Bihar News: शाह पॉलिटिक्स या हरिवंश फैक्टर, नीतीश कुमार को एनडीए के करीब ला कौन रहा है?
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Bihar News: शाह पॉलिटिक्स या हरिवंश फैक्टर, नीतीश कुमार को एनडीए के करीब ला कौन रहा है?

Bihar News: नीतीश कुमार के बारे में कहा जाता है कि वे किसी के लिए दरवाजा खोलते हैं तो पीछे एक खिड़की भी खोल देते हैं, ताकि समय आने पर उस खिड़की को दरवाजा बनाया जा सके. यह बात कोई और नहीं, बल्कि नीतीश कुमार के पुराने सहयोगी और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ही कहते हैं.

फाइल फोटो

पटना: Bihar News: नीतीश कुमार के बारे में कहा जाता है कि वे किसी के लिए दरवाजा खोलते हैं तो पीछे एक खिड़की भी खोल देते हैं, ताकि समय आने पर उस खिड़की को दरवाजा बनाया जा सके. यह बात कोई और नहीं, बल्कि नीतीश कुमार के पुराने सहयोगी और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ही कहते हैं. भले ही प्रशांत किशोर एक विरोधी के तौर पर यह बात कहते हैं पर कहीं न कहीं यह बात सच साबित होती है. बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार एक ऐसी अबूझ पहेली बने हुए हैं, जिसे न तो राजद और न ही भारतीय जनता पार्टी ही समझ पाई है. दूसरी ओर, नीतीश कुमार अपनी सहूलियत के हिसाब से जब मन करता है तो पाला बदल की राजनीति करते रहते हैं. ऐसा करने के लिए पटना में उनके पास ललन सिंह तो दिल्ली में हरिवंश का फैक्टर है. राजद से डील करनी होती है तो ललन सिंह फैक्टर एक्टिव हो जाता है और भाजपा से डील के लिए हरिवंश से मुफीद कौन हो सकता है. अब यह समझना पड़ेगा कि इस बार भाजपा से नीतीश कुमार की बढ़ी नजदीकी का क्रेडिट किसे देना चाहिए, हरिवंश फैक्टर को या फिर किसी और फैक्टर को. क्योंकि कोई और है जो यह काम बहुत ही आसानी से कर सकता है और वह है शाह फैक्टर. नीतीश कुमार तो केवल बिहार के लिए अबूझ पहेली हैं पर अमित शाह का औरा तो पूरे देश में काम करता है. 

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फरवरी 2023 के बाद अमित शाह 6 बार बिहार के दौरे पर गए. शुरुआत के कई दौरों में उन्होंने नीतीश कुमार के लिए एनडीए के दरवाजे को बंद बताया पर झंझारपुर की रैली में अमित शाह के संबोधन में नीतीश कुमार के लिए नसीहत छिपी हुई थी. यह वहीं समय था, जब दिल्ली में जी20 की बैठक होने वाली थी और नीतीश कुमार भी राष्ट्रपति की ओर से दिए गए रात्रिभोज में शिरकत करने पहुंचे थे. उस रात्रि भोज में पीएम मोदी और नीतीश कुमार की केमिस्ट्री के आज भी चर्चें होते हैं. और यकीन मानिए, अगर बिहार में कोई राजनीतिक फेरबदल होता है तो उस रात्रिभोज वाली केमिस्ट्री का अहम रोल होने वाला है. जब पीएम मोदी और नीतीश कुमार की सीधी मुलाकात हो तब किसी भी फैक्टर की बात करना बेमानी हो जाता है, लेकिन राजनीति को हमेशा संदर्भों में देखा और समझा जाता रहा है. 

झंझारपुर की रैली में जब अमित शाह ने नीतीश कुमार को नसीहत दी, तब से यह कयास लगने लगे थे कि भाजपा और जेडीयू के बीच कुछ तो पक रहा है. हो सकता है कि ललन सिंह भाजपा और जेडीयू की केमिस्ट्री में रोड़ा बन रहे हों और इसी कारण उन्हें अपनी कुर्सी भी गंवानी पड़ गई हो. अब जबकि नीतीश कुमार खुद ही अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तो भाजपा नेताओं को नीतीश कुमार से सीधी बातचीत करने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए. ललन सिंह से बात करते तो हो सकता है कि बात लीक हो जाती और राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव तक पहुंच जाती. आज की तारीख में अगर नीतीश कुमार एनडीए में शामिल होने की सोच रहे हैं तो यह अचानक लिया गया फैसला नहीं है. नीतीश कुमार ने अगर ललन सिंह अध्यक्ष पद से हटाया तो वह भी अचानक लिया गया फैसला नहीं था. वैसे भी नीतीश कुमार कोई भी फैसला अचानक नहीं लेते. भले ही वे खुद न कहें, लेकिन संकेतों के माध्यम से वे इसका आभास करा देते हैं. जैसे हाल के दिनों में उन्होंने इंडिया के बारे में कभी कुछ भी नहीं कहा, लेकिन कुछ संकेत ऐसे दिए कि यह जाहिर हो गया कि वे नाराज चल रहे हैं. 

याद कीजिए, नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह में जेडीयू के राज्यसभा सांसद और उपसभापति हरिवंश मौजूद थे. हालांकि जेडीयू ने समारोह के बहिष्कार का ऐलान किया था. उसके बाद जेडीयू प्रवक्ता ने कैसे हरिवंश की पत्रकारिता से लेकर उनके कलम को लेकर जाने क्या क्या बातें कही थीं. ऐसा लग रहा था कि हरिवंश को जेडीयू से निकाल दिया जाएगा, लेकिन नीतीश कुमार इतने कच्चे खिलाड़ी कहां. वे दिल्ली में अपना एच फैक्टर कैसे गंवाते. उन्होंन वीटो पावर लगाया और हरिवंश आज भी जेडीयू में बने हुए हैं. पिछले कुछ महीने पहले नीतीश कुमार ने हरिवंश से डेढ़ घंटे तक गुफ्तगू भी की थी और तब भी कुछ कयासबाजी हुई थी लेकिन समय के साथ वो दब गई थी. तो क्या नीतीश कुमार और हरिवंश की मुलाकात में ही एनडीए में वापसी की संभावनाओं पर बात हुई थी, इस सवाल का जवाब तो आने वाले वक्त में ही पता चल पाएगा, लेकिन इतना तय है कि हरिवंश फैक्टर को नीतीश कुमार ने इसलिए बचा रखा था. 

फिर से अमित शाह पर आते हैं. कैसे फरवरी, अप्रैल और जून में बिहार में की गईं रैलियों में अमित शाह कहते थे कि नीतीश बाबू के लिए एनडीए के दरवाजे बंद हो गए हैं, लेकिन झंझारपुर की रैली में उन्होंने नीतीश कुमार को नसीहत दी थी. उसके बाद से अमित शाह ने नीतीश कुमार के लिए शायद उतने कड़वे लफ्जों का इस्तेमाल नहीं किया. झंझारपुर की रैली भाजपा और जेडीयू के बिगड़े संबंधों को सुधारने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकती है, अगर नीतीश कुमार की वापसी हो रही है तो. समय के साथ ही नीतीश कुमार के खिलाफ मुखर रहे सम्राट चैधरी के भी सुर बदलते चले गए और हाल ही में उपेंद्र कुशवाहा, जीतनराम मांझी और चिराग पासवान ने भी नीतीश कुमार के एनडीए में वापसी को लेकर सकारात्मक रुख दिखाया है. यह सब बिना शाह पाॅलिटिक्स के नहीं हो सकता है. 

कहां तो इंडिया ब्लाॅक के नेता बिहार में भाजपा को पटखनी देने की फिराक में थे और अब लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री निवास की ओर दौड़ लगा रहे हैं. एक कोशिश कि शायद नीतीश कुमार अपना इरादा बदल दें नहीं तो उनका सारा बना बनाया खेल बिगड़ जाएगा. दिल्ली से डी. राजा मनाने के लिए आ रहे हैं. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और विधायक दल के नेता नीतीश कुमार को मनाने पहुंच रहे हैं. इस बीच अमित शाह का एक बयान कि अगर नीतीश कुमार की ओर से इस तरह का कोई प्रस्ताव आता है तो उस पर विचार करेंगे, यह बिहार में राजनीतिक बवंडर मचाने के लिए काफी है. अब धुआं उठा है तो इसका साफ मतलब है कि आग कहीं न कहीं  लगी है. अब राजनीति में तो ऐसा है कि जिनके यहां आग लगी है, वो बुझाए.

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