संथाल-आदिवासी आस्था का ऐसा पहाड़ जहां आसन लगाए देवता से पड़ता है उनका वास्ता, जानकर हो जाएंगे हैरान
Advertisement
trendingNow0/india/bihar-jharkhand/bihar1146989

संथाल-आदिवासी आस्था का ऐसा पहाड़ जहां आसन लगाए देवता से पड़ता है उनका वास्ता, जानकर हो जाएंगे हैरान

Santhal Tribal mountain Deity of Jharkhand: झारखंड के आदिवासियों का प्रकृति प्रेम अद्भुत भी है और अनुठा भी. एक तरफ प्राकृतिक संपदा से भरपूर झारखंड और दूसरी तरफ उनकी प्रकृति प्रेमी जनजाति. आदिवासियों का प्रकृति प्रेम और उनके देवता का पहाड़ से वास्ता देखना है तो आपको बोकारो जिले के बेरमो अनुमंडल में स्थित लुगू बुरू पहाड़ पर आना होगा. 

 (फाइल फोटो)

रांचीः Santhal Tribal mountain Deity of Jharkhand: आदिवासियों का प्रकृति प्रेम किसी से छुपा हुआ नहीं है, इनके सारे पर्व त्योहार प्रकृति की आस्था के प्रतीक हैं. इनका हर त्योहार का प्रकृति के द्वारा प्रदत्त वनस्पति, पेड़-पौधे, झरने, पहाड़, पशु-पक्षी और जानवरों के साथ शुरू और अंत होता है. इनकी प्रकृति पूजा ऐसी की इसे देखकर आप भी हैरान रह जाएंगे. प्रकृति में आस्था का ऐसा सैलाब उमड़ता शायद ही कहीं और देखने को आपको मिल जाए.  

ऐसे में झारखंड के आदिवासियों का प्रकृति प्रेम अद्भुत भी है और अनुठा भी. एक तरफ प्राकृतिक संपदा से भरपूर झारखंड और दूसरी तरफ उनकी प्रकृति प्रेमी जनजाति. आदिवासियों का प्रकृति प्रेम और उनके देवता का पहाड़ से वास्ता देखना है तो आपको बोकारो जिले के बेरमो अनुमंडल में स्थित लुगू बुरू पहाड़ पर आना होगा. 

रहस्यों से भरा पड़ा है लुगू बुरू पहाड़
इस लुगू बुरू पहाड़ के बारे में आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह आदिवासियों के लिए तीर्थ क्षेत्र है और साल में एक समय ऐसा भी होता है जब पूरे देश के आदिवासी यहां इकट्ठे होते हैं. यहां एक बड़ा आदिवासी मेला लगता है. जिसमें आदिवासियों की संख्या इतनी बड़ी होती है कि इसे देखकर आप खुच अपने आप पर भरोसा नहीं कर पाएंगे. यहां केवल देश ही नहीं बल्कि दुनिया के 28 देशों में रहनेवाले संथाल आदिवासी आते हैं और इस तीर्थ क्षेत्र को लेकर इनके मन में गजब की आस्था है. 

12 दिन केवल फल और पानी के सहारे होता है प्रकृति का अनोखा अनुष्ठान 
यहां के बारे में यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि आदिवासी समाज के साधक कहें या पंडित कहें वह इस जगह साल में इस खास मौके पर 12 दिनों तक जंगल के फलों व पानी के सहारे शक्ति की प्रार्थना और साधना करते हैं. इसको लेकर मान्यता है कि यह साधना इन साधकों को लुगू बाबा के जरिए मारांग बुरू की शक्तियां प्रदान करता है. इन्हीं शक्तियों का उपयोग ये लोग अपने गांव और समाज में जाकर लोक कल्याण के लिए करते हैं.  

शक्ति की साधना का केंद्र है लुगू बुरू पहाड़ 
जिस तरह से सनातनी हिंदू लोग अपने तंत्र-मंत्र की साधना के लिए विंध्याचल और कामाख्या देवी की पहाड़ी पर जाकर साधना करते हैं. संथाल आदिवासी समाज के साधक भी  लुगू बुरू पहाड़ जाकर उसी तरह की साधना कर ईश्वर की शक्तियां प्राप्त करते हैं. इस 12 दिन की असाध्य साधना के बाद मान्यता है कि संथालियों के आराध्य देव मारांग बुरू का इन साधकों को विशेष आशीर्वाद मिलता है. यहां हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन यह मेला लगता है जहां देश-विदेशों से संथाल आदिवासियों का हुजूम आता है. यहां लुगू बाबा के दर्शन प्राप्त करने के लिए 7 किलोमीटर की ऊंची और कठिन चढ़ाई भी करनी पड़ती है.

यहीं आदिवासियों के देव मारांग बुरू का लुगू बाबा को हुआ था दर्शन 
जिस तरह से हिंदू देवी देवताओं की बात होती है वैसे ही संथाल-आदिवासियों के आराध्य देव मारांग बुरू को माना जाता है. या दो शब्द मारांग औक बुरू से मिलकर बना है जिसका मतलब होता है 'बड़ा पहाड़' इसका मतलब आप शायद नहीं समझे होंगे तो आपको बता दें कि जैसे हिंदू धर्म में शिव के वास के बारे में कहा जाता है कि वह पहाड़ों पर बसते हैं वैसे ही संथाल आदिवासी के अराध्य देव के बारे में कहा जाता है कि यह बड़े पहाड़ पर रहने वाले देवता हैं. हालांकि झारखंड में मारांग बुरू की पूजा पारसनाथ की पहाड़ियों पर होता है, पश्चिम बंगाल में यह अयोध्या पहाड़ पर किया जाता है. लेकिन इस पहाड़ के बारे में मान्यता है कि 1000 साल पहले लुगू बुरू की पहाड़ पर संत लुगू बाबा को मारांग बुरू के दर्शन हुए थे. यहीं लुगू बाबा ने समस्त संथाल आदिवासियों को अपने रीति रिवाज व पूजा पाठ के बारे में सारी बातें बताई थी. तभी से यहां 12 दिनों तक यह मेला लगता है जिसमें साधक आकर 12 दिनों की कठिन साधना करते और अपने अराध्य देव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. 

इस पहाड़ी के पौधे, झरने के जल और दामोदर नदी को लेकर है यह मान्यता 
यहां पहाड़ के हर पौधे को संथाल आदिवासी अराध्य की कृपा मानते हैं और यह भी मानते हैं कि इन सभी में औषधीय गुण हैं. ऐसे में इसे दवा की तरह इस्तेमाल करने की प्रथा है और इससे उन्हें फायदा भी मिलता है. इस पहाड़ के झरने का पानी भी इसी तरह पविक्ष और औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है. यहां पास से ही दामोदर नदी गुजरती है जिसको लेकर इस समाज में मान्यता है कि यह मुक्ति दायिनी है और इस समाज के हर व्यक्ति को एक बार यहां आना चाहिए. जो लोग यहां नहीं आ पाते हैं उनके बारे में यह कहा जाता है कि उनकी मुक्ति के लिए परिवार के लोगों को उनकी अस्थियों को यहां दामोदर में विसर्जित करना चाहिए ताकि उन्हें मुक्ति मिल सके.

Trending news