वीआईपी तब बीजेपी की नई नवेली ऑप्शन थी जो आरजेडी से धोखा खा कर एनडीए में आई थी. सीट VIP को किस कीमत पर दे दी गई, ये मामला अब भी तस्दीक का है, विवादास्पद है.
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पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2020 (Bihar Assembly election) के लिए अलग-अलग गठबंधनों में सीट बंटवारे में हुए झोल से कई दल नाखुश हैं. खासकर बीजेपी-जेडीयू गठबंधन में हुए सीट बंटवारे ने बहुत से कार्यकर्ताओं को बागी बनने पर मजबूर कर दिया. कुछ सीटें ऐसी भी हैं जो पार्टी के अंदरूनी कलह की वजह से बलिदान की भेंट चढ़ गईं.
उन्हीं में से एक सीट है बक्सर जिले की ब्रह्मपुर विधानसभा सीट जो कभी बीजेपी के लिए पारंपरिक सीट मानी जाती थी और अब मुकेश सहनी के उम्मीदवार के पास है.
VIP के लिए छोड़ दी गई ब्रह्मपुर सीट
कई राजनीतिक पंडित व सियासत के मंझे खिलाड़ी जो हर दल में हैं, वे ब्रह्मपुर सीट को वीआईपी के लिए छोड़े जाने की वजह तलाशने में लगे हुए हैं. जाहिर है, बीजेपी यह कह सकती है कि पिछले विधानसभा चुनाव यानी कि 2015 में ब्रह्मपुर से पार्टी के प्रत्याशी वरिष्ठ नेता सीपी ठाकुर के बेटे विवेक ठाकुर चुनाव हार गए थे. अब वह राज्यसभा सांसद हैं तो उनकी जगह किसी योग्य उम्मीदवार की तलाश पार्टी नहीं कर सकी.
सवर्ण बाहुल्य इलाके में सन ऑफ मल्लाह का होगा टेस्ट
दिलचस्प बात यह है कि इस क्षेत्र में सवर्ण वोटरों की बहुलता है. अब जरा तसल्ली से समझिए कि ब्रह्मपुर जैसी सीट बीजेपी ने यूं हीं क्यों छोड़ दी? ऐसे कौन से समीकरण नजर आए कि सन ऑफ मल्लाह मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी को यह टिकट देना पड़ा?
सूत्रों की मानें तो यह सीट बीजेपी के अपने आंतरिक कलह की वजह से बलिदान की भेंट चढ़ गई. पहले पहल इस सवर्ण बहुल सीट पर केंद्रीय मंत्री व बेगूसराय सांसद गिरिराज सिंह अपने एक कैंडिडेट संतोष आनंद को उतारने की तैयारी में थे. पार्टी बैठकों में इसके लिए लॉबी करनी भी शुरू कर दी थी, लेकिन ऐन मौके पर टिकट बंटवारे में बीजेपी बिहार के बड़े नेताओं ने हस्तक्षेप कर काम बिगाड़ दिया.
टिकट देने और काटने को लेकर शुरू हो गया आंतरिक विवाद
दरअसल, बिहार बीजेपी के कुछ वरिष्ठ नेता केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह समर्थित उम्मीदवार को उतारे जाने के पक्ष में नहीं थे. इसलिए उन्होंने अन्य नामों पर चर्चा करनी शुरू कर दी. बेगूसराय सांसद इस बात से खफा से रहने लगे तो आतंरिक कलह तेज होने लगा. अब बीजेपी आलाकमान को लगा कि मामला अंदरूनी विवाद तक बढ़ सकता है. इसलिए यह सीट कुर्बान कर दी जाए.
वीआईपी तब बीजेपी की नई नवेली ऑप्शन थी जो आरजेडी से धोखा खा कर एनडीए में आई थी. सीट VIP को किस कीमत पर दे दी गई, ये मामला अब भी तस्दीक का है, विवादास्पद है.
30 हजार से भी ज्यादा के अंतर से हारे सीपी ठाकुर के बेटे
2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार विवेक ठाकुर को आरजेडी के शंभुनाथ ने 30 हजार से भी अधिक मतों से पराजित किया था. सवर्ण बाहुल्य इस इलाके में आरजेडी की जीत पर बीजेपी सिर्फ अफसोस ही कर सकती थी. हालांकि, ब्रह्मपुर में न सिर्फ सवर्ण बल्कि यादव वोटरों की जनसंख्या भी काफी अच्छी है. शायद यही कारण है कि यह सीट बीजेपी से ज्यादा आरजेडी के कब्जे में रही है. आरजेडी के अजीत चौधरी यहां से तीन बार लगातार विधायक बनते आए थे. 1995 से लेकर 2010 तक उनकी तूती बोलती रही.
इसके बाद 2010 में एनडीए प्रत्याशी दिलमणि देवी ने बीजेपी को ब्रेकथ्रू दिलाया और विधायक चुन कर आईं. इसके बाद 2015 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी ने फिर से इस सीट पर अपना हक जमा लिया. 1995 से पहले ब्रह्मपुर पर कांग्रेस नेताओं का बोलबाला था. ऋषिकेश तिवारी यहां से तीन बार कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुन कर आए थे.
इस बार दांव अलग है. एनडीए की तरफ से ब्रह्मपुर पर वीआईपी के कैंडिडेट की टक्कर महागठबंधन के आरजेडी उम्मीदवार से होगी. अब देखना यह होगा कि कौन बाजी मारता है.