झारखंड में अलग तरह की सियासत, कभी नमाज-कभी भाषा पर तकरार, जनहित के मुद्दों पर नहीं हो रही बात
झारखंड की सियासत इन दिनों नमाज और भाषा के मुद्दे पर उफान मार रही है.
Ranchi: झारखंड की सियासत में इन दिनों अलग तरह के मुद्दों पर घमासान मचा है. पहले झारखंड विधानसभा में नमाज कक्ष आवंटन के नाम पर सदन से सड़क तक सियासी बवाल देखा गया. अब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के भाषा पर दिए बयान को लेकर जुबानी युद्ध छिड़ गया है. बीजेपी ने जहां सरकार को जनहित के मुद्दों पर ध्यान देने की नसीहत दी, वहीं सत्ता पक्ष ने विपक्ष को मुद्दाविहीन बताया है.
झारखंड की सियासत इन दिनों नमाज और भाषा के मुद्दे पर उफान मार रही है. अभी झारखंड विधानसभा में नमाज कक्ष आवंटित करने का मामला ठंडा भी नहीं पड़ा था कि राज्य में अब भाषा को लेकर एक बार फिर सियासी बवाल मच गया है. ये पूरा विवाद शुरू हुआ मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की ओर से दिए गए बयान के बाद, जिसमें उन्होंने भोजपुरी और मगही को झारखंड स्थानीय भाषा मानने से इनकार कर दिया था.
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मुख्यमंत्री के भाषा पर दिए बयान के बाद विपक्षी दल बीजेपी एक बार फिर मोर्चा खोल कर खड़ी हो गयी है. बीजेपी के मुताबिक असली मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए सरकार की ओर से तरह-तरह के शगूफे छोड़े जा रहे हैं.
बीजेपी विधायक सीपी सिंह के मुताबिक सरकार कोई काम नहीं कर रही है, इसलिए ध्यान भटकाने के लिए लिए जानबूझकर इस तरह के मुद्दे उठाए जा रहे हैं. सीपी सिंह ने कहा की सरकार जनहित के मुद्दों पर बात ना कर लोगों को दिग्भ्रमित करने में लगी है. पहले नमाज के लिए रूम आवंटित कर मुद्दे को हवा दी गयी, फिर जहां हर 10 माइल पर भाषा बदलती हो, वहां भाषा पर ऐसे बयान देकर ध्यान भटकाने की कोशिश हो रही है.
वहीं सत्ता पक्ष ने बीजेपी को आरोपों को बेबुनियाद बताया है.सत्तासीन दलों के मुताबिक सरकार के बेहतर काम की वजह से विपक्ष के पास मुद्दों का अभाव हो गया है. झारखंड सरकार के मंत्री आलमगीर आलम ने कहा की झारखंड सरकार का काम बेहतर है. कोरोना की परेशानियों के बावजूद जनता से किये गए वादे पूरे हो रहे हैं. सरकार के बेहतर काम की वजह से बीजेपी के पास कोई मुद्दा ही नहीं बचा है, तो ऐसे मुद्दों को जानबूझकर तूल दिया जा रहा है, ताकि उनकी राजनीति चमक सके और वो बयानों में बने रह सकें.
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वहीं झारखंड सरकार के मंत्री मिथिलेश ठाकुर ने कहा की मुख्यमंत्री ने अपने बयान में झारखंड आंदोलन काल की बात कही थी, उन्होंने आज की बात नहीं की थी. आंदोलन काल में जिस प्रकार पुलिसिया रवैया धनात्मक रूप से अपनाया गया उस पर मुख्यमंत्री ने बात कही थी, मुख्यमंत्री ने किसी व्यक्ति विशेष क्षेत्र के बारे में बात नहीं कही थी. मुख्यमंत्री सभी को सामान्य रूप से देखते हैं, और जहां तक राज्य की भाषा बात है, उस पर बात हो रही है, पिछली बार की भी नियोजन नीति में भी मगही और भोजपुरी शामिल नहीं था, लेकिन अभी सभी पर विचार हो रहा है.
बता दें की मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने एक बयान में भोजपुरी और मगही को झारखंड स्थानीय भाषा मानने से इनकार करते हुए कहा की भोजपुरी और मगही बोलने वाले लोग दबंग किस्म के होते हैं, जिन्होंने झारखंड आंदोलन के दौरान झारखंड वासियों पर अत्याचार किया. मुख्यमंत्री ने कहा की मगही-भोजपुरी झारखंड की भाषा नहीं है, और झारखंड का बिहारीकरण नहीं होने दिया जाएगा.
झारखंड की नयी नियोजन नीति के लागू होने के बाद से ही राज्य में भाषा को लेकर बवाल चल रहा है. झारखंड सरकार ने नयी नियोजन नीति में 12 क्षेत्रीय एवं जनजातीय भाषाओं को चिन्हित कर उसे मंजूरी दी है, जिसमें पर मैथिली, मगही, भोजपुरी, अंगिका, भूमिज जैसी भाषाओं को शामिल नहीं किया गया.
(इनपुट: अभिषेक/कामरान)