ऐसा नहीं है कि बारिश नहीं होने के कारण किसानों के सामने इस तरह की परिस्थिति उत्पन्न हुई है, बल्कि बक्सर के नहरों में पानी का नहीं होना भी किसानों के लिए किसी बड़ी आपदा से कम नहीं है.
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रवि मिश्रा/बक्सर : एक तरफ जहां आधा बिहार बाढ़ की तबाही से पानी-पानी है वहीं, कुछ इलाकों में बारिश की कमी के कारण सूखे जैसे हालात उत्पन्न हो गए हैं. बक्सर में भी अच्छी बारिश नहीं होने के कारण किसानों के सामने कई परेशानियां खड़ी हो गई हैं. किसान दमकल मशीन चलाकर पटवन कर रहे हैं. किसी तरह धान के बिचड़े की बुआई की जा रही है. समय रहते अच्छी बारिश नहीं होने और नहर में पानी नहीं आने के कारण किसान काफी मायूस हैं. सरकारी स्तर पर भी किसानों को कोई खास लाभ नहीं मिल पा रहा है. मौसम और सरकारी उदासीनता की दोहरी मार झेल रहे बक्सर के किसान अब अपनी किस्मत को कोस रहे हैं.
ऐसा नहीं है कि बारिश नहीं होने के कारण किसानों के सामने इस तरह की परिस्थिति उत्पन्न हुई है, बल्कि बक्सर के नहरों में पानी का नहीं होना भी किसानों के लिए किसी बड़ी आपदा से कम नहीं है. किसान बताते हैं कि नहरों में कभी पानी आता ही नहीं है. यदा-कदा कभी पानी आ भी गया तो दबंगों द्वारा पानी को रोककर अपने खेतों में ले जाया जाता है, जिसके कारण अन्य किसानों के खेतों तक पानी नहीं पहुंच पाता है. ऐसे में किसान पटवन के लिए हजारों रुपए खर्च कर तेल जलाते हैं और फिर दमकल के जरिए पटवन कर किसी तरह अपने खेतों में फसल उगाते हैं.
अन्नदाता कहे जाने वाले किसान अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहे हैं. सरकारी महकमा खामोश बैठा है. ऊपर से मौसम की मार ने इनके दर्द पर नमक छिड़कने का काम किया है. जी तोड़ मेहनत और ज्यादा लागत लगने के बाद जब फसल अच्छी नहीं होती है तो किसानों के सामने परेशानी खड़ी होती है. सबसे ज्यादा समस्या तब होती है जब फसल होने के बाद उन्हें उनकी फसल का उचित कीमत नहीं मिल पाता है. सरकारी कुव्यवस्था के कारण दलाल किसानों पर हावी हो जाते हैं. ऐसे में छोटे-मोटे किसानों के सामने खेती के लिए कर्ज़ लिए हुए रुपए लौटाने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
अब सवाल है कि एक तरफ जहां सरकार खुद को किसानों का हमदर्द बताती है वही ग्राउंड जीरो पर किसान मौसम और सरकारी उदासीनता का दंश झेलने को मजबूर हैं. किसान बताते हैं कि कृषि विभाग से मिलने वाले खाद, बीज और अनुदान की राशि भी किसानों तक नहीं पहुंच पाती है और कृषि कार्यालय के चक्कर लगाते लगाते उनकी उम्मीद टूट जाती है.
कृषि प्रधान देश कहे जानेवाले वाले भारत के किसानों की यह तस्वीर कोई नहीं है, लेकिन लेकिन सवाल यह है कि क्या सरकारों द्वारा केवल किसानों के हितों की सिर्फ बात की जाएगी या फिर उनके हित में जमीन पर उतर कर कोई ठोस कदम भी उठाया जाएगा, ताकि बदहाली के आलम से किसान ऊपर उठ सकें.
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