कोसी नदी पर बना बैराज अपनी मजबूती का अच्छा उदाहरण है. जहां हाल के वर्षों में प्रदेश में बने नए पुलों के गिरने की घटनाएं आम हो गई हैं, वहीं यह बैराज बरसों से अपनी फौलादी ताकत के साथ खड़ा है.
हर साल की तरह इस साल भी बिहार में कोसी नदी ने भारी तबाही मचाई है, इसलिए इसे 'बिहार का शोक' कहा जाता है. बता दें कि अभी तक कोसी बैराज से छह लाख क्यूसेक से ज्यादा पानी छोड़ा है, जिससे 56 साल का रिकॉर्ड टूटने की कगार पर है. बैराज के सभी 56 गेट खोल दिए गए हैं.
कोसी नदी पर बना बैराज अपनी मजबूती का अच्छा उदाहरण है. जहां हाल के वर्षों में प्रदेश में बने नए पुलों के गिरने की घटनाएं आम हो गई हैं, वहीं यह बैराज बरसों से अपनी फौलादी ताकत के साथ खड़ा है.
उच्च गुणवत्ता के कारण कोसी बैराज कई दशकों से टिका हुआ है. बिहार में हाल के वर्षों में बने पुलों की बुनियादी गुणवत्ता और निर्माण में लापरवाही को लेकर सवाल उठ रहे हैं. छोटे हो या बड़े, पुलों की हालत चिंताजनक होती जा रही है. इन सबके बीच कोसी बैराज एक मिसाल है, जो निर्माण की उत्कृष्टता और गुणवत्ता का बेहतरीन उदाहरण है.
सुपौल जिले के पास नेपाल की सीमा पर स्थित कोसी बैराज एक बेहतरीन उदाहरण है, जिसने अपनी मजबूत संरचना और उच्च गुणवत्ता के कारण कई दशकों से कोसी नदी के तेज बहाव को सहन किया है. यह बैराज 25 अप्रैल 1954 को भारत और नेपाल के सहयोग से बनाया गया था और आज भी मजबूती से खड़ा है.
पिछले शनिवार की रात जब कोसी नदी का पानी तेज बहाव पर था और बैराज पर दबाव बढ़ रहा था, तो क्षेत्र के लोग चिंतित थे कि कहीं बैराज टूट न जाए, लेकिन इसे बनाने वाली एजेंसी और इंजीनियरों के बेहतरीन काम की वजह से बैराज इस चुनौती को सहन कर सका और लोगों का भरोसा बना रहा है.
कोसी बैराज इस बात का सबूत है कि अगर निर्माण कार्य में गुणवत्ता, ईमानदारी और सही तकनीक का इस्तेमाल किया जाए, तो ऐसी आपदाओं से बचा जा सकता है. बिहार में पुलों के गिरने की घटनाएं यह सवाल उठाती हैं कि क्या निर्माण सामग्री की गुणवत्ता और इंजीनियरिंग के मानकों का सही पालन किया जा रहा है.
यह सरकार और संबंधित विभागों की लापरवाही को भी दिखाता है. आज कोसी बैराज एक उदाहरण बन गया है कि अगर निर्माण में पारदर्शिता और गुणवत्ता का ध्यान रखा जाए, तो किसी भी आपदा का सामना किया जा सकता है. कोसी नदी नेपाल के पहाड़ों से निकलती है और इसे सप्तकोसी भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें नेपाल की 7 नदियां—इन्द्रावती, सुनकोसी, तांबा कोसी, लिक्षु कोसी, दूध कोसी, अरुण कोसी, और तामर कोसी मिलती हैं. ये सभी नदियां मिलकर कोसी का जलस्तर और बहाव बढ़ाती हैं, जिससे हर साल बाढ़ की समस्या आती है. कोसी को बिहार का शोक इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसने अतीत में कई बार विनाशकारी बाढ़ें लाई हैं.
कोसी बैराज से सीख लेना जरूरी है. बिहार में लगातार पुलों के गिरने की घटनाएं राज्य के विकास में बड़ी रुकावट बन रही हैं. इन घटनाओं से निपटने के लिए कोसी बैराज जैसे संरचनात्मक उदाहरणों से सीख लेना आवश्यक है. यह समय की मांग है कि बिहार में निर्माण परियोजनाओं में गुणवत्ता और पारदर्शिता को प्राथमिकता दी जाए, ताकि भविष्य में ऐसी आपदाओं से बचा जा सके और राज्य का विकास धीरे-धीरे आगे बढ़ सके.
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