाइड लाइन के मुताबिक एक डॉक्टर दो शिफ्ट में 30 से ज्यादा ऑपरेशन नहीं कर सकता है. जिन लोगों की आंख का ऑपरेशन हुआ, उन्हें ऑपरेशन के बाद से ही परेशानी शुरू हो गयी, जब वे लोग शिकायत लेकर आये, तो उनमें से कुछ लोगों अस्पताल प्रबंधन की ओर से आनन-फानन में इलाज के लिए पटना की एक निजी क्लीनिक में ले जाया गया, जहां डॉक्टर मरीजो की हालत देख कर कह दिया कि इन सभी लोगों की आंख निकालनी पड़ेगी, क्योकि इनकी रोशनी पूरी तरह से चली गयी है.
जब अस्पताल प्रबंधन को इसकी जानकारी हुई, तो मरीजों को पटना से वापस मुजफ्फरपुर लाया गया और एसकेएमसीएच मेडिकल कॉलेज से ले जाया गया, जहां मरीजों की स्थिति और संख्या को देख कर स्पेशल वार्ड खोला गया और सभी का ऑपरेशन कर आंख निकालने का फैसला लिया गया.
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21 लोगों की जा चुकी है आंख की रोशनी
अब तक 21 लोग ऐसे सामने आए हैं, जिनकी आंखों की रोशनी पूरी तरह से चली गयी है. इनमें से 19 की आंख ऑपरेशन करके निकाल दी गयी है. आंख के ऑपरेशन में जब गड़बड़ी की बात सामने आयी, तो मुजफ्फरपुर का स्वास्थ्य विभाग जागा. सिविल सर्जन ने एसीएमओ के नेतृत्व में कमेटी का गठन कर जांच शुरू करवायी. इस बीच 27 नवंबर तक हॉस्पिटल में मरीजों का ऑपरेशन होता रहा, लेकिन 27 को जब सिविल सर्जन ने जांच की, तो मौखिक रूप से अस्पताल में इलाज बंद करवा दिया. 30 नवंबर को अस्पताल से ऑपरेशन के रिकार्ड मांगा गया, जिसके बाद अस्पताल के बाहर इलाज बंद होने का नोटिस चिपका दिया गया.
इधर, हाल ने जिन मरीजों ने मुजफ्फरपुर आई हॉस्पिटल में आंख का ऑपरेशन और इलाज करवाया है, वो अस्पताल पहुंच रहे हैं, लेकिन वहां उन्हें इलाज नहीं मिल रहा है और न ही किसी तरह की व्यवस्था की गयी है, जिससे वो सही जगह पर इलाज कराने पहुंच सकें. आंख के मरीज दर दर की ठोकर खाने को मजबूर हैं. दिनभर मरीज इलाज की नीयत से अस्पताल आ रहे हैं, लेकिन उनको निराशा हाथ लग रही है.
सरकार को जांच रिपोर्ट सौंपेंगी टीम
गुरुवार को पटना से तीन सदस्यीय टीम मुजफ्फरपुर आई हॉस्पिटल पहुंची, जिसने ओटी और वार्ड से लेकर पानी टंकी तक की जांच की. इसके बाद अस्पताल के प्रशासक दीपक कुमार से पूरी जानकारी ली. अस्पताल के कर्मचारियों से ऑपरेशन रजिस्टर तलब किया. उसकी गहनता से जांच की और कहा कि अस्पताल में लापरवाही हुई है. हम सरकार को अपनी जांच रिपोर्ट सौपेंगे और जो भी हमने यहां पाया है, उसके बारे में बताएंगे.