बेतिया के ग्रामीण इलाकों की लड़कियां आईएस बनना चाहती हैं. शिक्षक बनना चाहती हैं, पुलिस बनना चाहती हैं. वह कहती हैं कि बस हमें पढना है. ये अपने परिवारों के रूढ़िवादी विचारों को तोड़ कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय आ रही हैं. अपने सपनों को उड़ान भरने के लिए जोश जूनून लग्न के साथ पढ़ाई कर रही हैं उसमें मुकबधीर भी शामिल हैं.
दरअसल, मझौलिया प्रखंड का कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय है, इसमें 108 छात्राएं हैं. आवासीय विद्यालय की शब्बू नेशा बताती है कि मुझे मेंरे परिवार के लोग नहीं पढ़ाना चाहते थे. मैं बहुत रोई तो मेरा एडमिशन हुआ. आज मैं इंग्लिश बोल सकती हूं. वहीं, गुड़िया खातून का कहना है कि मुझे मेरे घर के लोग नहीं पढ़ाना चाहते थे, लेकिन मेरी जिद से मेरा यहां नामांकन हुआ.
शिशु कुमारी का कहना है कि मेरी दीदी यहां से पढ़कर शिक्षक बनी हैं. मैं भी पढ़कर शिक्षक बनना चाहती हूं. बसमती कुमारी का कहना है कि मेरे समाज के लोग बच्चियों को नहीं पढ़ाते है, लेकिन मैं जिद से पढ़ रही हूं.
इस विद्यालय में आठ मुकबधीर भी शिक्षा ले रही हैं. उनको भी कुछ बनना है. शिक्षिका आशा कुमारी का कहना है कि बहुत कठिन परिश्रम किया जा रहा है. इन्हें पढ़ाया जा रहा है और इशारों से ये बहुत कुछ अब दूसरों से समझ सकती है, ना ये बोल सकती हैं और ना सुन सकती हैं.
इस आवासीय विद्यालय से पढ़ी अंजू कुमारी आज बिहार पुलिस में हैं. पूजा कुमारी शिक्षिका हैं. मोबीना खातून आयुर्वेद से की पढ़ाई कर रही हैं. कई पढ़ी लिखी बच्चियां आंगनबाड़ी और जीविका समूह चला रही हैं.
रिपोर्ट: धनंजय द्विवेदी
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