Explainer: मुस्लिम आरक्षण पर घमासान, कलकत्ता हाई कोर्ट ने क्यों रद्द किया मुसलमानों के लिए OBC कोटा?
High Court News: मुस्लिम आरक्षण (Muslim resrvation) का मुद्दा बीजेपी (BJP) के कितने काम आएगा? इसका पता तो चार जून को चलेगा. लेकिन कलकत्ता हाई कोर्ट ने मुस्लिमों के आरक्षण क्यों खत्म कर दिया इसकी वजह आइए जानते हैं.
Lok Sabha Elections voting 6th phase: पश्चिम बंगाल (West Bengal) की टीएमसी (TMC) और कर्नाटक की कांग्रेस (Congress) सरकार द्वारा मुसलमानों को OBC कोटे में शामिल करने का मुद्दा लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण की वोटिंग से पहले भी सुर्खियों में है. छठे चरण की वोटिंग के दिन भी ये मुद्दा लाइम लाइट में रहा. दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के नेतृत्व में बीजेपी (BJP) ने चुनाव प्रचार की शुरुआत से ही इस मुद्दे पर आक्रामक रुख अपनाया. बीजेपी के नेता एकसुर में विपक्ष पर हिंदुओं से आरक्षण और अन्य लाभ छीनकर मुसलमानों को देने का आरोप लगा रहे हैं.
मुस्लिम आरक्षण को लेकर इस वक्त घमासान इसलिए तेज हुआ क्योंकि कलकत्ता हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में 2010 के बाद की OBC सूची को रद्द कर दिया था. इस सूची में मुस्लिमों की जातियां थी. अब यूपी के सीएम योगी ने कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए ममता सरकार पर निशाना साधा है. योगी ने कहा, 'भारत का संविधान धर्म के आधार पर आरक्षण की अनुमति नहीं देता है. TMC की सरकार ने तुष्टिकरण के तहत मुस्लिम जातियों को आरक्षण दिया था.'
वहीं SP नेता एस टी हसन ने कहा, 'जब उनकी सरकार आएगी तो संविधान में संसोधन करके मुस्लिमों को आरक्षण दिया जाएगा. मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा BJP के कितने काम आएगा? इसका पता तो 4 जून को चलेगा. लेकिन हाई कोर्ट ने मुस्लिमों के आरक्षण क्यों खत्म कर दिया, आइए इसकी वजह जानते हैं.
मुस्लिम आरक्षण पर फिर मुखर हुई बीजेपी
राजस्थान की भजनलाल सरकार ओबीसी में शामिल मुस्लिम जातियों के आरक्षण को रिव्यू करने की तैयारी कर रही है. लोकसभा चुनावों की आचार संहिता हटने के बाद सरकार हाई पावर कमेटी बनाकर मुस्लिम जातियों के OBC कोटे का रिव्यू करवाएगी. सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री अविनाश गहलोत ने मुस्लिम जातियों के ओबीसी आरक्षण का रिव्यू करवाने की पुष्टि की है. जिसके बाद सवाल उठ रहा है कि क्या राजस्थान में 14 मुस्लिम जातियों के ओबीसी आरक्षण पर संकट है?
अब राजस्थान में मुस्लिम आरक्षण पर संकट
राजस्थान में OBC की कैटेगरी में 91 जातियां हैं.
वहां 14 मुस्लिम जातियां OBC में शामिल हैं.
गुर्जर समेत 5 जातियां SBC कैटेगरी शामिल.
मुस्लिम OBC आरक्षण का रिव्यू करगी सरकार.
कलकत्ता हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
कलकत्ता हाई कोर्ट ने हाल ही में पश्चिम बंगाल (West Bengal) की ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) की अगुवाई वाली टीएमसी (TMC) की सरकार द्वारा प्रदेश के मुसलमानों को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) वर्ग के तहत दिए गए आरक्षण को रद्द कर दिया था. हाई कोर्ट ने अपने फैसले में मार्च 2010 और मई 2012 के बीच बंगाल सरकार द्वारा पारित आदेशों की पूरी श्रृंखला को रद्द कर दिया था, जिसके द्वारा 77 समुदायों जिनमें 75 मुस्लिम थे, उनको अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी के तहत आरक्षण दिया गया था.
जस्टिस तपब्रत चक्रवर्ती और राजशेखर मंथा की बेंच ने पाया कि पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग और राज्य सरकार के लिए आरक्षण प्रदान करने का एकमात्र आधार धर्म था, जो संविधान और अदालत दोनों के हिसाब से उचित नहीं है.
हाई कोर्ट का आदेश उस समय आया जब कुछ दिन पहले ही RJD सुप्रीमो लालू यादव ने मुस्लिम आरक्षण की खुली पैरवी करते हुए अल्पसंख्यक वोटों को अपनी ओर करने की कोशिश की थी. बीजेपी ने भी फौरन काउंटर किया. प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) समेत बीजेपी (BJP) के सभी बड़े नेताओं ने विपक्ष पर हिंदुओं से आरक्षण और अन्य लाभ छीनकर मुसलमानों को देने का आरोप लगा दिया.
बीजेपी को मिलेगा फायदा?
मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा कांग्रेस के खिलाफ सबसे ज्यादा प्रभावी एजेंडा बनाने में बीजेपी कामयाब होती दिख रही है. पीएम मोदी से लेकर बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और यूपी के सीएम योगी इसी मुद्दे पर कांग्रेस को घेर रहे हैं. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने साफ किया है कि कर्नाटक में कांग्रेस ने और पश्चिम बंगाल में ममता सरकार ने धर्म के आधार पर आरक्षण देने की साजिश की है.
जेपी नड्डा ने कहा, 'बाबा साहेब ने लिखा है कि धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं मिलेगा. कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल उनकी ये बात नहीं मान रहे हैं. अब यूपी के सीएम योगी ने भी कांग्रेस और टीएमसी को इसी मुद्दे पर घेरा. वहीं अब राजस्थान की बीजेपी सरकार के मंत्री ने कहा है कि जल्द ही प्रदेश में इस ओबीसी मुस्लिम आरक्षण का रिव्यू कराया जाएगा.'
कांग्रेस का रिएक्शन
झारखंड से आदिवासियों को मुद्दों को उठाते हुए खरगे ने बीजेपी पर आरोपों की बौछार की. कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने कहा, 'लोकसभा चुनाव अंतिम दौर में पहुंच चुका है. BJP बौखला गई है. इसलिए हिंदू-मुस्लिम कर रही है.'
अब अगर बात करें बंगाल में मुस्लिम आरक्षण को रद्द करने के कोलकाता हाईकोर्ट के फैसले की, तो पश्चिम बंगाल में सबसे पहले लेफ्ट मोर्चा की सरकार ने 41 मुस्लिम वर्गों की पहचान की थी. हालांकि मुस्लिमों को बड़े पैमाने पर आरक्षण TMC के सत्ता में आने के बाद मिल सका.
मामले के तथ्य
22 मई को दिए गए अपने फैसले में, कोलकाता हाई कोर्ट ने कहा कि 5 मार्च और 24 सितंबर, 2010 के बीच, पश्चिम बंगाल की सरकार ने समान शब्दों वाली कई अधिसूचनाएं जारी कीं, जिनमें 42 वर्गों से जिनमें 41 मुस्लिम समुदाय से थे, उन्हें OBC के रूप में दर्शाया गया. ऐसा नोटिफिकेशन उन्हें संविधान के अनुच्छेद 16(4) के तहत सरकारी रोजगार में आरक्षण और प्रतिनिधित्व का अधिकार देता है.
उसी साल 24 सितंबर को कुछ वर्गों को OBC-A (अति पिछड़ा) और कुछ को OBC- B में उप-वर्गीकृत करने का आदेश जारी किया गया था.
हाई कोर्ट में मुसलमानों को दिए गए इस आरक्षण को पहली चुनौती 2011 में इस आधार पर दी गई कि ओबीसी के रूप में 42 वर्गों की घोषणा पूरी तरह से धर्म पर आधारित थी. उन्हें ओबीसी में लिस्टेड करना किसी हिसाब से उचित नहीं था. वहीं सर्वेक्षण का काम करने वाले आयोग द्वारा किया गया सर्वे अवैज्ञानिक था.
गौरतलब है कि मई 2012 में, ममता बनर्जी की सरकार ने अन्य 35 वर्गों को OBC के रूप में वर्गीकृत किया, जिनमें से 34 मुस्लिम समुदाय से थे. इस फैसले को भी HC में चुनौती दी गई.
मार्च 2013 में, पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा) (रिक्तियों और पदों का आरक्षण) अधिनियम, 2012 अधिसूचित किया गया था. जिसमें सभी 77 (42+35) वर्गों को नये ओबीसी को अधिनियम की अनुसूची में शामिल किया गया. इस अधिनियम को भी चुनौती देते हुए दो याचिकाएं हाई कोर्ट में दायर हुई थीं.
आरक्षण पर छिड़ी कानूनी लड़ाई
अधिकांश मामलों की तरह यहां भी आरक्षण को चुनौती दी गई थी. तब हाई कोर्ट ने इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ (मंडल निर्णय) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बहुत अधिक भरोसा किया.
दरअसल 1992 में नौ जजों की बेंच ने कहा था कि केवल धर्म के आधार पर OBC की पहचान कर उन्हें आरक्षण नहीं दिया जा सकता.
हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी
कोलकाता हाई कोर्ट ने अपने फैसले को स्पष्ट करते हुए कहा, 'ऐसा प्रतीत होता है कि इन समुदायों को ओबीसी घोषित करने के लिए 'धर्म' ही एकमात्र मापदंड रहा है. वहीं आयोग ने जो रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, वो केवल ऐसी धर्म विशिष्ट सिफारिशों पर पर्दा डालने और छिपाने के लिए थी.'
हालांकि आयोग ने माना कि सरकार ने ओबीसी आरक्षण के भीतर उप-वर्गीकरण बनाने से पहले उससे परामर्श नहीं किया. लेकिन उन्होंने तर्क दिया कि ऐसी कार्रवाई उसके दायरे से बाहर थी. अदालत ने ये भी कहा कि राज्य सरकार को भविष्य में उप-वर्गीकरण सहित निष्पक्ष वर्गीकरण करने के लिए आयोग से उचित परामर्श करना चाहिए.