विपक्षी एकजुटता का एक और पड़ाव पार कर लिया गया है. जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने मंगलवार (2 मई) को रांची में सीएम हेमंत सोरेन से मुलाकात की.
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Mission 2024: अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों को लेकर अभी से तैयारियां शुरू हो गई हैं. बीजेपी से अलग होने के बाद से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मोदी को सत्ता से बाहर करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंकने में लगे हैं. इसके लिए वो विपक्षी एकता की मुहिम जुटे हैं. इस कड़ी में एक और पड़ाव पार कर लिया गया है. जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने मंगलवार (2 मई) को रांची में सीएम हेमंत सोरेन से मुलाकात की. मिशन 2024 के लिहाज से ये मुलाकात काफी अहम मानी जा रही है.
दोनों नेताओं ने इस मुलाकात की तस्वीरों को शेयर किया है. सीएम सोरन ने कहा कि आज आवास में जनता दल (यूनाइटेड) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और माननीय लोकसभा सांसद आदरणीय श्री ललन सिंह जी से मुलाकात हुई. मुलाकात के दौरान कई विषयों पर चर्चा हुई. वहीं ललन सिंह ने कहा कि वे एक निजी कार्यक्रम में शामिल होने रांची आए थे. सीएम सोरेन से इस मुलाकात का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है. इससे पहले जेडीयू के राज्यसभा सांसद और प्रदेश अध्यक्ष खीरू महतो भी सीएम से मुलाकात कर चुके हैं. बीजेपी के खिलाफ इस घेराबंदी का जेएमएम इससे पहले ही समर्थन कर चुकी है.
अब दक्षिण भारत पर नजर
उधर नीतीश कुमार की नजर अब दक्षिण भारत पर है. आगामी 5 मई को वह ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक से मुलाकात करने वाले हैं. नीतीश की कोशिश होगी कि वह पटनायक को विपक्षी टीम का हिस्सा बना लें. नीतीश इससे पहले पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, यूपी में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे सहित राहुल गांधी से मुलाकात कर चुके हैं. सभी नेताओं ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए हरी झंडी दिखाई है.
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क्या सफल होंगे नीतीश कुमार?
विपक्षी दलों को एक छतरी के नीचे लाने में नीतीश कामयाब होते दिख रहे हैं. हालांकि, इसके बाद भी उनकी आगे की राह आसान नहीं है. पहला बड़ा कारण है कि नीतीश अभी खुद को पीएम पद से बाहर किए हुए हैं. लेकिन सभी जानते हैं कि वह इतनी मेहनत यूं ही नहीं कर रहे. पीएम बनने के लिए उन्हें सबसे ज्यादा सीटों की जरूरत होगी. यदि ऐसा नहीं हुआ तो उनका सपना टूटना तय है. दूसरी ओर- सीट बंटवारे को लेकर सिर-फुटौव्वल होना तय माना जा रहा है. क्षेत्रीय पार्टियों के ज्यादा दबदबे को कांग्रेस कैसे सहन करेगी, ये भी देखना होगा.