Lok Sabha Election 2024: बिहार में भाजपा की ओर से दी गईं सीटों पर अगर नीतीश कुमार नहीं मानें तो भाजपा फॉर्मूला 2020 यूज कर सकती है, जिससे नीतीश कुमार के लिए काफी मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी. इस फॉर्मूले से भाजपा 2020 में नीतीश कुमार को पहले से काफी कमजोर कर चुकी है. नीतीश कुमार अब और नुकसान झेलने की स्थिति में नहीं हैं.
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Lok Sabha Election 2024: नीतीश कुमार (Nitish Kumar) अब एनडीए में आ गए हैं तो जो रार दिल्ली में बैठक के बाद INDIA में छिड़ी थी, वहीं नीतीश कुमार पाला बदलने के बाद NDA में शुरू हो सकती है. हालांकि राजनीतिक जानकार मान रहे हैं कि BJP ने अगर नीतीश की वापसी कराई है तो इसके पीछे सोच-समझकर और अपने पुरानी सहयोगी दलों को समझा-बुझाकर यह कदम उठाया होगा. बिहार में लोकसभा (Bihar Lok Sabha Seats) की 40 सीटें हैं और नीतीश कुमार के एनडीए में आने से पहले यह तय था कि भाजपा सबसे अधिक 32 या 27 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली थी. बाकी सीटों को सहयोगी दलों में बांटना था, जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा लोजपा के दोनों धड़ों के खाते में जाने वाला था. बताया जाता है कि पहले लोजपा के दोनों धड़ों को मिलाकर 7 सीटें देने की बात हुई थी. उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) को पहले 2 और फिर 3 सीटें देने की बात हो रही थी तो जीतनराम मांझी (JItanram Manjhi) को एक लोकसभा और एक राज्यसभा की सीट पर बात बनी थी. अब जबकि नीतीश कुमार की साइड बदल गई है तो जाहिर है कि भाजपा का गणित भी थोड़ा बहुत बिगड़ेगा, जिसे लेकर पार्टी पहले से सतर्क है.
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भाजपा ने नीतीश को बता दी है चिराग की अहमियत
आपको याद होगा कि नीतीश कुमार के शपथ ग्रहण समारोह में जब जेपी नड्डा दिल्ली से चले थे, तब वे चिराग पासवान को अपने साथ लेकर आए थे. ऐसा करके भाजपा ने नीतीश कुमार को भी एक तरह से चिराग पासवान की अहमियत समझा दी है. उससे पहले चिराग पासवान की अमित शाह से भी मुलाकात हुई थी. माना जा रहा है कि इस दौरान चिराग पासवान ने नीतीश कुमार से अपने पुराने संबंधों का भी हवाला दिया होगा और लोकसभा चुनाव लड़ने को लेकर सीटों पर भी बात की थी. कहा यह जा रहा है कि भाजपा ने जो वादा चिराग पासवान, पशुपति कुमार पारस, उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी से की थी, उसे वह निभाएगी, भले ही नीतीश कुमार एनडीए में आ गए हैं. लोकसभा चुनाव से पहले जिस तरह से भाजपा ने अपनी समीकरण दुरुस्त करते हुए नीतीश कुमार को साधा है, ऐसे में वह यह कदापि नहीं चाहेगी कि चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा या फिर जीतनराम मांझी उससे दूर जाएं.
तो फिर भाजपा कैसे साधेगी इन सभी दलों को?
सबसे बड़ा सवाल यही है कि भाजपा कैसे एक साथ चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा, जीतनराम मांझी और पशुपति कुमार पारस के साथ नीतीश कुमार की पार्टी को भी एडजस्ट कर पाएगी. आइए, इस पर थोड़ा हम भी गणित लगाते हैं. चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस को मिलाकर 6 या 7 सीटें दी जा सकती हैं. उपेंद्र कुशवाहा को 2 या 3 सीटें और जीतनराम माझी को गया लोकसभा सीट दी जा सकती है. इसके अलावा हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा को एक राज्यसभा सीट या फिर जीतनराम मांझी को राज्यपाल बनाया जा सकता है. कुल मिलाकर 10 के भीतर में भाजपा अपने पुराने सहयोगी दलों को खुश कर सकती है. अब बची 30 सीटें तो उसका भी हिसाब लगा लेते हैं.
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क्या अपनी सीटें कम कर सकती है भाजपा?
एक बात गांठ बांधकर जान लीजिए कि भाजपा किसी भी कीमत पर 17 से कम सीटों पर चुनाव नहीं लड़ने वाली. अगर आपको लगता है कि नीतीश कुमार इस बार भाजपा के बराबर सीटों पर चुनाव लड़ेंगे तो आप गलत साबित हो सकते हैं. भाजपा जितनी सीटों पर 2019 में चुनाव लड़ी थी, उतनी ही सीटों पर 2024 में भी चुनाव लड़ने जा रही है. अब आपके मन में सवाल उठ रहे होंगे कि नीतीश कुमार क्या बची हुई 13 सीटों से ही संतुष्ट हो जाएंगे तो इसका भी जवाब है हमारे पास. इस अंकगणित से आप थोड़े चकरा सकते हैं. भाजपा नीतीश कुमार को भी 17 सीटें आफर कर सकती है. अब आप कहेंगे कि यह क्या मजाक है, क्योंकि नीतीश कुमार की 17, भाजपा की 17 और बाकी सहयोगी दलों की 10 सीटों को मिलाकर आंकड़ा 40 से कहीं पार चला जाता है. तो फिर यह कैसे संभव होगा.
जेडीयू को झारखंड और नॉर्थ ईस्ट में एडजस्ट कर सकती है भाजपा
बिहार में बहुत संभव है कि भाजपा 17 सीटों पर चुनाव लड़े और उसके पुराने सहयोगी 10 सीटों पर तो नीतीश कुमार की पार्टी के लिए केवल 13 ही सीटें बचती हैं. ऐसे में भाजपा, जेडीयू को कुछ सीटें झारखंड और कुछ नॉर्थ ईस्ट में दे सकती है. इस तरह जेडीयू की 17 सीटें पूरी की जाएंगी. अब यह नीतीश कुमार को तय करना है कि उन्हें कैसे एडजस्ट करना है और करना है या नहीं. भारतीय जनता पार्टी 2019 में जेडीयू के लिए एक बार त्याग कर चुकी है और अपनी 5 सीटिंग सीटें उसे जेडीयू को देनी पड़ी थी. इस बार न तो नीतीश कुमार उतने मजबूत हैं और न ही वह भाजपा को और ज्यादा त्याग करने को प्रेरित कर सकने की स्थिति में हैं. नीतीश कुमार अगर नहीं मानते हैं तो उनके पास और कोई चारा भी शायद ही हो.
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2020 को रिपीट करवा सकती है भाजपा
अगर नीतीश कुमार नहीं मानते हैं तो भारतीय जनता पार्टी फॉर्मूला 2020 भी आजमा सकती है. 2020 में नीतीश कुमार एनडीए में ही रहे थे और विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान की पार्टी ने जेडीयू के सभी उम्मीदवारों के खिलाफ अपने प्रत्याशी उतार दिए थे और धुआंधार प्रचार किया था. अगर नीतीश कुमार ने इस बार भाजपा के सामने ज्यादा होशियारी दिखाई तो भाजपा शायद ही उन्हें इस बार बख्शे. भाजपा के पास चिराग पासवान के रूप में ऐसा ब्रह्मास्त्र है, जिसे वह आपात स्थिति में चला सकती है. अगर चिराग पासवान एक बार फिर नीतीश कुमार की पार्टी के सभी उम्मीदवारों के खिलाफ अपने प्रत्याशी उतार देते हैं तो वह भले ही जीतने की स्थिति में न हों पर नीतीश कुमार को हराने की कूबत जरूर रखते हैं. यह बात नीतीश कुमार भी जानते हैं. और सबसे बड़ी बात यह है कि इतनी जल्दी नीतीश कुमार के पास पाला बदलने का भी विकल्प शायद ही हो. इस तरह नीतीश कुमार के पास बिहार में 13 और बाकी राज्यों को मिलाकर 17 सीटों पर चुनाव लड़ने के सिवा कोई विकल्प तो दिखाई नहीं देता.