विद्यालय के परिसर में बच्चियां प्रार्थना करती थीं और क्लास से ब्रेक के समय परिसर में ही खेल-कूद में भाग लेती थीं. लेकिन स्मारक बनने के बाद से उनके मन में डर समा गया और लड़कियां विद्यालय आना छोड़ने लगीं.
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झारखंड: पलामू जिले के नीलांबर पीतांबरपुर प्रखंड के बांसदोहर गांव के लोग खासा परेशान हैं. वजह ये है कि उनके बच्चों की पढ़ाई का एक मात्र साधन अब पूरी तरह बंद हो चुका है. जिस स्कूल में उनके बच्चे पढ़ाई के लिए जाया करते थे वहां अब मृतकों के स्मारक बना दिए गए हैं.
विद्यालय परिसर में ही बना दिए गए हैं मृतकों के स्मारक
बांसदोहर गांव के राजकीय कन्या मध्य विद्यालय की स्थापना साल 1975 में की गई थी और तब से 10 वर्षों तक यहां सबकुछ ठीक चल रहा था. विद्यालय का संचालन 10 वर्षों तक अच्छे ढ़ंग से चला. उसके बाद साल 1985 में पहली बार यहां के एक ग्रामीण ने अपने मृत परिजनों का स्मारक बना दिया. जिसके देखा देखी गांव के अन्य ग्रामीणों ने भी अपने परिजनों की याद में स्मारक बनाना शुरू कर दिया. उसके बाद तो देखते ही देखते विद्यालय परिसर में अबतक कुल 24 स्मारक बनाए जा चुके हैं.
जुलाई 2018 के बाद से पूरी तरह बंद पड़ा है स्कूल
विद्यालय के परिसर में बच्चियां प्रार्थना करती थीं और क्लास से ब्रेक के समय परिसर में ही खेल-कूद में भाग लेती थीं. लेकिन स्मारक बनने के बाद से उनके मन में डर समा गया और लड़कियां विद्यालय आना छोड़ने लगीं. जिस स्कूल में कभी 150 छात्राएं पढ़ा करती थीं वहां अब एक भी बच्ची स्कूल नहीं आती है. यहां तक कि विद्यालय के शिक्षक भी एक-एक कर अपना तबादला करा कर दूसरे विद्यालयों में चले गए. इस विद्यालय में एक समय में 6 शिक्षक कार्यरत थे. लेकिन शिक्षकों के चले जाने के बाद एक भी छात्रा अब स्कूल नहीं आती है. यह विद्यालय 23 जुलाई 2018 से पूरी तरह से बंद पड़ा है. आलम यह है कि अब इस विद्यालय में लोग आने से डरने लगे हैं.
अपने गांव में स्कूल होने के बावजूद दूसरे गांव जाती हैं लड़कियां
बांसदोहर गांव के ग्रामीण कहते हैं कि उनके गांव के इकलौते विद्यालय के बंद होने के बाद, अब उस गांव की लड़कियां बगल के गांव में पढ़ाई के लिए जाती हैं. वहीं अब कोई शिक्षक भी बांसदोहर गांव के राजकीय कन्या मध्य विद्यालय में ट्रांसफर करा कर आने का नाम नहीं लेते. क्योंकि जो विद्यालय पहले छात्राओं से गुलजार रहा करता था वह अब दो दर्जन मृतक स्मारकों से अटा पड़ा है. ऐसे में शिक्षकों को भी खाली स्कूल में आने में डर लगता है.
(इनपुट-अमित कुमार)