बिहार की सभी 40 लोकसभा सीटों को जीतने के लिए बीजेपी के चाणक्य यानी अमित शाह अब एनडीए को नए सिरे तैयार करने में जुटे हैं. इसके लिए शाह की नजर बिहार के छोटे-छोटे दलों पर हैं.
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Bihar Politics: बिहार में अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर हलचल काफी तेज है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हाल ही में दिल्ली में विपक्षी एकता की नींव रखकर वापस लौटे हैं, तो वहीं बीजेपी के चुनावी चाणक्य अमित शाह भी एक्टिव हो चुके हैं. उनके संपर्क में बिहार के छोटे दल हैं. इन दलों को अपने साथ जोड़कर वह एनडीए का नया स्वरूप तैयार करने में जुटे हैं.
इसी कड़ी में जीतन राम मांझी के बाद उपेंद्र कुशवाहा ने उनसे मुलाकात की. अब सवाल ये है कि क्या नीतीश-तेजस्वी के सामने छोटे दलों के नेता कहां टिक पाएंगे और छोटे दलों की पहली पसंद महागठबंधन की जगह बीजेपी क्यों है? इन सवालों का जवाब पिछले कुछ चुनावों के आंकड़ों में छिपा है.
छोटे दलों की पसंद BJP क्यों?
इस सवाल का सीधा सा जवाब है सीट शेयरिंग. छोटे दल जानते हैं कि महागठबंधन की भीड़ में उनके हिस्से में कुछ खास नहीं आएगा. आरजेडी और जेडीयू की ओर से पहले तो उन पर विलय कराने की कोशिश करेंगी और यदि ऐसा नहीं हुआ तो कम से कम सीटों में निपटाने का प्रयास किया जाएगा. वहीं बीजेपी के साथ भीड़ कम है, इससे उनको ज्यादा से ज्यादा सीटों पर लड़ने का मौका मिलेगा. इसके अलावा यदि बीजेपी वापसी करती है तो सरकार में भी हिस्सेदारी मिल सकती है. यूपी में अनुप्रिया पटेल इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं. उपेंद्र कुशवाहा भी इसे अनुभव कर चुके हैं.
बीजेपी को छोटे दलों से क्या फायदा?
सभी जानते हैं कि यूपी-बिहार की राजनीति में जातिवाद काफी हावी रहता है. छोटे-छोटे दलों को अपने साथ मिलाकर बीजेपी उन जातियों का वोट हासिल करने में कामयाबी हासिल करती है. पिछले चुनावों में ये साबित हो चुका है. 2014 और 2019 में इसी फार्मूले के तहत बीजेपी ने विपक्ष का पूरी तरह से सफाया कर दिया था. यूपी में निषाद पार्टी और अपना दल (एस) के सहारे दूसरी बार प्रचंड बहुमत के साथ सरकार में वापसी की.