आतंकी साज़िश का 'शटर' डाउन!, कार्रवाई पर सियासी पारा हाई
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आतंकी साज़िश का 'शटर' डाउन!, कार्रवाई पर सियासी पारा हाई

Popular Front Of India Ban: देश में आतंकी गतिविधियों में लिप्त संगठनों पर कार्रवाई लगातार जारी है. केन्द्र सरकार के गृह मंत्रालय की तरफ से उन तमाम संगठनों पर नज़र रखी जा रही है, जिनकी गतिविधियां संदिग्ध नज़र आ रही हैं.

(फाइल फोटो)

पटना : Popular Front Of India Ban: देश में आतंकी गतिविधियों में लिप्त संगठनों पर कार्रवाई लगातार जारी है. केन्द्र सरकार के गृह मंत्रालय की तरफ से उन तमाम संगठनों पर नज़र रखी जा रही है, जिनकी गतिविधियां संदिग्ध नज़र आ रही हैं. इसी निगरानी और महीनों की जांच-पड़ताल के बाद गृह मंत्रालय ने कई संगठनों को प्रतिबंधित करने का ऐलान किया है. पिछले कुछ समय से लगातार सुर्खियों में रहा 'पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया' यानी PFI अब सवालों के घेरे में है. पीएफआई को लेकर लंबे समय से आशंका जताई जा रही थी कि इसके तार कुछ देश विरोधी ताकतों के साथ जुड़े हैं. इसकी पुष्टि करते हुए केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने इस संगठन को अगले 5 साल तक के लिए बैन कर दिया है.

गृह मंत्रालय की तरफ से जारी नोटिफिकेशन में ये स्पष्ट किया गया है कि 'PFI की गतिविधियां देश के लिए खतरा बन रही हैं. पीएफआई के दफ्तरों में गलत जानकारियां देकर लोगों को इकट्ठा किया जाता है. वेलफेयर ऑर्गनाइजेशन बताकर अपनी शाखाएं चलाने वाले इस संगठन के रिश्ते कई देशविरोधी या आतंकी संगठनों से जुड़े पाए गए हैं. इस संगठन के अन्य 8 सहयोगी संगठन भी देशविरोधी कार्य में संलिप्त पाए गए हैं. उन्हें भी 5 साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है.

PFI पर 5 साल का बैन, एक्शन पर महागठबंधन बेचैन? 
देश की आंतरिक सुरक्षा का मसला हो या बाह्य सुरक्षा का, ये विषय हमेशा से संवेदनशील माना जाता है. देश में किसी भी पार्टी या गठबंधन की सरकार रही हो, देश की सुरक्षा को सर्वोपरि रखा गया है. देश के सभी राष्ट्रीय या क्षेत्रीय सियासी दल हर मंच पर कहते रहे हैं कि देश की सुरक्षा के मसले पर सभी सियासी दल सरकार के साथ हर हाल में खड़े होंगे. लेकिन दावों से उलट हकीकत नजर आती है. जब भी इस तरह का कोई मसला सामने आता है, राजनीति भी जमकर होती है. इस बार भी ऐसा ही हो रहा है.

केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने जैसे ही PFI और उसके सहयोगी संगठनों पर बैन का ऐलान किया, मानो देश में सियासी तूफान खड़ा हो गया. केन्द्र में सत्तासीन BJP के विरोधी दलों ने सरकार को इस मसले पर जमकर घेरना शुरू कर दिया. यहां तक कि सरकार पर राजनीतिक साजिश के तहत कार्रवाई करने का आरोप लगा दिया. हालांकि सियासी दलों ने सीधे-सीधे तो कार्रवाई को गलत करार नहीं दिया, लेकिन सरकार के फैसले पर 'किंतु-परंतु' जैसे शब्दों का प्रयोग कर अपनी मंशा जाहिर कर दी. यहां तक कि बिहार भी इससे अधूता नहीं रहा.

PFI पर बैन से गरमाई सियासत, RJD-JDU को बैन से है ऐतराज़?
पीएफआई पर बैन की खबर सामने आते ही बिहार के सियासी दलों में बयान देने की होड़ लग गई. प्रदेश के सबसे बड़े और सरकार में सहयोगी दल RJD के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने कार्रवाई पर सवाल खड़े किए. उन्होंने इस कार्रवाई को धर्म विशेष से जोड़कर पूरे मामले को सांप्रदायिक रंग दे दिया. उन्होंने इशारों में सिर्फ मुस्लिम संगठनों के खिलाफ कार्रवाई का सरकार पर आरोप मढ़ दिया.

RJD की ही तरह सत्ता में काबिज JDU ने भी अपना रुख बयानों के जरिए साफ कर दिया. JDU ने भी कार्रवाई पर इशारों में सवाल उठाए. पार्टी की तरफ से खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने मोर्चा संभाला और कार्रवाई को राजनीति से प्रेरित करार दिया. ऐसे में जब राष्ट्रीय अध्यक्ष ही बयान दे रहे हों तो भला अन्य नेता चुप कैसे बैठते? उसके बाद तो एक से बढ़कर एक बयान आने लगे.

बिहार की सत्ता में शामिल एक अन्य पार्टी कांग्रेस ने अपने दोनों सहयोगियों की तुलना में थोड़ा नपा-तुला बयान देने में ही भलाई समझी. कांग्रेस के अन्य सहयोगी दल क्षेत्रीय राजनीति करते हैं, जबकि खुद कांग्रेस एक राष्ट्रीय पार्टी है. शायद अपने राष्ट्रीय रुतबे को देखते हुए कांग्रेस ने सरकार पर सीधा हमला बोलने से परहेज़ किया.

लालू की RSS को बैन करने की मांग, JDU ने BJP को बताया खतरनाक 
देश की सुरक्षा के मसले पर जब सबसे ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत होती है, तब सियासी दल अपनी राजनीति को और ज्यादा हवा देने लगते हैं. PFI पर बैन के मसले पर बोलते-बोलते RJD अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने RSS को ही निशाने पर ले लिया. लालू प्रसाद यादव ने कहा कि 'PFI से पहले तो RSS को बैन कर देना चाहिए. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जैसे संगठन PFI से ज्यादा खतरनाक और बदतर संगठन हैं. संघ इस देश के लिए खतरा है और ऐसे संगठन को गतिविधि की इजाज़त नहीं मिलनी चाहिए.' कुल मिलाकर लालू प्रसाद ने RSS को एक आतंकी संगठन से ज्यादा खतरनाक बता दिया.

JDU अध्यक्ष ललन सिंह ने बयानों के 'तीर' थोड़े और दूर तक चलाए. उन्होंने BJP को कटघरे में खड़ा करने के चक्कर में सारे नियम-कायदे और कानून को ताक पर रख दिया. ललन सिंह खुद एक सांसद हैं और सदन में देश की सुरक्षा के मसले पर कैसी गंभीरता की जरूरत होती है, उससे भी वाकिफ होंगे. लेकिन उन्होंने सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि 'अगर PFI को बैन करने का फैसला हुआ है तो सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि ऐसा क्यों किया गया है. सरकार को सारे तथ्य और प्रमाण पेश करने चाहिए, जिनके आधार पर ये कार्रवाई की गई है. अगर सरकार ऐसा नहीं करती है तो माना जाएगा कि ये कार्रवाई राजनीतिक एजेंडा चलाने की नीयत से हुई है.' ये बयान देते वक्त शायद ललन सिंह ये भूल गए कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मसलों को सार्वजनिक करने के लिए किसी भी सरकार या जांच एजेंसी को बाध्य नहीं किया जा सकता. इसके लिए तमाम एजेंसियों को विशेष अधिकार भी दिए गए हैं.

ललन सिंह की तरह बिहार सरकार में JDU कोटे से मंत्री श्रवण कुमार एक कदम और आगे बढ़ गए. उन्होंने तो RSS के साथ केन्द्र की सत्तासीन पार्टी BJP को ही प्रतिबंधित करने की मांग कर डाली. उन्होंने BJP को ही देश के लिए खतरा बता दिया.

BJP का महागठबंधन पर प्रहार, प्रतिबंध पर शर्मनाक सियासत
महागठबंधन के घटक दलों की तरफ से PFI पर बैन के मसले पर उठ रहे सवालों से BJP हमलावर हो गई. BJP ने एक-एक कर लालू प्रसाद यादव और ललन सिंह पर जमकर निशाना साधा. BJP ने कहा कि 'ये बेहद शर्मनाक है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले पर भी ये सियासी दल राजनीतिक रोटी सेंकने में लगे हैं. इन दलों को ऐसे संवेदनशील मामलों में भी धार्मिक रंग नजर आता है. केन्द्र सरकार ने एक ऐसे संगठन पर कार्रवाई की है जिसकी गतिविधियां संदिग्ध हैं. ये एक ऐसा संगठन है जिससे देश को खतरे की आशंका है. इसे किसी धार्मिक चश्मे से देखना सरासर गलत है. महागठबंधन के सारे दल सिर्फ तुष्टिकरण की राजनीति करते हैं.'

BJP से राज्यसभा सांसद और बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने बेहद तल्ख अंदाज में RJD सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को चुनौती दे डाली. उन्होंने कहा कि 'अगर लालू प्रसाद यादव को लगता है कि RSS एक आतंकी संगठन है और PFI से ज्यादा खतरनाक है, तो बिहार सरकार RSS पर कार्रवाई करे. अगर लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार में हिम्मत है तो बिहार में RSS को बैन करके दिखाएं. प्रदेश में आज उनकी सरकार है, तो उन्हें कार्रवाई करने से कौन रोकेगा?'

आरोप-प्रत्यारोप से इतना तो साफ है कि सभी दल अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगे हैं. अपने-अपने वोट बैंक को साधने की कवायद में सब लगे हैं. लेकिन पार्टी के तमाम 'माननीयों' को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वो जिस सदन में बैठते हैं, उसे लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है. देश के तमाम कानून वहीं से बनकर निकलते हैं. देश के विकास की बातें हों या देश की सुरक्षा का सवाल हो, इनका समाधान भी उसी सदन से होता है. इसलिए इन नेताओं और उनके सियासी दलों को 'राष्ट्र सर्वोपरि' की भावना के साथ काम करना होगा. अगर ऐसा नहीं हुआ तो ऐसे न जाने कितने संगठन पनप जाएंगे जो देश की सुरक्षा के लिए खतरा होंगे.

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