स्थापना के 8 साल तक ही रहा राष्ट्रीय जनता दल का हनीमून पीरियड, पार्टी बनाने के बाद लालू प्रसाद यादव ने क्या खोया और क्या पाया?
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स्थापना के 8 साल तक ही रहा राष्ट्रीय जनता दल का हनीमून पीरियड, पार्टी बनाने के बाद लालू प्रसाद यादव ने क्या खोया और क्या पाया?

RJD Foundation Day: स्थापना काल के बाद 8 साल के समय को छोड़ दिया जाए तो लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल अब तक सत्ता के लिए संघर्ष ही करता दिख रहा है. 2004 में ही राजद के 16 सांसद जीत पाए थे तो 2019 में वह शून्य पर आउट हो गई थी. 

5 जुलाई को राष्ट्रीय जनता दल का स्थापना दिवस मनाया गया.

लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनता दल का आज शुक्रवार को 28वां स्थापना दिवस मनाया जा रहा है. आज ही के दिन 5 जुलाई 1997 को लालू प्रसाद यादव ने रघुवंश प्रसाद सिंह, कांति सिंह, मोहम्मद शहाबुद्दीन, मोहम्मद तस्लीमुद्दीन, अली अशरफ फातिमी और अब्दुल बारी सिद्दीकी आदि नेताओं के साथ मिलकर 8 सांसदों और सैकड़ों वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में पार्टी के गठन का ऐलान किया गया था. स्थापना काल ही से लालू प्रसाद यादव इस पार्टी के अध्यक्ष चुने जाते रहे हैं. हालांकि गठन के बाद राष्ट्रीय जनता दल एक बार ही चुनाव जीत पाई और 2005 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था. उसके बाद से आज तक राष्ट्रीय जनता दल कभी विधानसभा चुनाव नहीं जीत पाई. अब सवाल उठता है कि लालू प्रसाद यादव ने किन परिस्थितियों में राष्ट्रीय जनता दल के गठन की जरूरत समझी और उसे मूर्त रूप दे दिया. 

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दरअसल, तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव पर चारा घोटाले में संलिप्त होने का आरोप लगा था और 25 जुलाई 1997 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. लालू प्रसाद यादव ने इस्तीफा तो दे दिया था पर वे चाहते थे कि जनता दल के अध्यक्ष का पद उनके पास रहने दिया जाए. लेकिन जनता दल के वरिष्ठ नेता इस पर राजी नहीं हुए और लालू प्रसाद यादव के अध्यक्ष रहने का पुरजोर विरोध किया. इसके बाद लालू प्रसाद यादव ने जनता दल से बगावत करते हुए राष्ट्रीय जनता दल की नींव रखी थी.

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शुरुआती दिनों में लालू प्रसाद यादव बिहार की राजनीति में उतने मजबूत नेता नहीं माने जाते थे लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद से उन्होंने शुद्ध देसी अंदाज और ठाठ बाठ से लोगों का दिल जीतने का काम किया. भाजपा के राम मंदिर आंदोलन के वे खिलाफ रहे और जब लालकृष्ण आडवाणी राम रथ यात्रा लेकर बिहार पहुंचे तो लालू प्रसाद यादव ने उनको गिरफ्तार भी करवा लिया था. इससे मुसलमानों में भी लालू प्रसाद यादव की पैठ और मजबूत होती चली गई.

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2004 में केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार बनी तो लालू प्रसाद यादव छपरा से सांसद होते हुए रेल मंत्री बने थे. उन्हीं के समय में देश में गरीब रथ ट्रेन की शुरुआत हुई थी. 2009 के लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल को सफलता नहीं मिली और उसके केवल 4 सांसद जीतकर दिल्ली पहुंचे थे. चारा घोटाले में उन्हें सजा सुनाई गई थी. उसके बाद 22 अक्टूबर 2013 को सजायाफ्ता होने के कारण लालू प्रसाद यादव की लोकसभा सदस्यता खत्म हो गई थी.

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2005 में बिहार को सरकार चुनने के लिए 2 चुनावों से गुजरना पड़ा. एक चुनाव फरवरी 2005 में हुआ तो दूसरा चुनाव अक्टूबर 2005 में हुआ. फरवरी 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में राजद बहुमत पाने से दूर रह गई लेकिन 75 सीटों के साथ विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनी थी, जबकि वह 210 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. 138 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली जेडीयू 55 सीटें ही जीत पाई थी और भाजपा 103 सीटों पर चुनाव लड़ी पर केवल 37 सीट ही हासिल कर पाई थी. रामविलास पासवान की पार्टी 29 सीटें जीतकर किंगमेकर की भूमिका में थी, लेकिन उसने मुसलमान सीएम का राग अलापा और किसी भी दल से बात नहीं बन पाई थी.

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अक्टूबर 2005 में जेडीयू 139 सीटों पर चुनाव लड़कर 88 सीटें जीतने में कामयाब हो गई थी. इस चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल तीसरे नंबर पर खिसक गई थी. 102 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली भाजपा 55 सीट जीतकर दूसरे स्थान पर तो 175 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली राजद केवल 54 सीटें ही जीत पाई थी. इस चुनाव में भाजपा और जेडीयू का गठबंधन बहुमत पा चुका था और नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में एनडीए की सरकार बनी, जो आज भी चल रही है.

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2010 के विधानसभा चुनाव में तो राष्ट्रीय जनता दल को अब तक की सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा था. इस चुनाव में 243 में से 206 यानी 85 प्रतिशत सीटें एनडीए को हासिल हुई थी. जेडीयू के 141 में से 115 उम्मीदवार चुनाव में जीते थे तो भाजपा के 102 में से 91 प्रत्याशी जीते थे. इस चुनाव में राजद को केवल 22 तो कांग्रेस को केवल 4 सीटों से संतोष करना पड़ा था. इस चुनाव में राजद का लोजपा के साथ गठबंधन था. राजद ने इस चुनाव में 168 तो लोजपा 75 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. लोजपा को केवल 3 सीटें ही मिल पाई थीं.

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2015 का विधानसभा चुनाव विशेष परिस्थितियों में लड़ा गया था. इस चुनाव में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव एक खेमे में थे तो भाजपा, लोजपा, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा दूसरे खेमे में. इस चुनाव में राजद 101 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और उसने 81 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी का खिताब फिर अपने नाम कर लिया था. 101 सीटों पर लड़कर जेडीयू केवल 71 सीटें ही जीत पाई. वहीं भाजपा इस चुनाव में 53 सीटें जीतकर तीसरे नंबर की पार्टी बन गई थी.

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2020 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो इस चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस एक तरफ थे तो जेडीयू और भाजपा दूसरी तरफ. इस चुनाव में भी राजद 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी थी. भाजपा 74 सीटों के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी तो जेडीयू 49 सीटों के साथ तीसरे नंबर पर खिसक गई थी. इस चुनाव में एनडीए ने कुल मिलाकर 125 तो महागठबंधन केवल 110 सीट ही जीत पाई थी.

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विधानसभा चुनाव के अलावा बात कर लेते हैं लोकसभा चुनावों की. 2004 के लोकसभा चुनाव में राजद को 16 सीटें हासिल हुई थीं और लालू प्रसाद यादव केंद्र में रेल मंत्री बने थे. 2009 में राजद को बड़ा झटका लगा और पार्टी केवल 4 लोकसभा सीटें ही जीत पाई थी. 2009 की तरह 2014 में राजद को केवल 4 सीटें हासिल हुई थीं. 2019 में तो राष्ट्रीय जनता दल को 0 पर आउट हो गई थी. 2024 की बात करें तो इस चुनाव में भी राजद को 4 सीटें ही हासिल हुई हैं.

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इस तरह देखा जाएगा तो स्थापना के केवल 8 वर्षों तक राष्ट्रीय जनता दल का हनीमून पीरियड रहा और उसके बाद से पार्टी आज तक सत्ता के लिए संघर्ष ही करती दिख रही है. 2015 के विधानसभा चुनाव और 2022 में नीतीश कुमार के पलटी मारने से भले ही राष्ट्रीय जनता दल एक एक साल से अधिक समय तक सत्ता में रही पर उसके बाद नीतीश कुमार ने फिर से पलटी मारी और वह एक बार फिर विपक्ष की भूमिका में आ खड़ी हुई है. एक बात जरूर है कि नीतीश कुमार की पलटीमार राजनीति ने राष्ट्रीय जनता दल के कार्यकर्ताओं में जान जरूर फूंक दी है और अब वह टक्कर देने की स्थिति में आ खड़ी हुई है.

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