Palamu Panchmukhi Temple: आपने अयोध्या में भगवान राम की वो तस्वीर तो याद होगी, जब लगभग 3 दशक तक भगवान को टेंट में रहने को मजबूर होना पड़ा था. अपने जन्मस्थान पर अदालती कार्यवाही से भगवान राम को उनका मंदिर नहीं मिल पा रहा था. इसी तरह से काशी में भगवान शिव और मथुरा में भगवान कृष्ण को इंसाफ के लिए आज भी अदालतों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं. कुछ इसी तरह का एक मामला झारखंड के पलामू जिले से सामने आया है. यहां 38 वर्ष से भगवान एक थाने में बंद हैं और रिहाई का इंतजार कर रहे हैं. जी हां, यहां भगवान कुबेर और उनके द्वारपाल जय-विजय की मूर्ति पिछले 38 वर्ष से थाने के मालखाने में बंद है. जिस जगह पर भगवान कुबेर और उनके द्वारपालों की मूर्तियां रखीं हैं, वो है झारखंड के पलामू जिले के विश्रामपुर थाने का मालखाना.


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अब आप भी सोच रहे होंगे की आखिर ऐसा क्या हो गया कि भगवान कुबेर जो धन के देवता हैं, जिसके सामने लोग धन कमाने के लिए नतमस्तक रहते हों, वो भगवान कुबेर पिछले 38 साल से थाने में बंद हो. दरअसल, पलामू जिले के विश्रामपुर गांव के मंदिर में आज से 38 वर्ष पहले भगवान कुबेर और भगवान के 2 द्वारपाल जय और विजय की मूर्तियां स्थापित थी. 27 नवंबर 1986 की आधी रात को चोरों ने मंदिर पर धावा बोल कर भगवान कुबेर और उनके एक द्वारपाल की मूर्ति चोरी कर लीं. चोरी के तकरीबन 2 महीने बाद चोर की पत्नी द्वारा पुलिस को सुराग दिए जाने पर इन दोनों मूर्तियों को पुलिस ने बरामद करके मालखाने में रख दिया. 


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1991 में मंदिर में फिर से चोरी हुई और चोर भगवान के दूसरे द्वारपाल की मूर्ति उठा ले गए. पुलिस ने इस बार भी मूर्ति को बरामद करके अपने थाने के मालखाने में रख दिया. अब पेंच यही पर शुरू होता है. दरअसल, जब मूर्तियां चोरी हुई थीं, तब मंदिर प्रशासन ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई थी. लेकिन समय बीतने के बाद विश्रामपुर पुलिस के पास मूर्ति की चोरी की शिकायत के अभिलेख गायब हो गए. बताया जा रहा है कि थाने में आग लगने के कारण कागज जल गए थे. जिसके बाद जब पलामू की अदालत में मामले की सुनवाई शुरू हुई तो पुलिस ने अदालत में मूर्ति की चोरी से जुड़ी शिकायत के पूरे कागज नहीं पेश किए. इसकी वजह से आज तक मूर्तियां मंदिर में लौटने की जगह विश्रामपुर थाने के मलखाने में ताले में बंद पड़ी हैं.


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मंदिर के पुजारी हो या आम भक्त, सब इंतजार में हैं कि उनके भगवान जल्द पुलिस की कैद से रिहा हों और इसके लिए पिछले 38 वर्ष से लड़ाई भी लड़ रहे हैं. पुजारी की माने तो भगवान की रिहाई में सबसे बड़ी बाधा विश्रामपुर थाना से गायब शिकायत के अभिलेख हैं. बता दें कि पंचमुखी मंदिर का निर्माण आज से 152 वर्ष पहले वर्ष 1872 में विश्रामपुर के राज परिवार ने करवाया था और मूर्तियों की स्थापना भी इसी राजपरिवार ने करवाई थी. राज परिवार के सदस्य ना सिर्फ मूर्ति की वापसी की मांग कर रहे हैं, बल्कि बता रहे हैं कि कैसे मूर्ति ना होने की वजह से मंदिर सूना-सूना सा लग रहा है.


रिपोर्ट- श्रवण सोनी


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