Bihar Samachar: बमुश्किल 10-15 फीसदी किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अनाज बेचते हैं, बाकी किसानों को औने-पौने दाम पर संतोष करना पड़ता है.
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Patna: बिहार में गेहूं की सरकारी खरीद लक्ष्य से काफी दूर है, वहीं किसान परेशान हैं कि पैक्स के जरिए गेहूं की खरीद नहीं हो रही है. न्यूनतम समर्थन मूल्य 1975 रुपए प्रति क्विंटल तय है, पर किसानों को औने-पौने दाम पर गेहूं बेचने पर मजबूर होना पड़ रहा है. छपरा जिले में तो किसानों ने जिलाधिकारी से इस बारे में शिकायत की है.
2006 से पैक्स की व्यवस्था
धान-गेहूं की सरकारी खरीद को समझने के पहले पैक्स के बारे में जान लेना होगा. बिहार में पैक्स यानी प्राइमरी एग्रीकल्चर क्रेडिट सोसाइटी और व्यापार मंडल के जरिए अनाज की सरकारी खरीद होती है. पैक्स पंचायत स्तर की सहकारी समितियां हैं. उसके पहले बाजार समितियां हुआ करती थी, जिन्हें साल 2006 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भंग कर दिया था. वजह ये थी कि बाजार समितियां किसानों से एक फीसदी शुल्क लेती थी, नीतीश सरकार ने इसे किसानों के साथ ज्यादती बताते हुए उसकी जगह पैक्स की व्यवस्था कायम की. किसानों के लिए ये कोई बाध्यता नहीं है कि वे पैक्स को ही अनाज बेचें, वे अपनी उपज कहीं भी बेच सकते हैं, लेकिन दिक्कत ये है कि कीमत उचित नहीं मिलती है. बमुश्किल 10-15 फीसदी किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अनाज बेचते हैं, बाकी किसानों को औने-पौने दाम पर संतोष करना पड़ता है.
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लक्ष्य से दूर सरकारी खरीद
इस साल सरकार ने 7 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीद का लक्ष्य तय किया था. 31 मई तक सरकारी खरीद होनी थी, जिसे अब बढ़ाकर 15 जून कर दिया गया है, फिर भी सरकारी खरीद लक्ष्य से अभी बहुत पीछे है. अभी तक 1.9 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है. हालांकि, पिछले साल महज 4198 टन सरकारी खरीद हुई थी. एक ओर सरकार का लक्ष्य पूरा नहीं हो रहा, जबकि किसान कह रहे हैं कि पैक्स के जरिए गेहूं की खरीद नहीं हो रही है. राज्य के कई जिलों से ऐसी शिकायतें सामने आई हैं.
छपरा जिले के मढ़ौरा प्रखंड की बहुआरा पट्टी पंचायत के किसानों ने जिलाधिकारी को आवेदन देकर पैक्स पर गेहूं की खरीद ना करने का आरोप लगाया है. मुखिया मनोज कुमार सिंह, शिवनाथ प्रसाद यादव, प्रभात सिंह, कृष्णा यादव, शैलेन्द्र सिंह, चंद्रिका सिंह, बिभूति सिंह, माया राय आदि किसानों का कहना है कि सरकारी खरीद ना होने से बिचौलियों के माध्यम से 1550 रुपए प्रति क्विंटल पर गेहूं बेचने को मजबूर हैं. किसानों का यह भी कहना है कि गेहूं खरीद हो गई होती तो अगली फसल के लिए भी खर्चे निकल आते मगर गेहूं की उपज के बाद भी वे मजबूर हैं.