Delhi: जीते जी सजाया लोगों का घर-बार, मौत के बाद 4 लोगों को दिया जीवनदान
Advertisement

Delhi: जीते जी सजाया लोगों का घर-बार, मौत के बाद 4 लोगों को दिया जीवनदान

दिल्ली में इंटीरियर डिजाइनिंग का काम करने वाले 50 वर्षीय बिजेंद्र शर्मा, लोगों के घरों और ऑफिसों को सजाने के माहिर थे. उन्होंने अपने इस हुनर से एक-दो नहीं बल्कि कई जगहों पर इंटीरियर डिजाइनिंग का काम किया. जिसे उनके क्लाइंट द्वारा काफी पसंद भी किया गया.

Delhi: जीते जी सजाया लोगों का घर-बार, मौत के  बाद 4 लोगों को दिया जीवनदान

मुकेश सिंह/ नई दिल्ली: दिल्ली में इंटीरियर डिजाइनिंग का काम करने वाले 50 वर्षीय बिजेंद्र शर्मा, लोगों के घरों और ऑफिसों को सजाने के माहिर थे. उन्होंने अपने इस हुनर से एक-दो नहीं बल्कि कई जगहों पर इंटीरियर डिजाइनिंग का काम किया. जिसे उनके क्लाइंट द्वारा काफी पसंद भी किया गया. वहाँ पर उनका काम उनकी पहचान के रूप में दर्ज हो गया, लेकिन 30 जनवरी की रात काम से लौटने के दौरान फरीदाबाद में उनके साथ दर्दनाक सड़क हादसा हो गया. जिसके बाद उन्हें तुरंत ही फरीदाबाद में पास के एक अस्पताल ले जाया गया और फिर वहां से उन्हें एम्स ट्रॉमा सेंटर ले जाया गया. जहां लाईफ सपोर्ट सिस्टम पर उनकी सांसे तो चल रही थीं, लेकीन उनका ब्रेन डेड हो चुका था. वो एक ऐसी नींद में सो चुके थे, जिससे वो कभी जागने वाले नहीं थे. ऐसे में डॉक्टरों को विजेंद्र की हालत के बारे में उनके बेटे और रिश्तेदारों को समझाना एक चुनौती था.

लेकिन न सिर्फ विजेन्द्र के बेटे मिथलेश ने वास्तविकता को समझते हुए स्वीकारा, बल्कि एक ऐसा साहसी और समझदारी वाला फैसला लिया कि न सिर्फ उनके फैसले से डॉक्टर उनके कायल हो गए, बल्कि उससे कई जिंदगियां गुलजार तो हुई ही साथ ही कई परिवारों में खुशियां भी लौट आई.

ये भी पढ़ें: Ghaziabad: घरेलू कलह में पति ने पत्नी की हत्या कर शव को दफनाया और बो दिया बाजरा

 

मृतक विजेंद्र के बेटे मिथलेश ने बताया कि 31 जनवरी की सुबह वो अपने पिता को एम्स ट्रॉमा सेंटर लेकर पहुंचे थे. जहां सिर में लगी गंभीर चोट की वजह से डॉक्टरों ने उन्हें ब्रेन डेड घोषित कर दिया था. जिसके बाद उन्होंने अपने पिता के अंगों को दान करने का निर्णय लिया. आम तौरपर इस तरह की स्थिति में ऐसे कड़े फैसले लेना काफी कठिन होता है, लेकिन डॉक्टरों के बताने पर उन्होंने साहसी निर्णय लिया और अपने पिता के अंगों को दान किया. जिससे 4 जिंदगियों बची. इतना ही नहीं उनके पिता की आंखों को सुरक्षित एम्स के नेशनल आई बैंक में रखा गया है, जिससे भविष्य में कोई जरूरतमंद इंसान उनके पिता की आंखों से इस दुनिया को देख सकेगा।

दिल्ली ट्रैफिक पुलिस की सहायता से बनाए गए ग्रीन कॉरिडोर के माध्यम से अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती मरीजों को जिंदगी मिली है. हार्ट को फोर्टिस में भर्ती मरीज को लगाया गया, तो लीवर को आईएलबीएस में भर्ती मरीज को प्रत्यारोपित किया गया. वहीं दोनों किडनियों को एम्स और रिसर्च रेफरल अस्पताल में भर्ती मरीजों को प्रत्यारोपित कर उन्हें नहीं जिंदगी दी गई. इस तरह से उन्होंने अपने पिता की मौत के बाद भी उन्हें अलग-अलग लोगों में जिंदा रखकर एक अनोखी मिसाल पेश की है.

Trending news