Lok Sabha Election 2024: उपेंद्र कुशवाहा का राजनीतिक इतिहास बड़ा दिलचस्प रहा है. अपने 17 साल के राजनीतिक जीवन में वह चार पार्टियां बना चुके हैं. इतना ही नहीं वह अपनी सुविधा अनुसार ताश के पत्तों की तरह गठबंधन के साथियों उलटते-पलटते रहते हैं.
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Lok Sabha Election 2024: लोकतंत्र के सबसे बड़े त्योहार यानी लोकसभा चुनाव में अब मुश्किल से एक या दो महीने का वक्त बचा है. आने वाले दो महीनों में जनता को एक बार फिर से अपना सांसद चुनने का मौका मिलने वाला है. इस बार का चुनाव बड़ा दिलचस्प होने वाला है, क्योंकि NDA हो या विपक्षी गठबंधन INDIA दोनों ही खेमों में बड़े बदलाव हो चुके हैं. बिहार इससे अछूता नहीं रहा है. यहां भी पिछले चुनाव में जो लोग बीजेपी को हराने के लिए मैदान में उतरे थे वहीं अब वे नरेंद्र मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने के लिए अपना जोर लगा रहे हैं. इन नेताओं में उपेंद्र कुशवाहा भी शामिल हैं. 2019 में कुशवाहा राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) के अध्यक्ष हुआ करते थे और महागठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़े थे. हालांकि, आज उनकी पार्टी का नाम राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) है और वह एनडीए के साथी हैं.
कुशवाहा का राजनीतिक इतिहास बड़ा दिलचस्प रहा है. अपने 17 साल के राजनीतिक जीवन में वह चार पार्टियां बना चुके हैं. इतना ही नहीं वह अपनी सुविधा अनुसार ताश के पत्तों की तरह गठबंधन के साथियों उलटते-पलटते रहते हैं. पहली बार वो 2004 में विधायक बने जब समता पार्टी ने उन्हें नेता विरोधी दल बनाया गया था. हालांकि, 2005 के विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. 2007 में एनसीपी का साथ पकड़ लिया और उसके प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए. लेकिन एनसीपी के साथ उनका रिश्ता बहुत कम समय तक चल सका. वर्ष 2008 में वो पार्टी से अलग हो गये और 2009 में उन्होंने अपनी पार्टी बना ली. राष्ट्रीय समता पार्टी बनाकर वो जदयू के खिलाफ ही मैदान में उतर गए थे.
2009 में जेडीयू में अपनी पार्टी का विलय कर दिया और 2010 में राज्यसभा चले गए. 2011 में उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में सस्पेंड कर दिया गया. तो 2013 में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) का गठन कर डाला. बीजेपी के साथ मिलकर 2014 का लोकसभा चुनाव लड़े और मोदी सरकार पार्ट-1 का हिस्सा रहे. हालांकि 2019 से पहले पाला बदल लिया और महागठबंधन के साथ मिलकर ताल ठोंकी थी. हालांकि, उसके बाद भी उनको कुछ नहीं मिला था. महागठबंधन में रालोसपा को 5 सीटें मिली थीं लेकिन उनका प्रत्याशी किसी भी सीट पर जीत दर्ज नहीं कर सका था. कुशवाहा खुद भी अपनी दोनों सीटों (काराकाट और उजियारपुर) से चुनाव हार गए थे. इस तरह से लालू यादव की लालटेन की रोशनी में भी कुशवाहा के जीवन में राजनीतिक अंधेरा छा गया था.
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2019 में कुशवाहा को काराकाट में जेडीयू के महाबली सिंह से तो वहीं उजियारपुर में बीजेपी के नित्यानंद राय से करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था. उजियारपुर में उन्हें 2,77,278 वोटों से तो वहीं काराकाट में 84,542 वोटों से हार का सामना करना पड़ा था. इसके बाद बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में उन्होंने मायावती की बसपा और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM समेत कई दलों के साथ मिलकर तीसरा मोर्चा बनाया. इस बार भी उनको निराशा का सामना करना पड़ा था. उनकी पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली थी. दो करारी शिकस्त झेलने के बाद मजबूरन उन्हें अपनी पार्टी का विलय जदयू में कराना पड़ा था. 2021 में जेडीयू से अलग होने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय लोक जनता दल (RLJD) का गठन किया था. जिसे हाल में इलेक्शन कमीशन ने राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) कर दिया है.