हेमंत सोरेन की गुजरात के आदिवासियों से की गई अपील से क्या बदलेगा चुनावी समीकरण?
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हेमंत सोरेन की गुजरात के आदिवासियों से की गई अपील से क्या बदलेगा चुनावी समीकरण?

गुजरात में  दो चरण में चुनाव कराए जाएंगे. पहला चरण में 1 दिसंबर को 89 सीट पर वोटिंग होगी जबकि दूसरे फेज में 5 दिसंबर को 93 सीट पर वोट डाले जाएंगे. इसके बाद 8 दिसंबर को गुजरात चुनाव के नतीजे सामने आएंगे.

सभी राजनीतिक दलों की निगाह आदिवासी वोटर्स पर हैं.

रांची: झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने गुजरात चुनाव को लेकर बड़ा बयान दिया है. उन्होंने आदिवासी सीट पर बीजेपी को हराने की अपील की है. मुख्यमंत्री ने गुरुवार को कहा, 'सभी आदिवासी भाईयों से अपील है कि वो एक भी ट्रायबल सीट बीजेपी को ना जीतने दें.'

गुजरात चुनाव का शेड्यूल जारी
दरअसल, निर्वाचन आयोग ने गुरुवार को गुजरात विधानसभा चुनाव का पूरा शेड्यूल जारी कर दिया. इसके तहत गुजरात में  दो चरण में चुनाव कराए जाएंगे. पहला चरण में 1 दिसंबर को 89 सीट पर वोटिंग होगी जबकि दूसरे फेज में 5 दिसंबर को 93 सीट पर वोट डाले जाएंगे. इसके बाद 8 दिसंबर को गुजरात चुनाव के नतीजे सामने आएंगे.

गुजरात पर बीजेपी का 24 साल से कब्जा
गुजरात बीजेपी का पांरपरिक राज्य माना जाता है. बीजेपी यहां 24 साल से सत्ता में है. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह दोनों गुजरात से आते हैं. पीएम मोदी गुजरात के 12 साल तक मुख्यमंत्री रहे. बीजेपी मोदी के नाम पर आज भी गुजरात में मतदाताओं को रिझाती है. ऐसे में बीजेपी एक बार फिर गुजरात को जीतने के लिए पूरा जोर लगा रही है. 

AAP की एंट्री से मुकाबला रोचक
वहीं, अन्य राज्यों की तरह गुजरात में भी जीत के लिए जातीय समीकरण सेट करने पर सभी दलों की निगाह रहती है. इस बार राज्य में AAP की एंट्री ने मुकाबला दिलचस्प कर दिया है. 

हेमंत के बयान का क्या मतलब?
यहां अगर हेमंत सोरेन के बयान पर गौर करें तो समझ में आएगा कि गुजरात में आदिवासी वोटर्स क्यों अहम हैं. दरअसल, गुजरात में 15 फीसदी आबादी आदिवासियों की है. इनके लिए 26 सीटें रिजर्व हैं. यानी 182 सीटों में से 26 पर इनका सीधा दबदबा है. मतलब 14 प्रतिशत सीटों पर आदिवासी वोटर्स हैं और अगर कुल देखें तो करीब 35 से 40 सीटों पर आदिवासी मतदाता असरदार हैं.

गुजरात में आदिवासियों का कितना प्रभाव
गुजरात में 24 फीसदी कोल के बाद ट्रायबल वोटर्स सबसे ज्यादा हैं. राज्य में ST सीट भारतीय जनता पार्टी की सबसे कमजोर कड़ी है. बीते 3 विधानसभा चुनाव में बीजेपी एसटी के लिए आरक्षित सीटों का 50 % पर भी भगवा झंडा नहीं लहरा पाई है. इसलिए सभी राजनीतिक दलों की निगाह आदिवासी वोटर्स पर हैं.

कहां-कहां है एसटी वोटर्स का प्रभाव
राज्य में डांग, दाहोद, पंचमहाल, सबारकांठा, वडोदरा, नवसारी, तापी, वलसाड, नर्मदा और भरूच में आदिवासी वोटर्स का प्रभाव है इसलिए बीजेपी आदिवासियों को रिझाने के लिए तरह-तरह ऐलान कर रही है. राष्ट्रपति पद पर द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी भी प्लान का हिस्सा है. इसके अलावा, पीएम मोदी की गुजरात में चुनावी रैली का प्लान भी ऐसे तैयार किया जा रहा है कि अधिक से अधिक आदिवासी सीट पर उनकी सभा हो सके.

बीजेपी की राह नहीं आसान
रिपोर्ट्स के अनुसार, बीजेपी ने आदिवासी सीटों को तीन हिस्सों में बांटा है. साथ ही, तमाम बड़े आदिवासी चेहरों को कमान सौंपी गई है. बीजेपी चाहती है कि वो पिछले बार से बेहतर प्रदर्शन करे क्योंकि 2017 में बीजेपी 99 सीट पर जीत हासिल कर पाई थी जो उसका 1995 में सरकार बनने के बाद से सबसे खराब प्रदर्शन है. ऐसे में बीजेपी गुजरात में सत्ता सिहांसन पर बरकरार रहने के लिए आदिवासी वोटर्स पर निगाह गड़ाए हुए है.

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