भूमिहारों की उत्पत्ति कैसे हुई? राजपूतों की तरह जमींदारी और दावा ब्राह्मणों के वंशज होने का
Bhumihar Politics: भूमिहारों के ठाठ बाठ तो ठाकुरों जैसे होते हैं पर वे खुद को ब्राह्मण होने का दावा करते हैं. इसलिए भूमिहार ब्राह्मण शब्द प्रचलन में आया. भूमिहारों पर टिप्पणी को लेकर बिहार की राजनीति आजकल काफी गर्म है और सभी दल भूमिहारों का दिल जीतने में लगे हैं.
मूल रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में बहुतायत तो कुछ प्रदेशों में बेहद कम संख्या में निवास करने वाली भूमिहार जाति को लेकर पिछले दिनों काफी राजनीति हुई थी. जेडीयू के नेता और नीतीश सरकार में मंत्री अशोक चौधरी ने कुछ टिप्पणी कर दी थी, जिसके बाद बिहार की राजनीति में भूचाल आ गया था. भूमिहारों का दिल जीतने के लिए लगभग सभी दलों ने अशोक चौधरी के बयान को लेकर उन्हें जमकर कोसा. यहां तक कि उन्हें रावण भी कहा गया. आज हम भूमिहार का मतलब, इनकी उत्पत्ति और इनको लेकर कुछ जानकारी शेयर करेंगे.
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भूमिहार यानी भूमि से आहार अर्जित करने वाला भूमिपति या फिर भूमिवाला. भूमिहार जाति के लोगों का दावा है कि वे जाति से ब्राह्मण होते हैं. उन्हें भूमिहार ब्राह्मण कहा भी जाता है. बिहार के मुजफ्फरपुर में तो भूमिहार ब्राह्मण कॉलेज भी स्थापित किया गया है. बिहार में भूमिहारों को बाभन या फिर जमींदारी होने के कारण बाबूसाहेब भी कहते हैं.
भूमिहार शब्द का सबसे पहले उल्लेख 1865 ई. में आगरा और अवध के संयुक्त प्रांतों के रिकॉर्ड में किया गया था. 19वीं सदी के अंत में खुद को पुजारी ब्राह्मण वर्ग कहलवाने के लिए भूमिहार ब्राह्मण शब्द का पहली बार यूज किया गया था. भूमिहार जाति के लोग 20वीं सदी तक पूर्वी भारत के प्रमुख भूस्वामी थे और छोटी रियासतों और जमींदारी को कंट्रोल करते थे.
भूमिहार भारत में किसान आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर चुके हैं. इसके अलावा 20वीं सदी में भूमिहार राजनीतिक रूप से सबसे सशक्त और प्रभावशाली समुदाय था. ये दावा तो ब्राह्मणों के वंशज होने का करते हैं पर अन्य समुदायों ने भूमिहारों को कभी ब्राह्मण माना ही नहीं.
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कुछ मान्यताएं ऐसी भी हैं कि भूमिहार ब्राह्मणों के ही वंशज हैं, जिन्हें परशुराम के हाथों मारे गए राजपूतों का स्थान लेने के लिए स्थापित किया गया था. कुछ मान्यताएं ऐसी भी हैं कि भूमिहार ब्राह्मण पुरुषों और क्षत्रिय महिलाओं या राजपूत पुरुषों और ब्राह्मण महिलाओं की संतति हैं.
16वीं सदी तक भूमिहारों ने उत्तर बिहार के विशाल हिस्से को कंट्रोल किया था. 18वीं सदी के उत्तरार्ध में भूमिहारों ने खुद को प्रमुख जमींदारों के रूप में स्थापित किया था.