Bihar Politics: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बारी आई तो उन्होंने हिंदी में बैठक को संबोधित करना शुरू कर दिया. इस पर द्रमुक नेता टीआर बालू ने राजद सांसद मनोज झा से नीतीश कुमार के भाषण का अंग्रेजी अनुवाद करने की मांग की.
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Bihar Politics: इंडिया की 19 दिसंबर को नई दिल्ली में हुई चौथी बैठक में कुछ ऐसा हुआ, जिससे वहां मौजूद सभी दलों के नेता असहज हो गए थे. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हिंदी और हिंदुस्तान को लेकर कुछ ऐसा कहा कि सभी दलों के नेता चौंक गए थे. बैठक से बाहर निकले कुछ नेताओं ने तो यह भी कहा कि नीतीश कुमार की बात सुनकर सोनिया गांधी तो एकटक से उन्हें देखती रह गई थीं. बताया जा रहा है कि इंडिया ब्लॉक के कुछ दलों के नेताओं की ओर से नीतीश कुमार का नाम बतौर संयोजक प्रस्तावित किया जाना था लेकिन नीतीश कुमार की बातों को सुनकर किसी ने उनके नाम का प्रस्ताव नहीं किया. तो सवाल यह है कि राजनीति में हर एक कदम फूंक फूंककर रखने वाले नीतीश कुमार ने हिंदी और हिंदुस्तान का विवाद क्यों उठाया? क्या उन्होंने ऐसा जानबूझकर किया? दयानिधि मारन के बिहारी वाली बात पर तो वे कुछ भी नहीं बोले, इंडिया की बैठक में ऐसा बोलने की उनको क्या जरूरत महसूस हुई थी?
हुआ यूं कि इंडिया ब्लॉक की बैठक में जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बारी आई तो उन्होंने हिंदी में बैठक को संबोधित करना शुरू कर दिया. इस पर द्रमुक नेता टीआर बालू ने राजद सांसद मनोज झा से नीतीश कुमार के भाषण का अंग्रेजी अनुवाद करने की मांग की. इसके बाद नीतीश कुमार आपे से बाहर हो गए और हिंदी और हिन्दुस्तान को लेकर बैठक में सभी मौजूद नेताओं को उपदेश देने लगे. नीतीश कुमार ने यह भी कहा कि हिन्दुस्तान में रहने वाले सभी लोगों को हिंदी तो आनी ही चाहिए. बताया तो यह भी जा रहा है कि नीतीश कुमार ने मनोज झा को भी हड़का दिया, क्योंकि इंडिया की सभी बैठकों में वे ट्रांसलेटर की भूमिका अदा करते रहे हैं. नीतीश कुमार के इस रवैये से वहां मौजूद सभी नेता हतप्रभ रह गए थे.
नीतीश कुमार के तेवर के बाद बैठक में मौजूद कई नेता जो आराम से हिंदी बोल सकते थे, सबने अंग्रेजी में ही बोलना मुनासिब समझा. उसके बाद जिन दलों के नेताओं ने नीतीश कुमार को संयोजक पद के लिए प्रस्तावित करने का मन बनाया था, उन्होंने भी अपना मन बदल दिया था. इस तरह संयोजक पद नीतीश कुमार से दूर होता चला गया. उसके बाद पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने पीएम पद और संयोजक पद के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम का प्रस्ताव कर दिया और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने उनका समर्थन कर दिया. नीतीश कुमार के नाम पर चर्चा तक नहीं की गई और बैठक बिना किसी ठोकस नतीजे के खत्म कर दी गई.
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अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि नीतीश कुमार ने ऐसा क्यों किया. क्या वे इंडिया से निकलने का ठोस बहाना तलाश रहे हैं. इंडिया की चौथी बैठक में उन्हें किसी ने भी संयोजक पद के लिए प्रस्तावित नहीं किया, यह उनके लिए एक बड़ा बहाना हो सकता है. नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू कभी भी लोकसभा चुनाव राजद के साथ मिलकर नहीं लड़ी है. या तो वह अकेले मैदान में गई है या फिर भाजपा के साथ लड़ी है. हो सकता है यह रिकॉर्ड इस बार भी कायम रहे और नीतीश कुमार इंडिया से निकलने का ऐलान कर दें. बिहार की राजनीति में इस बात को लेकर हलचल तो है. खबर है कि जेडीयू के निर्वाचित पदाधिकारियों ने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने पर बल दिया है. इसलिए हो सकता है कि नीतीश कुमार एक बार फिर बिहार की राजनीति में कुछ अचरच वाला काम कर दें और मंत्रियों के चेहरे बदल जाएं.