भूपेंद्र हुड्डा के लिए क्यों संजीवनी की तरह है आदमपुर उपचुनाव? जीते तो कैसे तीसरी बार बनेंगे CM!
आदमपुर उपचुनाव कांग्रेस के रिवाइवल के साथ ही पूर्व सीएम भूपिंद्र हुड्डा की साख को लेकर भी है. हुड्डा ने खुद प्रचार में जनता के सामने कहा कि आप विधायक नहीं चुन रहे बल्कि मुझे सीएम भी बना रहे हैं.
नई दिल्ली: आदमपुर उपचुनाव बहुतों की साख का सवाल बन गया है. बीजेपी को सियासी बंजर जमीन पर कमल खिलाना है तो वहीं कांग्रेस के लिए यह चुनाव संजीवनी बूटी की तरह साबित होगा. इनेलो के लिए यहां अपनी नई पौध की तलाश है तो वहीं कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा ने इसे अपनी नाक का सवाल बना लिया है. हुड्डा पार्टी प्रत्याशी जयप्रकाश के समर्थन में जहां भी प्रचार करने गए, वहां के लोगों से यही कहा कि यह चुनाव मेरा है. अगर जयप्रकाश को जिताओगे तो मैं सीएम बनूंगा.
इस आदमपुर उपचुनाव के बहाने प्रदेश कांग्रेस पूर्व CM भूपेंद्र सिंह हुड्डा की 'ब्रांडिंग' भी करती दिखी. चुनाव प्रचार में कांग्रेसियों की जुबान पर हुड्डा का ही नाम था, जबकि प्रत्याशी जयप्रकाश थे. कांग्रेस इस चुनाव को जयप्रकाश और BJP के भव्य बिश्नोई के मुकाबले से ज्यादा भूपेंद्र हुड्डा Vs कुलदीप बिश्नोई बना मान रहे हैं. आदमपुर कुलदीप बिश्नोई का गढ़ है और भाजपा से उनके बेटे भव्य उम्मीदवार हैं. खास बात यह भी है कि यहां से बीजेपी ने इससे पहले कभी इस सीट को नहीं जीत पाई है. लेकिन इस बार चूंकि बिश्नोई कांग्रेस छोड़ बीजेपी में चले गए और आदमपुर से इस्तीफा दे दिया. तो सीट खाली हो गई. आदमपुर से भव्य बिश्नोई को टिकट मिलेगा, इसकी बिसात कुलदीप ने बीजेपी में शामिल होते ही बिछा दी थी. भूपेंद्र सिंह हुड्डा राज्यसभा चुनाव के बाद ही से कुलदीप बिश्नोई से चिढ़े-चिढ़े से नजर आ रहे हैं.
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बिश्नोई से 36 का आंकड़ा
हरियाणा में 36 बिरादरी हैं. पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा और कुलदीप के बीच भी 36 का आंकड़ा चल रहा है. हरियाणा में कांग्रेस ने साल 2005 के विधानसभा चुनाव में तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष भजन लाल के नेतृत्व में 67 सीटें जीती थीं. कायदे से वही मुख्यमंत्री के दावेदार थे, लेकिन हाईकमान ने उनकी जगह भूपेंद्र सिंह हुड्डा प्रदेश की कमान दे दी. यहीं से भजनलाल-कुलदीप नाराज हो गए. दोनों ने हरियाणा जनहित कांग्रेस का गठन किया.
कांग्रेस की कोर कमेटी से बाहर
भूपेंद्र हुड्डा ने प्रदेश में अपनी छाप बनाए रखी है, लेकिन लगता है कि आलाकमान उनसे नाराज है. कारण यह है कि हुड्डा को कांग्रेस की कोर कमेटी से बाहर रखा गया है. कुर्सी संभालते ही मल्लिकार्जुन खड़गे ने 47 मेंबर की स्टीयरिंग कमेटी बनाई. कांग्रेस में अब यही कमेटी पार्टी के हित-अहित की चर्चा करेगी. इसमें भूपेंद्र हुड्डा नहीं रखा गया है. जबकि उनकी धुरविरोधी कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला को मेंबर बनाया गया है. ये दोनों हरियाणा से आते हैं. हुड्डा के लिए यह बड़ा झटका है क्योंकि वह सांसद बेटे दीपेंद्र हुड्डा समेत खड़गे के नामांकन के प्रस्तावक थे.
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हरियाणा में गुटबाजी बड़ी वजह
हरियाणा में कांग्रेस खेमे की गुटबाजी किसी से छुपी नहीं है. यहां प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस में ही चार गुट हैं. भूपेंद्र सिंह हुड्डा के अलावा कुमारी सैलजा, रणदीप सुरजेवाला और किरण चौधरी का अपना-अपना गुट है. लेकिन हाईकमान के पास सबकुछ अच्छा-अच्छा दिखाने का दावा भी करते हैं. फिलहाल संगठन पर हुड्डा गुट काबिज है. हरियाणा में 2024 में विधानसभा चुनाव होंगे. ऐसे में उससे पहले हुड्डा अपनी CM चेहरे के दावे को मजबूत और बरकरार रखना चाहते हैं.
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अब भी चलती है हुड्डा की
हरियाणा में अब भी हुड्डा की चलती है. तभी तो उन्होंने अपने खेमे के उदयभान को हरियाणा कांग्रेस का अध्यक्ष बनवा लिया. हालांकि यह हुड्डा के साथ ही उदयभान के नेतृत्व की भी परीक्षा है. उनके प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद यह पहला बड़ा चुनाव है, जिसमें खुद हुड्डा की साख दांव पर लगी है. इस उपचुनाव की हार-जीत उदयभान की लीडरशिप को लेकर भी स्थिति स्पष्ट करेगी. इसीलिए हुड्डा के लिए भी यह चुनाव राजनीतिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है. अगर कांग्रेस के जयप्रकाश जीतते हैं तो यह हुड्डा के लिए एक तरह से राजनीतिक संजीवनी होगी.