Lok Sabha Election 2024: महर्षि विश्वामित्र की तपोभूमि मानी जाने वाली बक्सर सीट पर इस बार मुकाबला दिलचस्प है. दोनों गठबंधनों ने अपने पुराने महारथियों को आराम देकर नए योद्धाओं को चुनावी अखाड़े में उतारा है. हालांकि इन दोनों योद्धाओं को 'अपनों' ने परेशानी बढ़ा दी है.
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बक्सर: Lok Sabha Election 2024: महर्षि विश्वामित्र की तपोभूमि मानी जाने वाली बक्सर सीट पर इस बार मुकाबला दिलचस्प है. दोनों गठबंधनों ने अपने पुराने महारथियों को आराम देकर नए योद्धाओं को चुनावी अखाड़े में उतारा है. हालांकि इन दोनों योद्धाओं को 'अपनों' ने परेशानी बढ़ा दी है. यूपी से सटे बक्सर सीट पर बसपा भी मजबूत उम्मीदवार उतारकर चुनावी मुकाबले को रोचक बना दिया है. ऐतिहासिक और पौराणिक धरती बक्सर पर जीत को लेकर सभी दलों ने अपनी ताकत झोंक दी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी यहां चुनावी रैली कर चुके हैं, लेकिन बाहरी प्रत्याशी को लेकर लोगों की नाराजगी दूर नहीं हुई है.
पूर्वांचल के द्वार कहे जाने वाले बक्सर में यूपी की राजनीति का भी असर दिखता रहा है. पिछले दो चुनाव से भाजपा के अश्विनी चौबे और राजद के जगदानंद सिंह के बीच मुकाबला होता रहा है, जिसमें चौबे विजयी होते रहे. इस बार दोनों गठबंधनों ने अपने प्रत्याशियों को बदल दिया. राजद ने जगदानन्द सिंह के पुत्र और पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह को तो भाजपा ने गोपालगंज के मिथिलेश तिवारी को टिकट थमा दिया. हालांकि दिलचस्प बात ये है कि इस सीट से ब्राह्मण समाज से आने वाले आईपीएस आनंद मिश्रा चुनाव लड़ना चाहते थे जिसके लिए उन्होंने वीआरएस भी लिया था लेकिन उन्हें भाजपा का टिकट नहीं मिला. ऐसे में निर्दलीय चुनावी मैदान में उतर कर उन्होंने मिथिलेश तिवारी के लिए परेशानियां बढ़ा दी हैं. इधर, ददन पहलवान के निर्दलीय चुनावी अखाड़े में उतर जाने से राजद के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं. ददन के आने से राजद के वोट बैंक में टूट का खतरा बढ़ गया है.
बसपा ने बिहार प्रभारी अनिल कुमार को चुनावी मैदान में उतारकर सभी दलों के राजनीतिक समीकरण को बिगाड़ दिया है. जनतांत्रिक विकास पार्टी के जरिये बक्सर में अपनी खास पहचान बना चुके अनिल कुमार पिछले कई सालों से इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं. बसपा की प्रमुख मायावती भी यहां आकर सर्वजन सुखाय का संदेश दे चुकी हैं. पिछले चुनाव में भाजपा को करीब 48 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि राजद को 36 प्रतिशत से संतोष करना पड़ा था. उस चुनाव में भी बसपा को आठ प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले थे.
वैसे, एक जून को इस क्षेत्र में होने वाले मतदान को लेकर मतदाता बहुत कुछ खुलकर नहीं बोल रहे हैं, ऐसे में तस्वीर बहुत साफ नहीं दिखती है. दिनारा विधानसभा क्षेत्र के कोइरिया गांव में पेड़ के नीचे बैठे चुनावी चर्चा में मशगूल लोगों की नाराजगी स्थानीय उम्मीदवार नहीं देने को लेकर भाजपा से है. कोइरिया गांव के दिनेश कुमार कहते हैं कि कब तक बाहरी उम्मीदवारों के सहारे भाजपा को ढोते रहें. आखिर, आनन्द मिश्रा को टिकट मिलता तो जीत सुनिश्चित थी. उन्होंने कहा कि मोदी जी के चेहरे पर कब तक लोग सांसद बनते रहेंगे.
इधर, जगदीशपुर गांव के लोग साफ तो कुछ नहीं बताते हैं, लेकिन वहां कुछ लोग राजद के तो कुछ भाजपा के समर्थन में नजर आए. कई गांव में बसपा के भी समर्थक नजर आए. दिनारा विधानसभा के जमरोढ गांव निवासी मदन कुशवाहा ने साफ कहा कि अब बदलाव जरूरी है. उन्होंने कहा कि पार्टी नहीं इस चुनाव में प्रत्याशी देखकर लोग वोट देंगे. आखिर स्थानीय स्तर पर हमें सांसद ही मदद करेंगे.
ब्राह्मण बहुल इस लोकसभा मे ब्रह्मपुर, डुमरांव, बक्सर, राजपुर के अलावा कैमूर जिले का रामगढ़ और रोहतास जिले का दिनारा विधानसभा क्षेत्र शामिल है. बहरहाल, बक्सर लोकसभा क्षेत्र में इस चुनाव में दोनों गठबंधन के प्रत्याशी अपनों से मुश्किलों में घिरे हैं. माना जा रहा है कि जो भी प्रत्याशी अपने जातीय समीकरण और अपनी पार्टी के वोटबैंक को संभाल लेगा, उसकी राह आसान हो जाएगी. यहां के मतदाता एक जून को मतदान करेंगे, लेकिन परिणाम के लिए चार जून तक इंतजार करना पड़ेगा.
इनपुट- आईएएनएस के साथ
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