Bagaha: स्नान दान को लेकर श्रद्धालुओं का जत्था पहुंचा वाल्मीकिनगर, त्रिवेणी संगम में लगाएंगे आस्था की डुबकी
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Bagaha: स्नान दान को लेकर श्रद्धालुओं का जत्था पहुंचा वाल्मीकिनगर, त्रिवेणी संगम में लगाएंगे आस्था की डुबकी

भारत-नेपाल सीमा पर स्थित पश्चिम चंपारण जिले के वाल्मीकिनगर में मौनी अमावस्या को लेकर श्रद्धालुओं के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया है.

वाल्मीकीनगर में भक्तों की भीड़ अभी से उमड़ने लगी है

Bagaha: भारत-नेपाल सीमा पर स्थित पश्चिम चंपारण जिले के वाल्मीकिनगर में मौनी अमावस्या को लेकर श्रद्धालुओं के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया है. दरअसल, भक्त यहां माघ माह के मौनी अमावस्या के मौके पर श्रद्धा की डुबकी लगाएंगे और विभिन्न शिवालयों और विष्णु भगवान के मंदिर में जलाभिषेक करेंगें .

मौनी अमावस्या के दिन त्रिवेणी संगम में स्नान करने को लेकर वाल्मीकीनगर में भक्तों की भीड़ अभी से उमड़ने लगी है. बिहार, यूपी और नेपाल के विभिन्न इलाकों से श्रद्धालु ट्रैक्टर, बैलगाड़ी और बस के माध्यम से इंडो नेपाल सीमा अंतर्गत वाल्मीकीनगर पहुंच रहे हैं. प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी मौनी अमावस्या माघ मेला में लाखों श्रद्धालुओं का जत्था पहुंचा है.

शुक्रवार की अहले सुबह से हीं गंडक नारायणी नदी के त्रिवेणी संगम तट पर भक्त आस्था की डुबकी लगाएंगे और गौ दान, तिल के साथ चावल और रुपए दान कर पूजा अर्चना करेंगे. बता दें कि माघ मेला में नेपाल और इंडिया दोनों तरफ गंडक नदी के तट पर हर साल लाखों की संख्या में भक्त स्नान दान करते हैं. क्योंकि गंडक नदी विश्व की एकमात्र ऐसी नदी है जिसके गर्भ में शालीग्राम पत्थर पाया जाता है. इस नदी में सोनभद्र, ताम्रभद्र और नारायणी का पवित्र मिलन होता है. यही वजह है कि इसे प्रयागराज के बाद देश का दूसरा त्रिवेणी संगम होने का गौरव प्राप्त है.

पंडित नंदकिशोर तिवारी नामक पुजारी ने बताया कि माघ मौनी अमावस्या मेला के दिन भगवान विष्णु और शिव की पूजा करने का विधान होता है. इस पर्व में मौन धारण कर मुनियों के समान आचरण करते हुए स्नान दान की पौराणिक परंपरा है. उन्होंने बताया कि पौराणिक धारणाओं के अनुसार माघ मास में भगवान सूर्य गोचर करते हुए जब चंद्रमा के साथ मकर राशि पर आसीन होते हैं तो उस काल को मौनी अमावस्या कहा जाता है.

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