Bihar Politics: पटना बैठक तक विपक्ष की गाड़ी को नीतीश कुमार खींचकर लाए और जैसे ही बेंगलुरू में नेशनल हाइवे मिला, ड्राइविंग सीट पर कांग्रेस पार्टी बैठ गई. मुंबई होते हुए गाड़ी जैसे ही दिल्ली पहुंची सभी ने नीतीश कुमार को दरकिनार कर दिया.
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Bihar Politics: विपक्षी गठबंधन (I.N.D.I.A.) की दिल्ली बैठक से विपक्ष को भले ही कुछ हासिल हो या ना हो, लेकिन नीतीश कुमार को एक बड़ा सबक जरूर हासिल हो गया. इस बैठक ने नीतीश कुमार को सिखा दिया कि किसी पर भी आंख बंद करके भरोसा नहीं करना चाहिए. नीतीश कुमार ने हाल-फिलहाल में तीन लोगों पर बहुत ज्यादा भरोसा कर लिया था और अब राजनीतिक भविष्य खतरे में पड़ गया है. इन तीन लोगों के नाम हैं- लालू यादव, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल. तीनों नेताओं ने नीतीश कुमार को राजनीति शून्यता की ओर भेजने में कोई कसर नहीं छोड़ी हैं.
सबसे पहले बात करते हैं लालू यादव की. लालू यादव ने नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री बनाने का ख्वाब दिखाया और 2022 के अंतिम महीनों में बीजेपी से अलग कर दिया. राजद की ज्यादा सीटें होने के बावजूद महागठबंधन की सरकार में नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री बनाया गया और तेजस्वी यादव के हिस्से में फिर से डिप्टी सीएम की कुर्सी आई. नीतीश के साथ लालू का करार था कि प्रधानमंत्री बनाने के लिए पूरी मदद की जाएगी. उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद बिहार को तेजस्वी के हाथों में सौंप दिया जाएगा. नीतीश को भरोसा दिलाने के लिए लालू हर मोर्चे पर उनके साथ खड़े दिखाए दिए. लेकिन जैसे ही विपक्ष में चेहरा की बात शुरू हुई तो राहुल गांधी का नाम आगे कर दिया. नतीजतन दिल्ली बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के पक्ष में सभी नेता खड़े दिखाई दिए.
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अब बात करते हैं दूसरे किरदार यानी ममता बनर्जी की. विपक्षी गठबंधन की दिल्ली बैठक में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक पल में नीतीश कुमार के अरमानों को धुआं-धुआं कर दिया. दरअसल, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी नेता ममता बनर्जी ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को विपक्षी गठबंधन का संयोजक बनाए जाने का प्रस्ताव रखा. राजद और जदयू को छोड़कर लगभग सभी दलों ने इस प्रस्ताव का समर्थन भी कर दिया. नीतीश और लालू की नाराजगी के बाद प्रस्ताव को अभी के लिए टाल दिया गया. लेकिन इससे एक बात तो साफ हो गई है कि भविष्य में भी नीतीश कुमार के नाम पर क्षेत्रीय दल ही सहमत नहीं होंगे.
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तीसरे शख्स के रूप में अरविंद केजरीवाल ने भी वही काम किया जो ममता बनर्जी ने किया. केजरीवाल को कभी कांग्रेस पार्टी से इतनी एलर्जी थी कि वो कांग्रेसी नेताओं के साथ खड़ा नहीं होना चाहते थे. उन्होंने दिल्ली के बाद पंजाब से कांग्रेस को उखाड़ फेंका. इस वजह से कांग्रेसी नेताओं को भी केजरीवाल फूटी आंख नहीं भाते थे. विपक्षी गठबंधन की नींव रखने के शुरुआती क्रम में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के नेताओं को साथ में खड़ा करने नीतीश कुमार को काफी जद्दोजहद करनी पड़ी. केजरीवाल काफी मान-मनौव्वल के बाद पटना में कांग्रेसी नेताओं के साथ मंच साझा करने के लिए राजी हुए थे. पटना बैठक तक विपक्ष की गाड़ी को नीतीश कुमार खींचकर लाए और जैसे ही बेंगलुरू में नेशनल हाइवे मिला, ड्राइविंग सीट पर कांग्रेस पार्टी बैठ गई. मुंबई होते हुए गाड़ी जैसे ही दिल्ली पहुंची तो केजरीवाल ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को पीएम उम्मीदवार घोषित करने का प्रस्ताव रख दिया.