बिहार विधानसभा भवन ने लगाया 'शतक', जानिए इसका इतिहास और विशेषता
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बिहार विधानसभा भवन ने लगाया 'शतक', जानिए इसका इतिहास और विशेषता

1935 में पारित अधिनियम के तहत बिहार और उड़ीसा को अलग राज्य बनाया गया, तब बिहार में विधानमंडल के तहत दो सदनों, विधान परिषद और विधानसभा की व्यवस्था अस्तित्व में आई. 

बिहार विधानसभा भवन ने पूरे किए सौ साल. (फाइल फोटो)

Patna: बिहार विधानसभा (Bihar Vidhansabha) का भवन सौ साल का हो गया है, जिसको लेकर वार्षिक जलसों के कार्यक्रम जारी है. कोरोना काल होने की वजह से कुछ समय के लिए इसमें ब्रेक लगा था, लेकिन अब फिर से इसने रफ्तार पकड़ ली है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (President Ramnath Kovind) 20 अक्टूबर को पटना आयेंगे और 21 अक्टूबर को विधानसभा भवन के सौ साल पूरे होने पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल होंगे. प्रदेश की सबसे बड़ी पंचायत ने सौ साल के सफर में तमाम उतार चढ़ाव और बदलाव देखे हैं. इसका भवन इन सबको मूकदर्शक बन कर देखता रहा है, सभी यादों को अपने में संजोये है.

  1. बिहार विधानसभा भवन को 100 वर्ष पूरे
  2. 1920 में बना था बिहार विधानसभा का भवन

'बिहार-उड़ीसा विधान परिषद' के नाम से जाना जाता था 
वहीं, अगर विधानसभा सभा भवन की बात करें, तो 1921 में यानी सौ साल पहले 7 फरवरी को मौजूदा भवन में पहली बैठक हुई थी, तब इसे 'बिहार-उड़ीसा विधान परिषद' के नाम से जाना जाता था. देश की आजादी के लेकर राज्य के विभाजन समेत तमाम ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह विधानसभा रही है. इस दौरान तमाम ऐसे फैसले विधानसभा से पास हुए, जिनकी देश- दुनिया में चर्चा हुई. अगर पिछले डेढ़ दशक की बात करें, तो पंचायती राज में महिला आरक्षण, विशेष राज्य के दर्जे का प्रस्ताव और 'जल जीवन हरियाली' जैसे ऐसे कई फैसले हैं, जो विधानसभा से सर्व सम्मति से पास हुए.

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स्वदेशी उद्योग के लिए किया प्रेरित
अगर इतिहास की बात करें, तो इसी विधानसभा से राज्यपाल सत्येंद्र प्रसन्न सिन्हा ने लोगों को स्वदेशी उद्योगों को प्रोत्साहित करने की अपील की थी, जिसमें स्वदेशी चरखा को अपनाने की बात कही गयी थी, जो बाद में राष्ट्रपिता महत्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के जनांदोलन का हिस्सा बनी. राज्य के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह के कार्यकाल में जमींदारी उन्मूलन अधिनियम पास हुआ, जो आजाद भारत में सबसे अहम रहा. इसी को आधार बनाकर बाद में चकबंदी एक्ट लाया गया, जिसमें अधिकतम जमीन रखने की सीमा तय की गयी.

पहली बार 24 सदस्यों का हुआ था चुनाव
बिहार में विधायिका के इतिहास को देखें, तो साल 1911 महत्वपूर्ण रहा. इसी साल 12 दिसंबर को बिहार-उड़ीसा को बंगाल से अलग कर पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया. 22 मार्च 1912 को विधायी परिषद गठित हुई, जिसके 43 सदस्य थे. इनमें  24 सदस्यों का चुनाव हुआ था, जबकि शेष 19 सदस्यों को मनोनीत किया जाता था. अलग बिहार राज्य बनने के बाद विधान परिषद की पहली बैठक पटना कालेज के सभागार में 20 जनवरी 1913 को हुई थी.

1920 में बनकर तैयार हुआ भवन
परिषद का अपना कोई सचिवालय या सभागार नहीं था, इसलिए इसकी बैठक अलग-अलग जगहों पर होती रही. बंगाल से अलग होने के बाद परिषद के लिए सचिवालय की जरूरत थी. मौजूदा विधान मंडल भवन 1920 में बनकर तैयार हो गया था, तब वाल्टर माड सदन के अध्यक्ष थे. तब सदन के सदस्यों को  2404 लोग चुनते थे. बाद में इनकी संख्या तीन लाख से अधिक हो गई जिनमें यूरोपियन, जमींदार और विशेष निर्वाचन क्षेत्र के वोटर भी शामिल थे.

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243 है विधानसभा सदस्यों की संख्या
1935 में पारित अधिनियम के तहत बिहार और उड़ीसा को अलग राज्य बनाया गया, तब बिहार में विधानमंडल के तहत दो सदनों, विधान परिषद और विधानसभा की व्यवस्था अस्तित्व में आई. 1936 में उड़ीसा भी बिहार से अलग हो गया. इस लोकतांत्रिक संस्था के सतत विकास को इससे ही समझा जा सकता है. आज सात करोड़ से अधिक मतदाता विधानसभा के 243 सदस्यों को चुनते हैं. झारखंड के अलग होने के पहले बिहार विधानसभा के सदस्यों की संख्या 324 थी, जो विभाजन के बाद 243 रह गयी.

खास विशेषता
मौजूदा विधानसभा भवन के आर्किटेक्ट एएम मिलवुड थे. इतालवी रेनेसां शैली में बनी यह इमारत कई मायने में बेमिसाल है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने विधानसभा भवन का विस्तार किया, जहां आज विधानमंडल के संयुक्त अधिवेशन की बैठक होती है, उसे सेंट्रल हॉल का नाम दिया गया है. इस इमारत में समानुपातिक गणितीय संतुलन के साथ ही सादगी व भव्यता का समन्वय है. अर्द्ध वृताकार मेहराब व गोलाकार स्तंभ इसकी खास विशेषता है, जो इसे रोमन शैली से प्रभावित है.

विधानसभा का सभा कक्ष आयताकार ब्रिटिश पार्लियामेंट से इतर रोमन एम्फीथियेटर की तर्ज पर अर्द्ध गोलाकार शक्ल में बना है. मूल सभा कक्ष की आंतरिक संरचना साठ फीट लंबी व पचास फीट चौड़ी है, जिसका विस्तार भवन की दोनों मंजिलों में है. विधानसभा भवन के अगले हिस्से पर जो प्लास्टर किया गया है, उस पर एक निश्चित अंतराल पर कट मार्क बनाया गया है, जो इसकी खूबसूरती को बढ़ाता है. वास्तुविद इसे इंडो सारसेनिक पद्धति का उदाहरण मानते हैं.

किसी सदस्य का नहीं होता मनोनयन
प्रेस प्रतिनिधि के साथ-साथ दर्शकों के लिए ऊपरी मंजिल में गैलरी की व्यवस्था है. 1952 में पहले विधानसभा कार्यकाल में 331 सदस्य सभाकक्ष में बैठा करते थे. 1977 में जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में विधानसभा सदस्यों की संख्या 324 हो गयी. एक सदस्य पहले की तरह मनोनीत हो रहा था. साल 2000 में बिहार का विभाजन होकर झारखंड बना, तो विधानसभा के 324 से घटकर 243 सदस्य रह गये. अब यहां किसी सदस्य का मनोनयन नहीं होता है. सभी 243 सदस्य चुन कर आते हैं.

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विधानसभा के अगले हिस्से की लंबाई 230 फीट है, जबकि विधानमंडल की लंबाई 507 फीट है. वहीं सभा की चौड़ाई 125 फीट है. विस्तार के बाद बने परिसर में तीन हाल हैं. इसके मध्य भाग में 12 कमरे हैं. विधानसभा अध्यक्ष के कार्यालय कक्ष की लंबाई-चौड़ाई 18 गुणे 20.9 फीट है. सबसे बड़ा कक्ष मुख्यमंत्री के लिए है, जिसकी लंबाई व चौड़ाई 18 गुणे 30 फीट है. नेता प्रतिपक्ष के लिए पहले तल्ला पर कक्ष बना है, जिसकी लंबाई-चौड़ाई 18 गुणे 20 फीट है. सभा सचिव व संसदीय कार्य मंत्री के कार्यालय कक्ष की लंबाई-चौड़ाई भी 18 गुणे 20 फीट है. 

बिहार देश का पहला राज्य रहा, जिसने देश में पहली बार पंचायती राज में महिला आरक्षण की व्यवस्था की, जिसे बाद में देश के कई राज्यों ने अपनाया और महिलाओं को पंचायती राज व्यवस्था में पचास फीसदी का आरक्षण दिया. महिलाओं को पंचायतों में आरक्षण का देशव्यापी बदलाव देखने को मिल रहा है. 

     विधानसभा से पारित महत्वपूर्ण फैसले:

  • 1947 में पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में बिहार राज्य वास भूमि अधिनियम बना.
  • 2006 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नेतृत्व में बिहार पंचायती राज अधिनियम 2006 बना.
  • 2016 में शराबबंदी का कानून विधानसभा से पास करके बनाया गया.
  • 2019 में जल जीवन हरियाली अभियान को विधानसभा में चर्चा के बाद शुरू किया गया.
  • बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का प्रस्ताव विधानसभा से पास हुआ.
  • बिहार में सीएए लागू नहीं होगा, इसका प्रस्ताव सर्व सम्मति से पास हुआ.
  • सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 33 फीसदी का आरक्षण देने का प्रस्ताव पास हुआ.
  • बिहार लोक सेवाओं का अधिकार अधिनियम व बिहार लोक शिकायत निवारण अधिकार अधिनियम पास हुआ.

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