बिहार सरकार में कैबिनेट मंत्री नंद किशोर यादव यहां से विधायक हैं. 2015 के चुनाव में जब लालू और नीतीश एक साथ थे, तब नंदकिशोर यादव को जीत के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी.
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समीर वाजपेयी/पटना: राजधानी पटना की सबसे वीआईपी सीट पटना साहिब विधानसभा को माना जाता है. इस इलाके का ऐतिहासिक महत्व भी है. यहां गुरु गोविंद सिंह की जन्मस्थली है तो पतित पावनी गंगा भी बहती हैं. पटना सिटी का इलाका व्यावसायिक गतिविधियों का केंद्र माना जाता है. पटना साहिब विधानसभा बिहार की सबसे पुरानी सीटों में से भी एक है.
पहले इसका नाम पटना ईस्ट विधानसभा सीट हुआ करता था. 1957 में पहली बार चुनाव हुआ और लगातार दो चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली, लेकिन 1995 में यहां भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की और तब से लेकर अब तक ये सीट बीजेपी के पास है.
बिहार सरकार में कैबिनेट मंत्री नंद किशोर यादव (Nand Kishore Yadav) यहां से विधायक हैं. 2015 के चुनाव में जब लालू और नीतीश एक साथ थे, तब नंदकिशोर यादव को जीत के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी.
साल 2015 विधानसभा चुनाव में बीजेपी के नंदकिशोर यादव को 88 हजार 108 वोट मिले थे, जबकि दूसरे नंबर पर रहे आरजेडी के संतोष मेहता को 85 हजार 316 वोट से संतोष करना पड़ा था. जीत का अंतर महज 27 सौ 92 वोट का था जनता को नंदकिशोर यादव से काफी उम्मीदें थीं. कुछ पूरी हुईं, कुछ अधूरी रह गई.
आरएसएस से शुरुआत करने वाले नंदकिशोर यादव कॉर्पोरेटर भी रहे हैं. उप मेयर का पद संभाला और उसके बाद लंबा रास्ता तय करके विधानसभा पहुंचे, लेकिन जब चुनाव जीते तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा. लगातार 25 साल से पटना साहिब विधानसभा क्षेत्र का नेतृत्व कर रहे हैं.
साथ ही बिहार सरकार में पथ निर्माण विभाग का जिम्मा भी संभाल रहे हैं. छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय नंद किशोर यादव विपक्ष के नेता भी रह चुके हैं. पटना साहिब विधानसभा क्षेत्र में करीब 3 लाख 40 हजार मतदाता हैं, जिनमें करीब 1 लाख 83 हजार पुरुष जबकि 1 लाख 56 हजार महिला मतदाता हैं.विधायक के रूप में नंदकिशोर यादव ने क्या काम किये. इसकी लंबी सूची उनके पास है.
पटना साहिब विधानसभा में वैश्य वोटर सबसे ज्यादा हैं. साथ ही कोयरी-कुर्मी, यादव और मुस्लिम वोटरों की भी यहां अच्छी खासी तादाद है. पटना साहिब में कई महत्वपूर्ण काम हुए, लेकिन कई कामों में विधायक पिछड़ गए.
अब आपको विधायक का परफॉर्मेंस मीटर बताते हैं. जनता कहती है कि सड़क में सुधार हुआ. बिजली भी पहले से बेहतर हुई. उच्च शिक्षा में काम-काज औसत रहा है, लेकिन रोजगार उपलब्ध कराने में सफलता नहीं मिली है.
नंद किशोर यादव पटना सिटी को जाम की समस्या से निदान दिलाने को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं. साथ ही खांजेकला घाट के सौंदर्यीकरण नहीं करा पाने का मलाल भी है.
प्रकाश पर्व जैसे उत्सवों से दुनिया में नाम कमाने वाले पटना साहिब क्षेत्र में अब लोकतंत्र के सबसे बड़े उत्सव चुनाव की तैयारी चल रही है. पिछले चुनाव में बीजेपी का मुकाबला आरजेडी और जेडीयू गठबंधन से था, लेकिन इस बार तस्वीर बदल गई है. अब जेडीयू फिर बीजेपी के साथ है.
इसके अलावा सुथरी व्यक्तिगत छवि का फायदा भी नंदकिशोर यादव को मिलता है, लेकिन कहते हैं कि बिहार की सियासत में जाति, विकास और स्थानीय मुद्दे ही निर्णायक होते हैं.