वर्षावास की तैयारी में जुटे बौद्ध भिक्षु, 3 जुलाई से शुरू होगा पवित्र अनुष्ठान
बिहार में बौद्ध धर्म के मानने वालों का पवित्र स्थल बोधगया के महाबोधि मंदिर के भिक्षु इस बार तीन महीने के लिए वर्षावास में जा रहे हैं. इस दौरान वह एक जगह रहकर ध्यान, पूजा और अर्चना करेंगे. वह कहीं भी विचरण नहीं करेंगे. बौद्ध भिक्षुओं का त्रैमासिक वर्षावास अनुष्ठान 3 जुलाई से शुरू हो रहा है.
गया: बिहार में बौद्ध धर्म के मानने वालों का पवित्र स्थल बोधगया के महाबोधि मंदिर के भिक्षु इस बार तीन महीने के लिए वर्षावास में जा रहे हैं. इस दौरान वह एक जगह रहकर ध्यान, पूजा और अर्चना करेंगे. वह कहीं भी विचरण नहीं करेंगे. बौद्ध भिक्षुओं का त्रैमासिक वर्षावास अनुष्ठान 3 जुलाई से शुरू हो रहा है. पवित्र अनुष्ठान के तैयारी में बौद्ध भिक्षु जुट गए हैं.
महाबोधि मंदिर और यहां रह रहे विभिन्न देश व राज्यों के बौद्ध भिक्षु विशेष वर्षावास अनुष्ठान पर तीन जुलाई को चले जायेंगे. वहीं अधिक मास होने की वजह से थाईलैंड व अन्य देशों के बौद्ध भिक्षु अगले माह के पूर्णिमा से अनुष्ठान पर जाएंगे. अगले तीन माह तक बौद्ध भिक्षु वर्षावास में व्यतीत करेंगे. वर्षावास काल व्यतीत करने वाले भिक्षु एक ही स्थान पर रहकर ध्यान-साधना और पूजा-अर्चना करेंगे. वे विचरण नहीं करेंगे. समस्त जीवों के कल्याण की कामना का संकल्प लेकर ये बौद्ध भिक्षु वर्षावास में रहेंगे.
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एक स्थान पर रहकर बुद्ध के करुणा, शील और त्याग के सिद्धांतों का पूर्ण रूपेण पालन करना होता है. अपना सारा समय लोगों की भलाई और तपस्या में लगाना होता है. विचरण न करने के पीछे तर्क यह है कि वर्षा ऋतु में कई तरह के छोटे-छोटे जीव जन्म लेते हैं. जो विचरण करने के कारण पैर से दब सकते हैं. इससे जीव की हत्या होती है. इससे बचने के लिए तीन माह वर्षावास व्यतीत किया जाता है.
कई देशों के बौद्ध मठों से बौद्ध भिक्षु यहां वर्षावास व्यतीत करने आते हैं. बौद्ध भिक्षु भन्ते प्रियपाल बताते हैं कि बौद्धधर्म में वर्षावास का बड़ा ही महत्व है. इसका प्रारम्भ बुद्धत्व की प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध ने किया था. बुद्ध ने कहा था कि वर्षाकाल में गांवों में भिक्षाटन के लिए नहीं जाएं. क्योंकि भिक्षुओं के समूह में चलने से कृषि को काफी नुकसान हो सकता है. इस दौरान भिक्षु बौद्धधर्म की बारीकियों का अध्ययन करते हैं. वे आषाढ़ पूर्णिमा से आश्विन पूर्णिमा तक किसी एक ही विहार में रहने का संकल्प लेते हैं. वर्षावास काल समाप्त होने के बाद बौद्ध मंदिरों में कठिन चीवर दान के परंपरा की शुरुआत होगी. जो एक माह तक विभन्नि बौद्ध मठों में आयोजित किया जाएगा. चीवर दान समारोह में हिस्सा लेने के लिए विभिन्न देशों के बौद्ध श्रद्धालु बड़ी संख्या में बोधगया पहुंचते हैं.
(Purshottam kumar)