जानिए कैसा है बिहार का प्रसिद्ध सोनपुर मेला, यहां मिलता है सुई से हाथी तक
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जानिए कैसा है बिहार का प्रसिद्ध सोनपुर मेला, यहां मिलता है सुई से हाथी तक

बिहार के सारण जिले के सोनपुर में एक महीने तक लगने वाला विश्व प्रसिद्ध सालाना सोनपुर मेला शायद दुनिया का एकमात्र ऐसा मेला है, जहां क्रय-विक्रय के लिए सुई से लेकर हाथी तक उपलब्ध होते हैं.

बिहार के सारण जिले के सोनपुर में एक महीने तक सोनपुर मेला चलता है.

बिहार: बिहार के सारण जिले के सोनपुर में एक महीने तक लगने वाला विश्व प्रसिद्ध सालाना सोनपुर मेला शायद दुनिया का एकमात्र ऐसा मेला है, जहां खरीद-बिक्री के लिए सुई से लेकर हाथी तक उपलब्ध होते हैं. मेले का उद्घाटन 21 नवंबर को होगा. 

मोक्षदायिनी गंगा और गंडक नदी के संगम पर ऐतिहासिक, धार्मिक और पौराणिक महत्व वाले सोनपुर क्षेत्र में लगने वाला सोनपुर मेला प्रत्येक वर्ष कार्तिक महीने से शुरू होकर एक महीने तक चलता है. 

प्राचीनकाल से लगनेवाले इस मेले का स्वरूप कलांतर में भले ही कुछ बदला हो, लेकिन इसकी महत्ता आज भी वही है. यही कारण है कि प्रत्येक वर्ष लाखों देशी और विदेशी पर्यटक यहां पहुंचते हैं. सरकार भी इस मेले की महत्ता बरकरार रखने को लेकर हरसंभव प्रयास में लगी है. 

पर्यटकों के रहने के लिए इस साल मेला परिसर में 20 स्विस कॉटेज बनाए गए हैं, जिसमें अत्याधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं. बिहार पर्यटन विकास निगम के प्रबंध निदेशक डॉ़ हरेंद्र प्रसाद ने मंगलवार को बताया, "21 नवंबर से प्रारंभ होने वाले सोनपुर मेला इस वर्ष 22 दिसंबर तक चलेगा."

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह स्थल 'गजेंद्र मोक्ष स्थल' के रूप में भी चर्चित है. मान्यता है कि भगवान के दो भक्त हाथी (गज) और मगरमच्छ (ग्राह) के रूप में धरती पर उत्पन्न हुए. कोणाहारा घाट पर जब गज पानी पीने आया तो उसे ग्राह ने मुंह में जकड़ लिया और दोनों में युद्ध प्रारंभ हो गई. कई दिनों तक युद्ध चलता रहा. इस बीच गज जब कमजोर पड़ने लगा तो उसने भगवान विष्णु की प्रार्थना की. भगवान विष्णु ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन सुदर्शन चक्र चलाकर दोनों के युद्ध को समाप्त कराया. 

इस स्थान पर दो जानवरों का युद्ध हुआ था, इस कारण यहां पशु की खरीदारी को शुभ माना जाता है. इसी स्थान पर हरि (विष्णु) और हर (शिव) का हरिहर मंदिर भी है जहां प्रतिदिन सैकड़ों भक्त श्रद्धा से पहुंचते हैं. कुछ लोगों का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण स्वयं भगवान राम ने सीता स्वयंवर में जाते समय किया था. (इनपुट:IANS से भी)