Green Crackers: दिल्ली के प्रदूषण को देखते हुए दिल्ली सरकार ने पटाखों पर बैन लगा दिया है. दिवाली से पहले दिल्ली से सटे राज्यों में पराली जलाई जाती है जिसके चलते प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है. इसी को देखते हुए पटाखे बैन किए जाते हैं. पटाखें बैन तो हो जाते हैं, लेकिन इसके बावजूद भी खूब पटाखे छोड़े जाते हैं. जिनकी आवाज इतनी तेज होती है कि दिल का रोगी को इससे तकलीफ हो सकती है. इन्हीं पटाखों के बारे में हम आपको जानकारी देंगे कि आखिर सामान्य पटाखे और ग्रीन पटाखों में क्या अंतर होता है. 


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सामान्य पटाखें
पटाखे जलाने से बहुत प्रदूषण होता है. दिवाली पर जलाए गए पटाखों के कारण कई दिनों तक प्रयावरण में धुंआ-धुंआ देखने को मिलता है. सामान्य पटाखों को बनाने के लिए ज्यादा मात्रा सल्यफर का इस्तेमाल किया जाता है. इसके साथ ही रिड्यूसिंग एजेंट, ऑक्सीडाइजर, स्टेबलाइजर्स  और रंग मिलाए जाते हैं. जब इन पटाखों को जलाया जाता है तो इनमें से रंग-बिरंगी रोशनी होती हैं. इन रंगो को एंटीमोनी सल्फाइड, बेरियम नाइट्रेट, लिथियम, एल्यूमीनियम, तांबा और स्ट्रांशियम के मिश्रण से बनाया जाता हैं. इन पटाखों के जलने के बाद कई खतरनाक गैस निकलती हैं जो हवा में घुल जाती है. जिसकी वजह से हवा जहरीली हो जाती है. 


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ग्रीन पटाखे और सामान्य पटाखों में अंतर
ग्रीन पटाखों को इकोफ्रेंडली पटाखें माना जाता है.  इन पटाखों में सामान्य पटाखों की तरह सल्फाइड, बेरियम नाइट्रेट, लिथियम, एल्यूमीनियम का इस्तेमाल नहीं होता है. इनमें हानिकारक कैमिकल्स की मात्रा बहुत कम होती है, जिससे प्रदूषण कम होता है. ये पटाखें नॉर्मल पटाखों की तुलना में काफी छोटे होते हैं और इनमें से 110 से 125 डेसिबल तक की ही आवाज होती है. वहीं नॉर्मल पटाखों में 160 डेसिबल तक का ध्वनि प्रदूषण होता है. ग्रीन पटाखे सामान्य पटाखों की तुलना में थोड़े महंगे होते हैं. 


 ग्रीन पटाखों से कितना होता है प्रदूषण
पटाखों से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (NEERI) ने ऐसे पटाखों की खोज की जो बिल्कुल सामान्य पटाखों की तरह दिखते हैं. ग्रीन पटाखों से भी प्रदूषण होता है लेकिन सामान्य पटाखों की अंतर में कम होता है. इन ग्रीन पटाखों में  से 40-50 प्रतिशत तक कम जहरीली गैस निकलती है और कम हानिकारक भी होते हैं.