Bihar: 19 साल से निर्माणाधीन पुल जब नहीं हुआ पूरा, ग्रामीणों ने चंदा इकट्ठा कर बना ली बांस की चचरी
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Bihar: 19 साल से निर्माणाधीन पुल जब नहीं हुआ पूरा, ग्रामीणों ने चंदा इकट्ठा कर बना ली बांस की चचरी

हर चुनाव में मुद्दा बनने के बावजूद इस पुल के न बनने से तकरीबन एक दर्जन गांव के लोगों को काको प्रखंड मुख्यालय तक जाने के लिए तीन किलोमीटर की दूरी के बदले सात से आठ किलोमीटर से ज़्यादा का सफर तय करना पड़ता है.

Bihar: 19 साल से निर्माणाधीन पुल जब नहीं हुआ पूरा, ग्रामीणों ने चंदा इकट्ठा कर बना ली बांस की चचरी.

Jehanabad: बिहार में भले ही विकास के लाख दावे किये जाते हैं लेकिन हम आपको आज एक ऐसे पुल के बारे में बता रहे हैं जो पिछले 19 सालों से बन रहा है. अभी तक निर्माणाधीन है. इस पुल के निर्माण की आस में एक पीढ़ी जवान हो गई. शायद सुनने में यह कुछ अजीब सा लगे परंतु यह हकीकत है. 

हर चुनाव में मुद्दा बनने के बावजूद इस पुल के न बनने से तकरीबन एक दर्जन गांव के लोगों को काको प्रखंड मुख्यालय तक जाने के लिए तीन किलोमीटर की दूरी के बदले सात से आठ किलोमीटर से ज़्यादा का सफर तय करना पड़ता है.

जहानाबाद के काको प्रखंड मुख्यालय के कोठिया गांव के निकट कडडुआ नदी पर निर्माणाधीन पुल जो पार कोठिया, जहरबीघा, देवरथ गांव सहित तकरीबन एक दर्जन गांव को जोड़ता है. वर्ष 2002-03 से बन रहे इस पुल के सभी पिलर तो बन कर तैयार है, परंतु पुल का पूरा निर्माण न होना ग्रामीण क्षेत्र के विकास के दावे की हकीकत बयां कर रहा है. 

वैसे आस-पास के ग्रामीणों ने चंदे से पुल के सभी पाया पर बांस की चचरी रख कर खतरनाक ही सही चलने फिरने के काबिल बना दिया है. ग्रामीणों ने बताया कि ठेकेदारों और बिचौलिए के आपसी झगड़े में इसके सभी पिलर तो बन गए पर यह पुल पूरा नहीं हो पाया. 

सभी चुनाव में चुनावी मुद्दा बनने वाले इस पुल के निर्माण को लेकर सभी नेता आश्वासन तो देते हैं. परंतु चुनाव के बाद नेताओं का आश्वासन कोरा ही साबित होता है. ग्रामीणों ने बताया कि बरसात के दिनों में यह पूरा इलाका टापू में बदल जाता है और लोग ना चाहते हुए भी गांव में कैद हो जाते हैं. ऐसे में नदी के दूसरी ओर स्कूल रहने की वजह से बच्चे की पढ़ाई भी बाधित हो जाती है.

इधर, डीएम नवीन कुमार ने बताया कि यह बात संज्ञान में आया है कि कई साल पहले पुल निर्माण कराया जाना था जिस पर स्लैब कास्टिंग नही हो पाया है. इसे आरडब्लूडी (RWD) के माध्यम से डीपीआर (DPR) करा दिया गया है और जल्द ही लोगों को समस्या से मुक्ति मिल जाएगी.

भले ही सरकार ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में विकास की बात कहती है, लेकिन हकीकत इससे कोसों दूर है. यह तस्वीर को देख कर सहज अंदाज लगाया जा सकता है कि पुल पर मात्र स्लैब न होने के कारण पिछले दो दशक से ग्रामीणों को नदी पार करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.