Gopalganj byelections 2022: गोपालगंज में उपचुनाव क्यों है नाक की लड़ाई, नतीजे बिहार की राजनीति पर डालेंगे असर
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Gopalganj byelections 2022: गोपालगंज में उपचुनाव क्यों है नाक की लड़ाई, नतीजे बिहार की राजनीति पर डालेंगे असर

Gopalganj by elections 2022: गोपालगंज में कुल 3 लाख 30 हजार 978 वोटर हैं. जिनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 1 लाख 67 हजार 787 है. जबकि महिला मतदाताएं 1 लाख 63 हजार 180 हैं. 3 नवंबर को वोट पड़ेंगे और 6 को नतीजे आएंगे.

गोपालगंज में सबसे ज्यादा 65,000 मुस्लिम मतदाता हैं.

गोपालगंज: लालू प्रसाद यादव का गृह जिला और चार बार से जीत रही बीजेपी..इस विधानसभा सीट का नाम है गोपालगंज और यहां हो रहे हैं उपचुनाव. जाहिर सी बात है कि ये नाक की लड़ाई बन गई है. मुकाबला रोचक इसलिए है क्योंकि यहां त्रिकोणीय मुकाबला होगा. ओवैसी के तड़के से किसका सियासी जायका बिगड़ेगा, ये भी देखने वाली बात होगी. नतीजा जो भी हो लेकिन गोपलगंज के नतीजे बिहार की सियासत पर असर डालेंगे, इसलिए ये मुकाबाल बेहद अहम है. 

इस सीट के बारे में कुछ बुनियादी बातें
गोपालगंज में कुल 3 लाख 30 हजार 978 वोटर हैं. जिनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 1 लाख 67 हजार 787 है. जबकि महिला मतदाताएं 1 लाख 63 हजार 180 हैं. 3 नवंबर को वोट पड़ेंगे और 6 को नतीजे आएंगे. बिहार की गोपालगंज विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए बीजेपी ने दिवंगत प्रधान सुभाष सिंह की पत्नी कुसुम देवी को मैदान में उतारा है. वहीं, आरजेडी की ओर से मोहन गुप्ता उम्मीदवार हैं जिन्हें राज्य की सत्ताधारी महागठबंधन के सातों दलों का समर्थन मिला है.

गोपालगंज में सबसे ज्यादा 65,000 मुस्लिम मतदाता हैं. इसके बाद राजपूत 49,000, सैंतालीस हजार यादव, 38,000 वैश्य और ब्राह्मण करीब 35,000 हैं. कोइरी-कुर्मी वोटर भी करीब 16,000 की संख्या में हैं. 11,000 के करीब भूमिहार भी हैं. 

बिहार में सियासी समीकरण
चूंकि बिहार में सियासी समीकरण बदल चुके हैं. नीतीश और तेजस्वी साथ आ चुके हैं तो डेमोग्राफी के हिसाब से देखें तो महागठबंधन का पलड़ा भारी पड़ता दिखता है. कुल वोटर हैं करीब 2.14 लाख और अगर आप मुस्लिम और यादवों को मिला दें तो 1.12 लाख हो जाते हैं जो आधे से ज्यादा हैं. अगर आप इसमें कोइरी-कुर्मी को जोड़ दें तो इस 'त्रिशूल' के आगे कोई नहीं टिकता. 
वहीं, मुस्लिम और यादव पारपंरिक तौर पर आरजेडी के वोटर माने जाते हैं, कोइरी-कुर्मी नीतीश के साथ रहे हैं तो महागठबंधन काफी मजबूत स्थिति में नजर आता है. लेकिन खेल इतना सीधा है नहीं. यादव वोटों में सेंध लगाने के लिए लालू के साले साधु यादव की पत्नी इंदिरा यादव भी मैदान में उतरी हुई हैं. उधर ओवैसी भी अखाड़े में हैं तो मुसलमान वोट एकमुश्त आरजेडी के खाते में गिरेगा, ये भी पक्का नहीं है. 

मामला और रोचक इसलिए बन जाता है कि इस बार आरजेडी ने यादव नहीं वैश्य मोहन गुप्ता को प्रत्याशी बनाया है. लिहाजा उसे उम्मीद होगी कि वैश्य समाज से भी वोट पाए. ऐसा हुआ तो बीजेपी को नुकसान होगा. हाल ही में बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने 500 करोड़ के मेडिकल कॉलेज के साथ ही जिले को 600 करोड़ भी रुपये की सौगात दी थी. तो इसका असर भी देखा जा सकता है.

बीजेपी के सुभाष सिंह यहां चार बार से जीत रहे थे, उनकी पत्नी मैदान में हैं तो पार्टी को सहानुभूति वोट की उम्मीद होगी. ये हुआ तो सारे समीकरण बिखर सकते हैं. नतीजा जो भी आए गोपालगंज के नतीजे बड़ा संदेश देंगे कि नीतीश और तेजस्वी के साथ आने के प्रयोग को बिहार का वोटर कैसा ले रहा है. बोचहां के बाद बीजेपी यहां भी हारी तो 2024 और 2025 में आरजेडी-जेडीयू गठबंधन ज्यादा आत्मविश्वास के साथ उतरेगा.

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