नई दिल्लीः हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जज के तौर पर नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की ओर से भेजे गए नाम पर केंद्र सरकार की ओर से फैसला न होने पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की है. कोर्ट ने सरकार की खिंचाई करते हुए कहा कि इस तरह से नामों को रोका नहीं जा सकता. इन सिफारिशों को यूं ही पेंडिंग रखने की कोई वजह नजर नहीं आती. देरी के चलते कई बार अच्छे लोग खुद भी अपना नाम वापस ले लेते है, जिससे न्यायपालिका को नुकसान होता है. कोर्ट ने इस बारे में केंद्रीय विधि सचिव को नोटिस जारी कर स्पष्टिकरण मांगा है.


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याचिका में सरकार के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की मांग


सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट एसोशिएशन बंगलौर की ओर से दायर याचिका में कॉलेजियम की सिफारिशों पर सरकार की ओर से फैसला न लेने पर सवाल खड़ा किया था. आज जैसे ही ये मामला जस्टिस सजंय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने आया, याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील विकास सिंह ने कहा कि कॉलेजियम की ओर से जस्टिस दीपांकर दत्ता के नाम की सिफारिश भेजे 5 हफ्ते से ज्यादा का वक्त हो चुका है, पर अभी तक सरकार ने उस सिफारिश पर कोई फैसला नहीं लिया है. सरकार के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू होनी चाहिए. कोर्ट ने फिलहाल अवमानना का नोटिस तो जारी नहीं किया, पर विधि सचिव को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.


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सरकार की देरी के चलते न्यायपालिका को नुकसान


कोर्ट ने कहा कि अभी केंद्र सरकार के पास 11 नाम सिफारिश के लिए पेंडिंग है. इनमे से एक सिफारिश सितंबर 2021 में भेजी गई थी. 10 नाम ऐसे भी है, जिनकी सिफारिश सरकार ने दोबारा विचार के लिए सरकार के पास भेजी थी. कोर्ट ने कहा कि सरकार की ओर से फैसला लेने में होने वाली देरी के चलते ऐसे वकील जिनके नाम की सिफारिश कॉलेजियम जज के तौर पर नियुक्ति के लिए भेजता है, वो वकील खुद अपना नाम वापस ले लेते है. कई बार ऐसा हो चुका है कि अच्छे कानून के जानकार लोगों ने सरकार की सिफारिश पेंडिंग रहने के मद्देनजर नाम ही वापस ले लिया. इसका नुकसान न्यायपालिका को होता है, जो उनके अनुभव से वंचित रह जाती है. हम केंद्रीय विधि सचिव को नोटिस जारी कर रहे है.


क्या है कॉलेजियम सिस्टम?


आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट और राज्यों के हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट ने ही कॉलेजिम सिस्टम (collegium system) को बनाया गया था. इसमें सर्वोच्च न्यायालय के 4 जज शामिल होते हैं और CJI इसका नेतृत्व करते हैं. कॉलेजियम सिस्टम के द्वारा सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति और उनके तबादलें को लेकर निर्णय लिया जाता है. कॉलेजियम सिस्टम में संसद के अधिनियम या फिर सरकार के प्रावधान की कोई भूमिका नहीं होती है.


मगर कॉलेजियम सिस्टम के सदस्य जज नामों की सिफारिश के लिए प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पास भेजते हैं और उनकी मंजूरी मिलने के बाद जजों की नियुक्ति की जाती है.  साल 1990 में सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों के बाद यह व्यवस्था बनाई गई थी और साल 1993 से इसी नियम के जरिए उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति शुरू की गई.


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क्यों की जाती है इस प्रणाली की आलोचना?


बताते चले कि साल 1993 से पहले कॉलेजियम सिस्टम के बिना जजों की नियुक्ति की जाती थी. भारत के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श और केंद्रीय कानून मंत्रालय सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति करता था. मगर कुछ जजों की नियुक्ति को लेकर कुछ ऐसे मामले सामने आए, जिनकी सुनवाई के बाद कॉलेजियम सिस्टम को लागू किया गया. इसमें कोई सचिवायल और अधिकारिक तंत्र नहीं है और इस सिस्टम के तहत जजों नियुक्ति को लेकर फैसला बंद कमरे में किया जाता है. इसके बार में किसी को कोई जानकारी नहीं होती, इसी को लेकर केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने आपत्ति जताई है और इस प्रक्रिया में सरकार के दखल की बात कही है. मगर सुप्रीम कोर्ट इसे खारिज करता आ रहा है.


क्या तैयार है टकराव की स्थिति?


आपको बता दे कि सरकार ने कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना कर साफ कर दिया है कि वो जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया में शामिल होना चाहती है. तो वहीं, नए न्यायाधीश ने इसमें पारदर्शिता लाने की बात कहकर इसमें किसी भी तरह से बदलाव से इनकार कर दिया है. 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक आयोग को खारिज किया गया था तो काफी लंबी बहस चली थी, मगर एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच चकराव की स्थिति पैदा होती दिखाई दे रही है.