नई दिल्ली: 19 अक्टूबर को महाराष्ट्र के उस्मानाबाद में सिर्फ इसलिए हिंसा भड़ गई क्योंकि एक फेसबुक पोस्ट में मुगल शासक औरंगजेब (Aurangzeb) की आलोचना की गई थी, जिससे ये लोग इतने नाराज हुए कि इन्होंने उस्मानाबाद के एक इलाके में तनाव पैदा कर दिया और इस हिंसा में 4 पुलिसकर्मी घायल हो गए. इस मामले में पुलिस ने अब तक 44 ज्ञात और 150 अज्ञात लोगों के खिलाफ सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और हत्या के प्रयास जैसी गंभीर धाराओं में मामला दर्ज किया है.


औरंगजेब को आदर्श मानते हैं कुछ लोग


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सोचिए, जिस औरंगजेब ने भारत के 46 लाख हिन्दुओं और सिखों की हत्या करवाई, लाखों हिन्दुओं को इस्लाम धर्म मानने के लिए मजबूर किया और सैकड़ों हिन्दू मन्दिर तुड़वा कर वहां मस्जिदें बनवा दीं, आज उसी देश में औरंगजेब की इतनी जबरदस्त फैन फॉलोइंग है. इस देश के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है? आपको याद होगा पिछले दिनों स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर को कायर बताने की कोशिश हुई थीं, जिन्होंने लगभग 15 साल काला पानी की भयानक सजा काटी थी. लेकिन तब न तो इस तरह से लोग सड़कों पर उतरे और न किसी ने विरोध किया. इससे पता चलता है कि आज भी हमारे देश का एक खास वर्ग सावरकर को नहीं बल्कि औरंगजेब जैसे मुगल शासकों को अपना आदर्श मानता है.


भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने का सपना


आपमें ये शायद काफी लोगों को ये बात पता नहीं होगी कि मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर ही सिखों के नौवें गुरु. गुरु तेग बहादुर को मौत की सजा दी गई थी. औरंगजेब भारत को एक इस्लामिक राष्ट्र बनाना चाहता था, और उसने कश्मीरी पंडितों को जबरदस्ती मुसलमान बनने के लिए मजबूर किया था. तब कश्मीरी पंडितों ने गुरु तेग बहादुर से मदद मांगी थी. उन्होंने कश्मीर के लोगों को सुरक्षा का भरोसा दिया था. इस बात से औरंगजेब इतना क्रोधित हुआ कि उसने गुरु तेग बहादुर को बंदी बना लिया और फिर उनके शिष्यों को उनके सामने ही जिंदा जला दिया. उसने गुरु तेग बहादुर को इस्लाम अपनाने के लिए भी कहा लेकिन जब उन्होंने इससे इनकार कर दिया तो औरंगजेब ने 11 नवंबर वर्ष 1675 को उनका सिर कटवा दिया. 


औरंगजेब के नाम की सड़कें


जहां उन्हें मौत की सजा दी गई थी, दिल्ली में आज वहीं गुरुद्वारा सीस गंज साहिब है. दुर्भाग्य की बात ये है कि आज से कुछ वर्ष पहले तक इसी गुरुद्वारे से कुछ किलोमीटर दूर दिल्ली की एक सड़क का नाम औरंगजेब रोड था, जिसका नाम बदल कर अगस्त 2015 में डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम रोड कर दिया गया था. यानी देश की आजादी के बाद लगभग 68 वर्षों तक दिल्ली में ही औरंगजेब के नाम पर एक सड़क थी. इसी सड़क से कुछ दूरी पर देश की संसद है. प्रधानमंत्री कार्यालय है, बड़े बड़े सरकारी दफ्तर हैं, इसी के पास देश के बड़े बड़े मंत्री और जज रहते हैं, सोनिया गांधी और राहुल गांधी जैसे बड़े बड़े नेता रहते हैं. लेकिन 68 वर्षों तक इस सड़क का नाम बदलने की कोशिश किसी ने नहीं की. इससे ये भी पता चलता है कि औरंगजेब के फैन क्लब का दायरा हमारे देश में कितना फैला हुआ है.


लोगों के दिमाग में मिलावटी इतिहास


औरंगजेब के बारे में ये वो तमाम बाते हैं, जिनके बारे में हमारे देश के लोगों को ईमानदारी से कभी नहीं बताया गया. आपने भी ये बातें स्कूल में कभी पढ़ी नहीं होगी. बल्कि इस मिलावटी इतिहास को लोगों के दिमाग में बैठाने के लिए कई तरीके अपनाए गए. इनमें से एक था, जिन अस्पताल में आप जन्म लेते हैं, जिन स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ने भेजते हैं, जिस सड़क का इस्तेमाल करते हैं, जिस हवाई अड्डे से सफर करते हैं और जिस संग्रहालय में इतिहास का स्मरण करने जाते हैं, उनका नाम मुगल शासकों, के नाम पर रख देना.


औरंगजेब के नाम पर 177 जगहों के नाम


मौजूदा समय में भारत में ऐसे जिलों, कसबों और गांवों की संख्या 700 से ज्यादा है, जिनके नाम मुगल शासकों के नाम पर हैं. इनमें 61 जगहों के नाम पहले मुगल शासक जहीरुद्दीन मोहम्मद उर्फ बाबर के नाम पर हैं. जिन्होंने राम मन्दिर तुड़वाया था. मुगल शासक हुमायूं के नाम पर 11 जगहों के नाम हैं. अकबर के नाम पर सबसे ज्यादा 251 जगहों के नाम हैं. मुगल शासक जहांगीर के नाम पर 141 जगहों के नाम हैं. शाहजहां के नाम पर भी हमारे देश में 63 जगहों के नाम हैं, और औरंगजेब के नाम पर तो 177 जगहों के नाम हैं.


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