Captain Anuj Nayyar Story: 'ये अंगूठी रख लो और मेरी मंगेतर को दे देना, मुझसे ये बोझ उठाया नहीं जाता..', अपने साथी को यह कहते हुए भारत मां का एक 'वीर सिपाही' दुश्मन को सबक सिखाने निकल पड़ा. लैला-मजनूं, रोमियो-जूलियट और शीरीं-फरहाद की प्रेम कहानियां तो आपने कई बार सुनी होगी. लेकिन, भारत के एक वीर सपूत की प्रेम कहानी ऐसी है, जिसकी कुर्बानी आपकी आंखें नम कर देगी. ये कहानी कैप्टन अनुज नय्यर (Anuj Nayyar) की है, जिन्होंने देश के लिए सिर्फ 24 साल की उम्र में हंसते-हंसते अपनी जान कुर्बान करी दी.


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28 अगस्त 1975 को हुआ था जन्म


भारत मां के इस बहादुर बेटे का आज जन्मदिन है. अनुज नय्यर (Anuj Nayyar) का जन्म 28 अगस्त 1975 को दिल्ली में हुआ था. उनके पिता प्रोफेसर थे, जबकि मां दिल्ली यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में काम करती थीं. बचपन से ही बहादुर और देश प्रेम की भावना रखने वाले अनुज का नाम भारत के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है.


शादी से 2 महीने हो गए थे शहीद


अनुज नय्यर (Anuj Nayyar) की मां ने एक मीडिया इंटरव्यू में बताया था कि उनका बेटा अपने साथ पढ़ने वाली एक लड़की को पसंद करता था. दोनों की सगाई हो गई थी और शादी की तारीख भी तय कर दी गई थी. 10 सितंबर 1999 को अनुज की शादी होनी थी. लेकिन वक्त को कुछ और ही मंजूर था और 7 जुलाई 1999 को खबर आई की अनुज वीरगति को प्राप्त हो गए.


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द्रास के टाइगर की कहानी


'द्रास का टाइगर', कैप्टन अनुज नय्यर (Anuj Nayyar) की जीवनी है. कैप्टन अनुज 1999 के कारगिल युद्ध में द्रास सेक्टर की सुरक्षा के लिए लड़ते हुए शहीद हुए थे. 'द्रास का टाइगर' किताब, अनुज की मां मीना नय्यर और हिम्मत सिंह शेखावत ने लिखी है.


जंग पर जाने से पहले उतार दी थी सगाई की रिंग


दुश्मन खेमे में जाने से पहले अनुज नय्यर (Anuj Nayyar) ने अपनी सगाई की अंगूठी उतारकर अपने साथी को यह कहते हुए दे दी थी कि अगर वो जंग से जिंदा लौटते हैं तो वो अंगूठी वापस ले लेंगे, लेकिन अगर शहीद होते हैं तो उनकी मंगेतर तक यह अंगूठी पहुंचा दी जाए. वह नहीं चाहते कि उनके प्यार की निशानी दुश्मन के हाथ लगे. अफसोस, अनुज की शहादत के बाद उनके शव के साथ वह अंगूठी भी उनके घर पहुंची थी.


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कदम-कदम पर मौत, नहीं डगमगाया हौसला


तारीख 6 जुलाई 1999, 17वीं जाट बटालियन को पॉइंट 4875 से दुश्मनों को खदेड़ने की जिम्मेदारी मिली थी. टीम की कमान 24 साल के कैप्टन अनुज नय्यर (Anuj Nayyar) के हाथों में थी. सामने कदम-कदम पर मौत थी. दुश्मनों की संख्या का कोई अंदाजा नहीं था, मगर कैप्टन का हौसला डगमगाया नहीं. टीम अभियान के लिए आगे बढ़ने लगी लेकिन लगातार पाकिस्तानी घुसपैठियों की तरफ से भारी गोलाबारी हो रही थी। हर चुनौतियों को पार करते हुए वह मंजिल के बेहद करीब थे। जख्मी हालत में एक के बाद एक 9 दुश्मनों को ढेर कर दिया, पाकिस्तान के तीन बड़े बंकर तबाह कर दिए, लेकिन एक ग्रेनेड सीधा उनपर पड़ा और वह घायल हो गए थे.


घायल होने के बाद भी नहीं मानी हार


कैप्टन अनुज नय्यर (Anuj Nayyar) की टीम ने 4 में से 3 बंकरों को सफलतापूर्वक तबाह कर दिया, लेकिन चौथे बंकर को नष्ट करने के दौरान दुश्मनों की तरफ से दागे गए ग्रेनेड ने कैप्टन अनुज नय्यर को बुरी तरह घायल कर दिया था. गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी उन्होंने अपनी बची हुई टीम के साथ हमला जारी रखा. उनकी टीम का कोई सदस्य इस अभियान में नहीं बच पाया और कैप्टन अनुज नय्यर भी वीरगति को प्राप्त हुए. लेकिन, दो दिन बाद ही प्वाइंट 4875 पर चार्ली कंपनी की विक्रम बत्रा के नेतृत्व वाली टीम ने भारत का वापस कब्जा हासिल किया.


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परिवार के साथ फूट-फूटकर रोई एक लड़की


7 जुलाई 1999, ये वो तारीख है जब कैप्टन अनुज नय्यर (Anuj Nayyar) के घर के फोन की घंटी बजती है और उनके पिता प्रोफेसर नय्यर को बताया जाता है कि 'आज सुबह साढ़े पांच बजे, देश की महान सेवा करते हुए हमने अनुज को खो दिया.' कैप्टन अनुज नय्यर का पार्थिव शरीर जब तिरंगे में लिपटा हुआ दिल्ली पहुंचा तो परिवार के साथ एक लड़की भी फूट-फूटकर रो रही थी. यह वही लड़की थी, जिससे अनुज की शादी होने वाली थी. कैप्टन अनुज नैय्यर को युद्ध में अनुकरणीय वीरता के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र (भारत का दूसरा सर्वोच्च वीरता पुरस्कार) दिया गया था.
(इनपुट- न्यूज़ एजेंसी आईएएनएस)