बिहार में 'नरसंहार' का दर्दनाक इतिहास: 58 लोगों को गोलियों से भूना, लेकिन 'हत्यारे' आजाद
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बिहार में 'नरसंहार' का दर्दनाक इतिहास: 58 लोगों को गोलियों से भूना, लेकिन 'हत्यारे' आजाद

Patna Crime News: ये एक ऐसा दिन था जिसे याद करके आज भी लोगों की रूह कांप उठती हैं. एक ऐसी तारीख जिसमें बिहार के जहानाबाद जिले के लक्ष्मणपुर बाथे गांव में अब तक के सबसे बड़े जातीय नरसंहार को अंजाम दिया गया. 

बिहार का नरसंहार! (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Patna: 1 दिसम्बर 1997. इस दिन का इतिहास बिहार के साथ-साथ पूरे भारत देश में काले अक्षरों से लिखा गया.

जातीय नरसंहार हुआ!
ये एक ऐसा दिन था जिसे याद करके आज भी लोगों की रूह कांप उठती हैं. एक ऐसी तारीख जिसमें बिहार के जहानाबाद जिले के लक्ष्मणपुर बाथे गांव में अब तक के सबसे बड़े 'जातीय नरसंहार' को अंजाम दिया गया. 

जातीय संघर्ष ने सैकड़ों लोगों की बलि ले ली
कहा जाता है कि उस वक्त बिहार में जातीय नरसंहारों का दौर था और इस अगड़े-पिछड़े वर्ग के बीच छिड़े जातीय संघर्ष ने सैकड़ों लोगों की बलि ले ली.

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क्या था पूरा मामला
उस दौर मे ऊंची जाति के लोगों ने अपनी एक सेना बनाई जिसका नाम रखा गया रणवीर सेना. इस सेना ने बिहार में रहने वाले 58 लोगों को गोलियों से भून डाला. मरने वालों में 27 महिलाएं और 16 बच्चे भी शामिल थे और उन 27 महिलाओं में से करीब दस महिलाएं गर्भवती थीं. ये एक ऐसी घटना थी जिससे पूरा देश कांप उठा. इसमें सबसे छोटे मृतक की उम्र एक साल थी.

नाव में सवार होकर पहुंचे थे हत्यारे
हत्यारे तीन नावों में सवार होकर घटनास्थल पर पहुंचे. गांव पहुंचते ही सबसे पहले उन्होंने नाविकों की बेरहमी से हत्या की और उसके बाद भूमिहीन मजदूरों और उनके परिवार के सदस्यों को घर से बाहर निकाला और गोलियों से भून डाला. 

शमशान में बदल गया गांव
तीन घंटे तक चले इस खूनी खेल में सोन नदी के किनारे बसे बाथे टोला गांव को उजाड़ कर रख दिया. कई परिवारों के नामोनिशान मिट गए. चारों ओर त्राही-त्राही मच गई. हंसता खेलता वो गांव देखते ही देखते श्मशान में बदल गया. 

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एक साथ 58 चिताओं को अग्नि दी गई
अगर कोई पूछे तो मारे गए लोगों का कसूर बस इतना था कि वो दलित जाति से थे. घटना के बाद दो दिनों तक मारे गए लोगों के शव यूं हैं पड़े रहे. दो दिन बाद यानी 3 दिसंबर 1997 को तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी (Rabri Devi) ने गांव का दौरा किया और उसके बाद शवों का सामूहिक अंतिम संस्कार किया गया. एक साथ 58 चिताओं को अग्नि दी गई. 

राष्ट्रपति ने जाहिर की गहरी चिंता
उस समय राष्ट्रपति रहे के. आर. नारायणन ने गहरी चिंता जताते हुए इस हत्याकांड को 'राष्ट्रीय शर्म' करार दिया था. घटना के बाद कई सालों तक मुकदमा चला और फिर 7 अप्रैल 2010 को मामले पर सुनवाई करते हुए पटना की एक विशेष अदालत ने 16 अभियुक्तों को फांसी और 10 को उम्रकैद की सजा सुनाई जबकि दो आरोपियों की इस दौरान मौत हो गई. 

पटना हाइकोर्ट ने फैसले को खारिज कर दिया
फैसला सुना तो दिया गया था लेकिन इसके बाद पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) ने निचली अदालत के इस फैसले को खारिज करते हुए सभी 26 आरोपियों को बरी कर दिया. 

आज भी वे 26 आरोपी खुले में घूम रहे 
अदालत का कहना था कि कानून सबूत मांगता है और कोर्ट ने इनके खिलाफ सजा के लायक सबूत नहीं पाएं. जिसके बाद आज भी वे 26 आरोपी खुले में घूम रहे हैं. यानी किसी ने उन 58 लोगों कि हत्या नहीं की!