Bihar Yadav Politics: हिंदी पट्टी में 4 यादव नेता सीएम की कुर्सी तक पहुंचने में कामयाब हुए हैं. इनमें से एक बीजेपी के मोहन यादव भी शामिल हैं. कहा जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी ने यूपी-बिहार के वोटरों को खींचने के लिए ही मोहन यादव को सीएम बनाया गया है.
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Bihar Yadav Politics: 2025 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर राजद अध्यक्ष लालू यादव ने कमान संभाल ली है. उन्होंने हाल ही में दिवंगत नेता शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब से मुलाकात की. इस मुलाकात के बाद ये स्पष्ट हो गया कि लोकसभा चुनाव में मिले झटके से लालू उबरने की कोशिश में हैं और इसके लिए वह एक बार फिर से अपने परंपरागत 'MY' समीकरण को साधने में जुट गए हैं. मतलब साफ है कि आने वाले समय में बिहार में यादव-मुस्लिम पॉलिटिक्स पर खूब बात होगी. दरअसल, लालू यादव ने इस लोकसभा चुनाव में मुस्लिम-यादव की जगह अन्य बिरादरी के नेताओं को ज्यादा टिकट दिए थे. इससे राजद का परंपरागत (यादव और मुस्लिम) वोटर नाराज हो गया था. हालांकि, इसके बाद भी यह वोट बीजेपी में शिफ्ट नहीं हुआ था. ऐसे में सवाल ये है कि बीजेपी में भी कई यादव नेता हैं, बीजेपी ने भी मोहन यादव को मध्य प्रदेश का सीएम बनाया फिर भी यूपी-बिहार के यादवों का वोट उसे क्यों नहीं मिलता?
हिंदी पट्टी में 4 यादव नेता सीएम की कुर्सी तक पहुंचने में कामयाब हुए हैं. इनमें से सपा के संस्थापक दिवंगत नेता मुलायम सिंह यादव, उनके बेटे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, राजद अध्यक्ष लालू यादव और बीजेपी नेता मोहन यादव. मुलायम सिंह ने समाजवादी पार्टी का गठन किया और तीन बार यूपी के सीएम रहे. यादव वोटबैंक की दम पर केंद्र सरकार में रक्षा मंत्री भी रहे. मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश यादव भी 2012 से 2017 तक यूपी के सीएम रह चुके हैं. मुलायम सिंह के बेटे, बहू, भाई, भतीजे और पोते तक राजनीति में सक्रिय हैं. वहीं बिहार में राजद अध्यक्ष लालू यादव भी बिहार की कमान संभाल चुके हैं. उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को भी सीएम बना दिया था. इतना ही नहीं नीतीश कुमार की मदद से 2 बार अपने छोटे बेटे तेजस्वी यादव को डिप्टी सीएम और बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को मंत्री बना चुके हैं. यूपी-बिहार के यादव वोटरों को अपनी तरफ खींचने के लिए बीजेपी ने भी मध्य प्रदेश में मोहन यादव को सीएम बनाया है.
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लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने मोहन यादव को यूपी-बिहार के यादव लैंड में चुनाव प्रचार के लिए उतारा था. उन्होंने कई सीटों पर चुनावी रैलियां की थीं, लेकिन चुनाव परिणाम उसके अनुकूल नहीं आए. यूपी में बीजेपी की लुटिया डूब गई, वहीं बिहार में नीतीश कुमार ने किसी तरह से स्थिति को संभाल लिया. इस लोकसभा चुनाव से साफ हो गया कि यूपी-बिहार के यादव वोटरों ने मोहन यादव को अपना नेता नहीं माना है. बिहार बीजेपी इससे पहले भी कई कोशिशें कर चुकी है, लेकिन सभी नाकाम रहीं थीं. बीजेपी ने नंद किशोर यादव को विधानसभा अध्यक्ष बनाया है. यादव समाज के नित्यानंद राय केंद्र में मंत्री हैं. वह प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं.
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अपनी छाप क्यों नहीं छोड़ पा रहे हैं BJP नेता
अब सवाल ये है कि लालू, मुलायम या अखिलेश की तरह बीजेपी के यादव नेता अपनी छाप क्यों नहीं छोड़ पा रहे हैं. इसके लिए इन पार्टियों के शुरुआती दिनों के सफर को देखना होगा. मुलायम सिंह यादव हों या लालू यादव दोनों ने अपनी-अपनी पार्टी की स्थापना के दिनों में साइकिल से पूरे प्रदेश को मथा है. इससे जनता से उनका रिश्ता बिल्कुल परिवार वाला हो गया. इसके अलावा वह जब सत्ता में रहे तो उन्होंने यादवों को खूब लाभ पहुंचाया. वहीं बीजेपी पर अंगड़ों की पार्टी का ठप्पा लगा था. इसके कारण भी बहुत दूर तक ओबीसी वोटर इससे दूर रहा.