मधेपुरा की गिनती बिहार के पिछड़े जिले के रूप में होती है. यहां समस्याओं का अंबार है. हिमालय से आने वाली नदियां बाढ़ से हर साल तबाही मचाती हैं. बाढ़ से बच गए तो सिंचाई के अभाव में फसल खराब हो जाती है.
Trending Photos
Madhepura Lok Sabha Seat Profile: बिहार की मधेपुरा लोकसभा सीट को 'यादव लैंड' के नाम से भी जाना जाता है. इसके बारे में कहावत है कि 'रोम है पोप का और मधेपुरा है गोप का'. मतलब साफ है कि यहां यादवों का दबदबा चलता है. समाजवादियों को यहां फलने-फूलने का खूब मौका मिला. बीपी मंडल से लेकर शरद यादव, लालू प्रसाद यादव, राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने बारी-बारी से इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है.
इस सीट की एक और खास बात ये है कि यहां कभी भी किसी की लहर का असर नहीं पड़ता. 1952 के पहले चुनाव में पूरे देश में जब पंडित नेहरू का बोलबाला था, तो यहां से सोशलिस्ट पार्टी के किराई मुसहर ने जीत दर्ज की थी. इसी तरह से 2014 में जब पूरे देश में मोदी की लहर चली, तो यहां से पप्पू यादव जीते थे. बता दें कि 1952 में ये क्षेत्र भागलपुर और पूर्णियां संसदीय क्षेत्र का हिस्सा हुआ करता था.
इस सीट का राजनीतिक इतिहास
1967 में मधेपुरा संसदीय सीट अस्तित्व में आई और बीपी मंडल ने जीत हासिल की. सीएम बनने के उन्होंने सीट खाली की और उपचुनाव कराना पड़ा. हालांकि, उपचुनाव से पहले उनकी कुर्सी चली गई और वे फिर से सांसद चुने गए. इसके बाद से इस सीट पर हमेशा यादव प्रत्याशी के सिर पर जीत का सेहरा बंधा. 1967 से आजतक यहां पर कांग्रेस पर सिर्फ 3 बार ही जीत मिली, जबकि बीजेपी का कमल आजतक नहीं खिला.
लालू यादव को भी मिली हार
आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव इस सीट से 2 बार दिल्ली पहुंच चुके हैं, जबकि एक बार 1999 में शरद यादव के सामने हार का भी सामना करना पड़ा. वहीं जेडीयू की टिकट पर शरद यादव 4 सांसद रह चुके हैं. 2004 के उपचुनाव और 2014 के चुनाव में पप्पू यादव ने भी जीत का सेहरा बांधा. 2019 में जेडीयू से दिनेश चंद्र यादव चुने गए थे. उन्होंने आरजेडी की टिकट पर लड़ रहे शरद यादव को मात दी थी.
ये भी पढ़ें- सामाजवादियों के गढ़ रहा बांका लोकसभा सीट, जहां फंसती रही दिग्गजों की प्रतिष्ठा
यहां के समाजिक समीकरण
मंडलवादी राजनीति की प्रयोग भूमि मधेपुरा में जातीय गणित पर नजर डालें तो यादव करीब 3.3 लाख, मुस्लिम करीब 1.8 लाख, ब्राह्मण करीब 1.7 लाख, राजपूत करीब 1.1 लाख, मुसहर करीब 1.08 लाख, दलित करीब 1.10 लाख, कायस्थ करीब 10 हजार, भूमिहार करीब 5 हजार, कुर्मी करीब 65 हजार, कोयरी करीब 60 हजार और धानुक करीब 60 हजार मतदाता हैं.
यहां की मुख्य समस्याएं?
मधेपुरा की गिनती बिहार के पिछड़े जिले के रूप में होती है. यहां समस्याओं का अंबार है. हिमालय से आने वाली नदियां बाढ़ से हर साल तबाही मचाती हैं. बाढ़ से बच गए तो सिंचाई के अभाव में फसल खराब हो जाती है. किसानी कमजोर होने से ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली ज्यादातर आबादी गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बरस करती है. यहां के मेहनतकश लोग रोजगार के लिए पलायन को मजबूर हैं. छात्रों की शिकायत है कि कॉलेज में शिक्षकों की कमी है. महिलाओं को खराब लॉ एंड ऑर्डर से शिकायत है.