Begusarai News: कहते है की कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती है और जीतते वही है जो जीत के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देते है. कुछ ऐसा ही उदाहरण पेश कर रही है. बेगूसराय के बखरी प्रखंड के बागवान गांव की रहने वाली उषा कुमारी.
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बेगूसराय: Begusarai News: कहते है की कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती है और जीतते वही है जो जीत के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देते है. कुछ ऐसा ही उदाहरण पेश कर रही है. बेगूसराय के बखरी प्रखंड के बागवान गांव की रहने वाली उषा कुमारी. पिछड़े और सुदूर गावं की रहने वाली उषा आज किसी परिचय का मुहताज नहीं है. उषा कुमारी उन महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है. जिन्होंने कभी घर की दहलीज से बाहर कदम नहीं रखा या फिर अपने आप को पुरुषों से कम और सामाजिक ताना-बाना में सिमट कर रह गई.
ऐसे ही माहौल मे रहने वाली उषा देवी ने कुछ कर गुजरने की ठानी तो फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. जिसका परिणाम है कि आज वो सफल गृहणी से सफल व्यवसायी बन चुकी हैं. लॉक डाउन के दौरान आर्थिक तंगी से जूझ रहे परिवार को आगे बढ़ाने के लिए उषा देवी ने मशरूम उत्पादन का काम शुरू किया. इसके पीछे का उद्देश्य घर की आर्थिक तंगी को दूर करना और लोगों को मशरूम में होने वाले रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना था.
शुरूआती दौर में गावं के लोगों के लिए यह सब कुछ अजीब था. लेकिन धीरे-धीरे गांव के पुरुष और महिलाओं के लिए वो प्रेरणा का स्रोत बन गई. जिसका परिणाम हुआ कि गाँव की महिलाएं ना सिर्फ स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बन पाई. बल्कि उनकी सोच में भी परिवर्तन आया. जानकारी के मुताबिक आज इस गांव में कई दर्जन महिलाएं मशरूम की खेती कर मिसाल पेश कर रही है. इस संबंध में उषा देवी ने बताया कि देश में लॉकडाउन के दौरान उन्होंने घर की आर्थिक तंगी से जूझ रहे परिवार को उबाड़ने और करोना से लड़ने की क्षमता देने वाली मशरूम की उपयोगिता, उनके लिए प्रेरणा बनी. जिसके बाद मैंने इसके उत्पादन में पूरी ताकत झोंक दिया. आज उनके द्वारा उत्पादित मशरूम न सिर्फ आसपास के इलाके बल्कि बेगूसराय और पटना जिला तक भेजा जाता है.
उषा देवी ने बताया कि मशरूम के उत्पादन के साथ-साथ वह गांव की महिलाओं को भी स्वावलंबी बनाने का काम करने लगी, जिसका परिणाम है कि आज गांव की दर्जनों महिलाएं मशरूम का उत्पादन कर रही हैं. उषा देवी ने बताया कि आज वो महीने में कम से कम बीस हजार रुपये कुछ घंटों की मेहनत से गांव में बैठे कमा लेती है. उन्होंने बताया कि इसके लिए खेत की जरुरत नहीं होती और महिला घर बैठे इस काम को कर सकती है. जिससे वो स्वावलंबी बन सकती हैं.
उन्होंने आगे बताया कि आज समाज के लोग उनको बढ़ावा दे रहे है. उषा का कहना है कि इसके लिए उन्हें कृषि विभाग से बहुत सहयोग मिला. सबसे पहले उसने एक किलो बीज से इसकी शुरुआत की थी. वह जब लोगों की मदद करती हैं और अपना आर्थिक उपार्जन करती है. तो उन्हें बहुत खुशी मिलती है. वहीं इस संबंध में ग्रामीण महिला इंदु देवी ने बताया कि उषा कुमारी ने गांव की महिलाओं के बीच विश्वास पैदा किया और उन्हें स्वावलंबी बनाने का काम किया है.
इंदु देवी ने आगे बताया कि इंदु आज एक जाना पहचाना नाम है. ना सिर्फ इलाके में बल्कि मीडिया में छाई रहती है. उषा की बदौलत गांव की महिलाओं ने किसान पाठशाला के माध्यम से मशरूम उत्पादन की ट्रेनिंग ली है. जिससे गांव की महिलाएं स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बन पा रही हैं. इस संबंध मे ग्रामीण श्याम कुमार बताते हैं कि उषा कुमारी गावं की पढ़ी लिखी महिला है. उन्होंने मशरूम के उत्पादन से गाँव की तकदीर बदल दिया. उषा की बदौलत दूर-दूर से न सिर्फ लोग मशरूम खरीदने आते हैं, बल्कि उषा से ट्रेनिंग लेने भी आते हैं. उषा गांव की मिसाल बनी हुई है. हम लोगों ने उषा की बदोलत ही मशरूम को जाना.
इस संबंध में पति अमित कुमार ने बताया कि 2020 में जब देश में लॉकडाउन लगा तो बहुत लोग का रोजगार चला गया. उसी समय उसके दिमाग में कुछ कर गुजरने की ठानी. चूंकि उनका समाज पर्दा प्रथा से ग्रसित था. इसलिए उन्होंने घर बैठे ही कुछ करने को सोचा, ताकि घर के जीविकोपार्जन हो सके. जिसके बाद उषा ने मशरूम उत्पादन की ट्रेनिंग लेकर इस काम में लग गई. जिसका परिणाम है कि आज दूर-दूर के लोग उनके गांव में आकर प्रेरित होते है और अपना काम शुरू करते है.
पति ने बताया कि यह सीजनल काम है, लेकिन 6 महीने में 30 से 40 हजार का महीना कमा लेते है. कुल मिलाकर मशरूम का उत्पादन कर उषा ना सिर्फ इलाके के लोगों के स्वाद को बढ़ाने का काम कर रही है, बल्कि लाखों रूपये कमा कर एक साधारण गृहणी से सफल व्यवसायी बन गई है. इतना ही नहीं महिलाओं को आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनाने की उषा की कोशिश आज रंग लाने लगी है.
इनपुट- जीतेन्द्र चौधरी