BJP ने शिवराज को किनारे कर मोहन यादव को मौका दिया, कांग्रेस ज्योतिरादित्य के बदले कमलनाथ संग हो ली, बंटाधार तो होना ही था
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BJP ने शिवराज को किनारे कर मोहन यादव को मौका दिया, कांग्रेस ज्योतिरादित्य के बदले कमलनाथ संग हो ली, बंटाधार तो होना ही था

भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के ​बीच विरोधाभास केवल इसलिए नहीं है कि एक बहुत पुरानी पार्टी है तो दूसरी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है. दोनों दलों के बीच विरोध सोच की भी है. भाजपा जहां नए नेतृत्व की वकालत करती है तो कांग्रेस पुराने नेताओं को लेकर आगे बढ़ना पसंद करती है.

मोहन यादव होंगे मध्य प्रदेश के नए मुख्यमंत्री

कांग्रेस और भाजपा... देश के सबसे बड़े दल. एक देश की सबसे पुरानी पार्टी तो दूसरी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी. एक की स्थापना 1885 तो दूसरे की स्थापना 1980 में हुई थी. स्थापना के साथ ही दोनों दलों के काम करने के तरीकों में भी बहुत भारी अंतर है. भाजपा में जहां कार्यकर्ताओं को महत्व देने का दावा किया जाता रहा है तो कांग्रेस के बारे में कहते हैं कि वह पार्टी नेतृत्व के वफादारों को इनाम देने वाली पार्टी है. अब देखिए न, जिनके बारे में मीडिया में कहीं से भी कयासबाजी नहीं हो पाई, भारतीय जनता पार्टी ने उस आदमी को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा कर डाली.. जी हां, हम बात कर रहे हैं मोहन यादव के बारे में. विधायक दल की बैठक में मोहन यादव सबसे पीछे बैठे हुए थे, लेकिन जब प्रदेश के मुख्यमंत्री पद का ऐलान हुआ तो न केवल विधायक बल्कि राजनीतिक पंडित भी हतप्रभ रह गए.

एक तरफ भारतीय जनता पार्टी शिवराज सिंह चौहान जैसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री को भी पीछे कर युवा नेतृत्व की ओर जा रही है, वहीं कांग्रेस को जब इसी मध्य प्रदेश में 2018 में मौका मिला था तो वह युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के बदले कमलनाथ की ओर चली गई थी. मध्य प्रदेश में ही नहीं, बल्कि राजस्थान में भी युवा नेता सचिन पायलट को नजरंदाज कर बुजुर्ग अशोक गहलोत को वरीयता दी गई थी. कांग्रेस अपने चिर प्रतिद्वंद्वी भाजपा से इस बात से शायद सीख भी नहीं लेती कि वहां नेतृत्व की अहमियत कितनी है और राज्यों के नेताओं को नेतृत्व की बात माननी ही पड़ती है. 

हालांकि राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ही ऐसे नेता बचे थे, जो अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के समय खड़े किए गए थे. जैसा कि लग रहा है कि मध्य प्रदेश में जिस तरह से शिवराज सिंह चौहान को किनारे किया गया है, राजस्थान में भी वसुंधरा राजे सिंधिया को मुख्यमंत्री पद की रेस से बाहर कर दिया जाए. आलाकमान क्या होता है, पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने यह जता दिया है. 

पार्टी ने शिवराज सिंह चौहान और रमन सिंह को किनारे कर यह भी जाहिर कर दिया है कि पार्टी में युवा नेतृत्व को वरीयता दी जाएगी और अनुभवी नेताओं को भी साथ लेकर चलने का संदेश दिया जा रहा है. इनकी बानगी छत्तीसगढ़ में मिली, जब रमन सिंह जैसे अनुभवी नेता को विधानसभा स्पीकर बनाने का ऐलान किया गया.

कांग्रेस को 2018 में इन्हीं तीनों राज्यों में मौका मिला था. कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में तो अपेक्षाकृत युवा नेता भूपेश बघेल को मौका दिया पर मध्य प्रदेश और राजस्थान में पार्टी ने अनुभवी नेताओं के साथ चलना मुनासिब समझा. फिर क्या था, मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और राजस्थान में सचिन पायलट को नजरंदाज कर दिया गया और क्रमश: कमलनाथ और अशोक गहलोत को राजगद्दी सौंप दी गई. उसके बाद क्या हुआ, आप सभी ने देखा ही होगा. दोनों राज्यों में बगावत हुई. 

मध्य प्रदेश तो कांग्रेस के हाथ से निकल भी गया. राजस्थान बचा भी तो लेकिन बगावत और आपसी कलह के चलते एक बार फिर पार्टी को प्रदेश से हाथ धोना पड़ा और भारतीय जनता पार्टी इस बार सभी तीन राज्यों में काबिज हो गई है.

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