बिहार में शिक्षा विभाग का सालाना बजट 35 हजार करोड़ से ज्यादा है. लेकिन शिक्षा की अलख जगाने वाले नियोजित शिक्षक किस हालात में काम करते हैं कैसी उनकी जिंदगी है उसकी तस्वीरें देखकर आप ये सोचने लगेंगे कि, आखिर इतनी महंगाई में इन नियोजित शिक्षकों की जिंदगी कैसे गुजरती है.
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पटना: बिहार में शिक्षा विभाग का सालाना बजट 35 हजार करोड़ से ज्यादा है. लेकिन शिक्षा की अलख जगाने वाले नियोजित शिक्षक किस हालात में काम करते हैं कैसी उनकी जिंदगी है उसकी तस्वीरें देखकर आप ये सोचने लगेंगे कि, आखिर इतनी महंगाई में इन नियोजित शिक्षकों की जिंदगी कैसे गुजरती है. दरअसल, बिहार में नियोजित शिक्षकों की तनख्वाह 30 हजार रूपए है. उन्हें हाथ में 27 हजार के करीब मिलता है. ऐसे में शिक्षकों के लिए परिवार का पालन पोषण करना भी मुश्किल हो रहा है.
उदाहरण के तौर पर देखें तो, पटना के शास्त्रीनगर गवर्नमेंट हाई स्कूल में नियोजित शिक्षक के तौर पर अजीत शर्मा काम कर रहे हैं. अजीत शर्मा का प्रतिमाह वेतन 30 हजार के करीब है. और उनके हिस्से में 27 हजार उनके खाते में आता है. लेकिन क्या 27 हजार में पटना जैसे महंगे शहर में किसी का गुजारा हो सकेगा. अजीत शर्मा की शादी हो चुकी है लेकिन पटना का किराया इतना अधिक है कि पत्नी या परिवार के साथ राजधानी में गुजारा संभव नहीं है. लिहाजा वो एसबेस्टस की छत के नीचे शास्त्रीनगर में एक मामूली मकान में रहते हैं.
अजीत शर्मा दिव्यांग भी हैं लिहाजा उनकी परेशानी कहीं और ज्यादा है. अजीत शर्मा बताते हैं कि अगर ढंग का किराये का मकान लें तो 10 हजार से कम नहीं होगा लिहाजा वो अकेले ही पटना में रहते हैं. अजीत शर्मा के मकान से ही सटे तीन और छात्र रहते हैं. यानि अजीत शर्मा उसी बाथरूम और शौचालय का इस्तेमाल करते हैं जिसका इस्तेमाल तीन और छात्र करते हैं. कमरा काफी छोटा है एसबेस्टस की छत में भी लिकेज है. इसी कमरे में किचेन के साथ पूजा करने की जगह भी है.
अजीत शर्मा बताते हैं कि अपने जीवन में न तो वो एक अच्छे पिता,पुत्र और पति बन पाए.बात अजीत शर्मा की ही नहीं है. अजीत शर्मा के साथ ही शास्त्रीनगर के एक और सरकारी स्कूल में जो शिक्षक काम करते हैं उनका नाम है धनंजय. धनंजय किराये के मकान में दूसरी मंजिल पर रहते हैं. धनंजय बताते हैं कि पत्नी साथ नहीं रहना चाहती है क्योंकि यहां का कमरा काफी छोटा है. धनंजय के मुताबिक, किसी तरह पटना में गुजारा होता है वर्तमान तो खराब हो ही गया भविष्य की भी चिंता सता रही है.
यानि आप सोचिए कि मात्र 27 हजार की आमदनी वाले नियोजित शिक्षकों को शिक्षा विभाग ने कैसे उनके हाल पर छोड़ दिया है. मुसीबत ये भी है कि वेतन भी हर महीने नहीं आता है. बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रवक्ता अभिषेक कुमार के मुताबिक, नियोजित शिक्षकों को सरकार की घोर लापरवाही का शिकार होना पड़ा है. नियोजित हो या नियमित दोनों समान काम ही करते हैं लेकिन वेतन में जमीन और आसमान का अंतर है.
अभिषेक कुमार की बात मुख्यमंत्री जिस पीएफ यानि भविष्य निधि का लाभ देने की बात करते हैं उसमें नया क्या है. क्योंकि पीएफ तो हर कर्मचारी का संवैधानिक अधिकार होता है और बिहार में जब से नियोजित शिक्षक बहाल हुए है उनको पीएफ का लाभ नहीं दिया जाता है. नियोजित शिक्षकों ने इस साल 17 फरवरी से लेकर 4 मई तक सेवा शर्त की मांग के समर्थन में हड़ताल की थी. 68 दिनों तक चली इस हड़ताल में करीब पौन चार लाख नियोजित शिक्षक शामिल हुए थे और इस हड़ताल में मुख्य मांग सेवा शर्त की थी. लेकिन सवाल सिर्फ सेवा शर्त का ही नहीं है.