इस गांव की कुंवारी कन्याएं भी रखती हैं 'जितिया व्रत', जानिए क्या है कारण
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इस गांव की कुंवारी कन्याएं भी रखती हैं 'जितिया व्रत', जानिए क्या है कारण

संतान की दीर्घायु, सुरक्षा एवं सुखी जीवन के लिए महिलाएं हर वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर जीवित्पुत्रिका व्रत रखती हैं. भारत के कई राज्यों में जीवित्पुत्रिका व्रत को जितिया व्रत या जिउतिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है.

इस गांव की कुंवारी कन्याएं भी रखती हैं 'जितिया व्रत(फाइल फोटो)

Khunti: संतान की दीर्घायु, सुरक्षा एवं सुखी जीवन के लिए महिलाएं हर वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर जीवित्पुत्रिका व्रत रखती हैं. भारत के कई राज्यों में जीवित्पुत्रिका व्रत को जितिया व्रत या जिउतिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं.लेकिन आप को जानकर हैरानी होगी कि खूंटी जिले के कर्रा प्रखंड के कुछ गांवों में कुंवारी लड़कियां भी जितिया पर्व पर उपवास रखती हैं. ये परंपरा कुछ ही गांवों में पाहन परिवारों के बीच है.

दो दिनों का होता है जितिया निर्जला व्रत

खूंटी के कर्रा थाना क्षेत्र में कई गांवों की कुंवारी कन्याएं भी जितिया व्रत करती हैं, हालांकि जितिया व्रत को ज्यादातर जगहों पर महिलाएं अपने बाल-बच्चों की सलामती के लिए रखती हैं. वहीं, खूंटी जिले के कर्रा प्रखंड के कुछ गांवों में कुंवारी लड़कियां भी जितिया पर्व पर उपवास रखती हैं. ये परंपरा कुछ ही गांवों में पाहन  परिवारों के बीच है. यहां परंपरा और प्रथा के अनुसार कुवांरी कन्याएं पूजा करती हैं और व्रत रखती हैं. 

श्रद्धा से मनाया जा रहा है पर्व 

ये व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है.  जीवित्पुत्रिका व्रत को जितिया या जिउतिया व्रत भी कहते हैं. यह व्रत सप्तमी से शुरू होकर नवमी तिथि तक चलता है. जितिया व्रत को महिलाएं संतान की लंबी आयु की कामना के लिए रखती हैं. वही, कन्याएं गांवों में इसे करमा पर्व के रुप में करती है. इसमें एक गुफू पहाड़टोली गांव में एक स्थान में पीपल पेड़ की डाली से पूजा की जाती है और गांव के कई जगहों में करमा की डाली लाकर कुंवारी कन्याएं पूजा करती है. इन गांवों में लड़कियां करमा पर्व के दिन नहीं बल्कि जितिया के दिन ही करमा पर्व मनाती हैं.

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कर्रा के पाहन परिवारों में है ये परंपरा 

ये परंपरा सदियों से इन पाहन परिवारों में चलती आ रही है, जिसमें गांव की कुंवारी कन्याएं भाई के लिए तथा सुख-समृद्धि के लिए पूजा करती है. इस प्रथा के बारे में पूछे जाने पर गांव के मुख्य पुजारी काण्डे पाहन ने बताया कि पाहन परिवारों की परंपरा में शामिल ये पर्व पूरी सादगी से मनाया जाता है और कन्याएं पूरी सादगी के साथ इस वर्त में रहती है. उन्होंने बताया कि पहले वो रंगुवा मुर्गे की बलि देकर पूजा की शुरुआत करते हैं. फिर करम की डाली पर लड़कियां पूजा करती है. इस पूजा की तैयारी के लिए आठ दिन पहले से जवा रखकर प्रतिदिन उसकी पूजा करते हुए उपवास रखा जाता है.

(इनपुट- ब्रजेश कुमार)

 

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