बिहार का इकलौता बीपी सिन्हा राजकीय शारीरिक शिक्षण महाविद्यालय पिछले 16 सालों से बंद है. ये महाविद्यालय पहले राजकीय स्वास्थ्य और शारीरिक शिक्षण महाविद्यालय कहलाता था. लेकिन नाम और सरकार बदलने से इस महाविद्यालय की किस्मत नहीं बदली.
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पटना: बिहार का इकलौता बीपी सिन्हा राजकीय शारीरिक शिक्षण महाविद्यालय पिछले 16 सालों से बंद है. ये महाविद्यालय पहले राजकीय स्वास्थ्य और शारीरिक शिक्षण महाविद्यालय कहलाता था. लेकिन नाम और सरकार बदलने से इस महाविद्यालय की किस्मत नहीं बदली. शारीरिक शिक्षण महाविद्यालय एक बार जब बंद हुआ तो फिर सरकार बदलने के बावजूद इसे चालू करने की कोई कोशिश नहीं की गई.
नतीजतन बिहार के स्कूलों में फिजिकल टीचर की भी भारी कमी हो गई. इस कॉलेज का नाम बदलकर बीपी सिन्हा राजकीय शारीरिक शिक्षण महाविद्यालय कर दिया, लेकिन नाम बदलने के बावजूद इस कॉलेज की किस्मत नहीं बदली. वहीं, आज बिहार के 70 हजार से अधिक सरकारी स्कूलों में फिजिकल टीचर की कमी हो गई है.
एक बार अगर फिजिकल टीचर रिटायर हुए तो उनकी जगह लेने के लिए कोई दूसरा शिक्षक नहीं आया. वहीं, पटना के मिलर हाईस्कूल की भी यही कहानी है. तीन साल से यहां फिजिकल टीचर नहीं हैं.
दरअसल, संयुक्त बिहार के समय यानि साल 2000 तक शारीरिक शिक्षण महाविद्यालय एक मात्र कॉलेज था, जहां फिजिकल टीचर बनने के लिए बिहार और झारखंड के अभ्यर्थियों की लंबी लाइन लगती थी. इसकी स्थापना साल 1951 में हुई थी. लेकिन साल 2004 में ये फिजिकल कॉलेज बंद हो गया.
बता दें कि इस महाविद्यालय में चलाए जाने वाले कोर्स की परीक्षा का जिम्मा बिहार विद्यालय परीक्षा समिति (BSEB) के पास था, लेकिन साल 1995 में नियम बदलने के बाद फिजिकल कॉलेज की किस्मत बिगड़नी शुरू हो गई. नियमों के मुताबिक, स्नातक की परीक्षा कराने की जिम्मेदार यूनिवर्सिटी की होती है.
केन्द्र ने बिहार सरकार को नियमों का हवाला देकर फिजिकल कॉलेज को किसी यूनिवर्सिटी से कराने को कहा, लेकिन बिहार सरकार ने इस पर ठोस पहल नहीं की और ये कॉलेज साल 2004 में बंद हो गया. ऐसे में सवाल ये होता है कि इस कॉलेज के बंद होने से किसका नुकसान हुआ.
नियमों के मुताबिक, हर विद्यालय में एक फिजिकल टीचर की जरूरत होती है. लेकिन महाविद्यालय बंद होने से विद्यालयों को फिजिकल टीचर मिलना बंद हो गया. अब जो अभ्यर्थी फिजिकल टीचर बनना चाहते हैं. वो लाख दो लाख दूसरे राज्यों में खर्च कर डिग्री लेते हैं.
इस कॉलेज में सीपीएड यानि सर्टिफिकेट इन फिजिकल एजुकेशन और डीपीएड यानि डिप्लोमा इन फिजिकल एजुकेशन की पढ़ाई होती थी. सीपीएड में नामांकन के लिए शैक्षणिक योग्यता पहले मैट्रिक की होती थी. जिसे बदलकर फिर इंटर कर दिया गया. इसी तरह डीपीएड में नामांकन के लिए शैक्षणिक योग्यता स्नातक थी. सीपीएड के डिग्री धारी छात्र मिडिल जबकि डीपीएड डिग्री धारी छात्र हाईस्कूल में बहाल होते थे।दोनों कोर्स को मिलाकर तीन सौ सीट थी।
फिजिकल टीचर बंद होने की जानकारी मौजूदा युवा, कला और संस्कृति मंत्री प्रमोद कुमार को भी है. प्रमोद कुमार मानते हैं कि फिजिकल टीचर स्कूलों को नहीं मिल रहे हैं. प्रमोद कुमार के मुताबिक, पीपी यानि प्राइवेट पब्लिक मोड पर इस फिजिकल कॉलेज को दोबारा शुरू किया जा सकता है.
पिछले सोलह साल में इस कॉलेज का नाम बदल दिया गया, सरकार बदल गई लेकिन नहीं बदली तो इस महाविद्यालय की किस्मत. अगर ये कॉलेज दोबारा शुरू हो जाए तो बिहार में फिजिकल टीचर की कमी भी दूर होगी और युवाओं को रोजगार भी मिलेगा.