नीतीश कुमार को संयोजक पद दे देगी कांग्रेस पर फ्री हैंड कभी नहीं होने देगी
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नीतीश कुमार को संयोजक पद दे देगी कांग्रेस पर फ्री हैंड कभी नहीं होने देगी

Lok Sabha Election 2024: लगभग 20 साल से बिहार के मुख्यमंत्री बने रहने के बाद नीतीश कुमार अब राष्ट्रीय राजनीति में अपने लिए भाग्य आजमाना चाहते हैं. इसलिए उन्होंने एनडीए से नाता तोड़कर महागठबंधन से नाता जोड़ लिया. 

सीएम नीतीश कुमार (File Photo)

Lok Sabha Election 2024: इंडिया ब्लॉक की संरचना में कुछ फेरबदल हो सकता है. नीतीश कुमार को संयोजक बनाए जाने की चर्चाएं हैं. यह स​ब हुआ है जेडीयू में संगठनात्मक बदलाव के बाद. जब से ललन सिंह के बदले नीतीश कुमार ने अध्यक्षी संभाली है, तब से इंडिया ब्लॉक के नेताओं में हलचल है. वर्चुअल मीटिंग बुलाई जा रही है. एक दूसरे को फोन किए जा रहे हैं. नीतीश कुमार को संयोजक बनाए जाने की चर्चाएं हैं. सीट शेयरिंग पर बातचीत होने की बात कही जा रही है. मतलब राम मंदिर के शुभारंभ के मौके को भुनाते हुए अगर भाजपा देश को राममय बनाना चाहती है तो इंडिया ब्लॉक भी शांत नहीं बैठा है. एक कदम आगे बढ़ने की तैयारी है. सीट शेयरिंग का फॉर्मूला बन गया तो एक एक सीटों पर समीकरण के अनुसार रणनीतिक कदम भी उठाए जा सकते हैं. पर एक बात यह जरूर है कि अगर नीतीश कुमार संयोजक बनते हैं तो कांग्रेस उन्हें कभी फ्री हैंड नहीं होने देगी. कांग्रेस अंकुश हमेशा अपने पास रखना चाहेगी.

नीतीश कुमार ने जिस तरह की दबाव की राजनीति की है और जिसके वे मास्टर रहे हैं, उससे कांग्रेस उन्हें संयोजक का पद आसानी से दे सकती है लेकिन लालू प्रसाद और कांग्रेस नीतीश कुमार पर एक चेयरमैन भी बैठा सकते हैं. हो सकता है कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ही इंडिया ब्लॉक के चेयरमैन का पद संभाल लें. इंडिया ब्लॉक की चौथी बैठक में अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी ने तो खड़गे को संयोजक और पीएम पद के लिए चेहरा घोषित करने की मांग की ही थी. इसलिए खड़गे को चेयरमैन बनाना भी टेढ़ी खीर नहीं होगी. 

इसका मतलब यह होगा कि संयोजक के रूप में नीतीश कुमार के पास केवल एक पदनाम होगा. जब चेयरमैन होगा, तब संयोजक पद का बहुत मतलब नहीं रह जाता. फिर तो संयोजक केवल मीटिंग कॉल करने के लिए रह जाता है. असली काम तो चेयरमैन के जिम्मे आ जाता है. संयोजक का एक काम और होता है कि जब कोई घटक दल नाराज हो तो दौड़कर उसे मनाने जाएं और फिर आकर चेयरमैन को रिपोर्ट करें. जॉर्ज फर्नांडीज का वो दौर याद करिए, जब जयललिता नाराज होती थीं तो जॉर्ज फर्नांडीज दिल्ली से चेन्नई की उड़ानें भरते रहते थे. तो क्या बिहार के मुख्यमंत्री का पद छोड़कर नीतीश कुमार मल्लिकार्जुन खड़गे के सहायक के रूप में काम करना पसंद करेंगे.

दरअसल, लगभग 20 साल से बिहार के मुख्यमंत्री बने रहने के बाद नीतीश कुमार अब राष्ट्रीय राजनीति में अपने लिए भाग्य आजमाना चाहते हैं. इसलिए उन्होंने एनडीए से नाता तोड़कर महागठबंधन से नाता जोड़ लिया. नीतीश कुमार की लालसा यह थी कि कांग्रेस के बुरे दौर वाले समय में उनके भाग्य का सिक्का चमक सकता है लेकिन नीतीश कुमार को पहला झटका तब लगा, जब कांग्रेस कर्नाटक में भारी बहुमत से जीत गई.  उसके बाद से कांग्रेस का आत्मविश्वास इतना बढ़ा कि अपने दिन बहुरने की उम्मीद लगा बैठी और पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में अकेले कूद गई. नतीजा यह हुआ कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ राज्य गंवा बैठी और केवल तेलंगाना में जीत से संतोष करना पड़ गया. 

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अब पासा एक बार फिर पलटा है और कांग्रेस को नीतीश कुमार की जरूरत आन पड़ी है. नीतीश की साफ सुथरी छवि उत्तर भारत में कांग्रेस के लिए जरूरी है तो नीतीश कुमार भी इस मौके को भुनाने के लिए बेताब हैं. नीतीश पिछले 20 दिनों से कोपभवन में हैं तो कांग्रेस मनाने में लगी है. लालू प्रसाद यादव को भी डर इस बात का है कि तेजस्वी यादव को सीएम बनाने की जल्दी में डिप्टी सीएम पद भी गंवाना पड़ सकता है. इसलिए वो भी नीतीश कुमार को संयोजक बनवाने को राजी हो गए हैं और कांग्रेस को भी राजी करने में दिन रात एक किए हुए हैं. लेकिन जिस तरह कांग्रेस एक अंकुश रखना चाहेगी, लालू प्रसाद भी उसके हिमायती होंगे, इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता.

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