मोदी कैबिनेट विस्तार पर बिहार की बढ़ी सियासी तपिश, सत्तापक्ष और विपक्ष में वार-पलटवार
केंद्र में मोदी मंत्रिमंडल के विस्तार को लेकर बिहार में सियासी तपिश बढ़ गई है. कैबिनेट में नए चेहरों को शामिल करने, पुराने चेहरों को बाहर करने और कुछ को प्रमोट करने पर विपक्ष हमलावर है.
Patna: केंद्र में मोदी मंत्रिमंडल के विस्तार को लेकर बिहार में सियासी तपिश बढ़ गई है. कैबिनेट में नए चेहरों को शामिल करने, पुराने चेहरों को बाहर करने और कुछ को प्रमोट करने पर विपक्ष हमलावर है. विपक्ष का कहना है कि BJP ने सियासी एजेंडे में जाति-धर्म को ज्यादा तवज्जो दिया है. विपक्ष ने पुराने और अनुभवी नेताओं को भी दरकिनार करने का आरोप लगाया है.
दरअसल, सारा विवाद कानून और आईटी मंत्री रहे रविशंकर प्रसाद (Ravi Shankar Prasad) के इस्तीफे को लेकर खड़ा हुआ. ररविशंकर प्रसाद (Ravi Shankar Prasad) का इस्तीफा क्यों हुआ, इसे लेकर कुछ भी साफ नहीं है. वहीं, गिरिराज सिंह (Giriraj Singh) को कैबिनट में जगह मिलने पर भी विपक्ष को ऐतराज़ है.
केंद्रीय गिरिराज सिंह को मिला हेवी-वेट पोर्टफोलियो
बिहार के बेगूसराय से सांसद गिरिराज सिंह का कद साल 2014 के बाद से लगातार बढ़ता जा रहा है. अपने विवादित बयानों की वजह से सुर्खियों में रहने वाले गिरिराज सिंह बिहार बीजेपी के कद्दावर नेताओं में शुमार हैं. गिरिराज सिंह जब साल 2014 में नवादा से चुनाव जीतकर आए, तो उन्हें केंद्र में राज्यमंत्री बनाया गया. कट्टर हिन्दुत्व की छवि के साथ वो मोदी-शाह के चहेते बने रहे.
साल 2019 में जब दोबारा NDA सरकार बनी, तो पहले कार्यकाल के कई मंत्रियों की छुट्टी हो गई. ऐसे में गिरिराज सिंह का भी मंत्री बनना तय नहीं था, लेकिन गिरिराज न सिर्फ मंत्री बने, बल्कि राज्यमंत्री से उन्हें प्रमोट कर कैबिनेट मंत्री बनाया गया. गिरिराज सिंह को पशुपालन एवं मत्स्य पालन जैसे कामकाजी विभाग की जिम्मेदारी मिली. खास तौर पर बिहार में इस विभाग के तहत काम करने की भरपूर संभावनाएं थी. जिसके बाद ये तय हो गया था कि गिरिराज सिंह का कद बड़ा हो चुका है.
मोदी कैबिनेट 2.0 का जब विस्तार होने की चर्चा हुई, तो गिरिराज सिंह सुर्खियों में आएंगे, ये किसी ने भी नहीं सोचा था. लेकिन कैबिनेट विस्तार के बाद जब विभाग बंटने लगे तो गिरिराज सिंह का विभाग बदले जाने की खबर आई थी. ये खबर तब और सभी के लिए चौंकाने हो गई, जब गिरिराज सिंह का कद और बड़ा हो गया.उन्हें केंद्र सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री बनाया गया. पंचायती राज विभाग भी उनके हिस्से में आया.
वहीँ, बिहार से एक और बड़े मंत्री रविशंकर प्रसाद के साथ ठीक उलट हुआ. उनके इस्तीफे की खबर ने सबको हैरान कर दिया. पटना साहिब से सांसद रविशंकर प्रसाद के पास कानून मंत्रालय के साथ सूचना-प्रौद्योगिकी मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण विभाग थे.
गिरिराज के 'प्रमोशन' पर बिहार BJP में दिखा उत्साह
बिहार BJP के नेताओं ने गिरिराज सिंह को बड़ा मंत्रालय मिलने पर खुशी जताई है. आरके सिंह को राज्यमंत्री से कैबिनेट मंत्री के तौर पर प्रमोट करने पर भी तमाम नेताओं ने प्रतिक्रिया दी है. BJP ने इसे बिहार के लिए सम्मानजनक बताया है.
दूसरी तरफ, रविशंकर प्रसाद के इस्तीफे को लेकर पार्टी खामोश हो गई है. पार्टी इस पर कुछ भी बोलने से बच रही है. BJP प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल भी रविशंकर प्रसाद के बारे में पूछे गए सवाल को टाल गए. ऐसे में ये स्पष्ट नहीं हो रहा कि रविशंकर प्रसाद की कुर्सी खराब परफॉरमेंस की वजह से गई है या पिछले दिनों ट्विटर के साथ हुए विवाद की वजह से उन्हें कुर्सी गंवानी पड़ी?
विपक्ष ने कहा, 'सीनियर नेता हो रहे साइडलाइन'
केंद्रीय मंत्रिमंडल में हुए फेरबदल और विस्तार पर विपक्ष हमलावर हो गया है. विपक्ष ने एक साथ कई मोर्चों पर धावा बोला है. गिरिराज सिंह को लगातार प्रमोट करने पर विपक्ष ने कड़ा एतराज जताया और इसे BJP का धार्मिक एजेंडा करार दिया. विपक्ष का कहना है कि BJP ऐसे नेताओं को लगातार बढ़ावा दे रही है, जो धार्मिक कट्टरता में विश्वास करते हैं और हिन्दू-मुस्लिम में भेदभाव पैदा करते हैं. हमेशा अपनी जुबान से नफरत पैदा करने वालों को BJP प्रमोट कर रही है'.
रविशंकर प्रसाद को कैबिनेट से बाहर करने के मसले पर भी विपक्ष आक्रामक है. कांग्रेस और RJD का कहना है कि अटल-आडवाणी के दौर के सभी नेताओं को धीरे-धीरे किनारे लगाया जा रहा है. जो भी नेता उस दौर में अटल-आडवाणी के करीबी रहे, उनको साइडलाइन करने की मंशा से ये सब कुछ हो रहा है. रविशंकर प्रसाद, सुशील मोदी, नंदकिशोर यादव जैसे सीनियर नेताओं को अब पार्टी तवज्जो नहीं दे रही है. अब पार्टी और सरकार में उन्हीं की जगह होगी, जो मोदी-शाह के इशारों पर चलेंगे'.
'ट्विटर विवाद को भी इस्तीफे से जोड़ा'
सत्तापक्ष और विपक्ष में मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर विवाद चल रहा है. विपक्ष के अपने तर्क और आरोप हैं. लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना अलग है. राजनीतिक विश्लेषकों की नज़र में रविशंकर प्रसाद का इस्तीफा अकारण नहीं है. उनका मानना है कि रविशंकर प्रसाद का हाल-फिलहाल ट्विटर के साथ जो विवाद बढ़ा, जिस तरह से ये मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आया, उससे किरकिरी हुई. देश के कुछ बड़े नेताओं के ट्विटर हैंडल को जिस तरह ट्विटर ने ब्लॉक किया, उसके बाद ये विवाद सरकार के लिए फजीहत का कारण बन गया इसलिए मामले के पटाक्षेप के लिए सरकार को ये कदम उठाना पड़ा होगा.
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एक्सपर्ट्स ये भी मानते हैं कि 'रविशंकर प्रसाद जैसे सीनियर नेता को पार्टी ज़्यादा समय तक नज़रअंदाज़ या दरकिनार नहीं कर सकती. कुछ दिनों की बात है, उसके बाद संगठन में उन्हें बड़ी भूमिका दी जा सकती है. संगठन में काम करने का भी रविशंकर प्रसाद को अच्छा अनुभव है. इसलिए उनकी बड़ी भूमिका में जल्द वापसी तय है'.
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