Delhi News: दिल्ली के बख्तावरपुर गांव में दीपक बेचने वाले लोग इस साल मायूस दिखे. कल दीपावली का महापर्व है, लेकिन अभीतक इनकी दुकानों पर रौनक नहीं बढ़ी है. दिल्ली से पहले मिट्टी के इन दीयों को खरीदने के लिए काफी कम ग्राहक दिख रहे हैं, जिस वजह से इसका कारोबार करने वाले लोग काफी परेशान है.


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मीट्टी के बर्तन बनाने वाले मजबूर
कल दीपावली का महापर्व है इस दीन लोग दीप जलाकर दीपावली के पर्व को हर्षोल्लाह के साथ मनाते हैं. दीप से दीप जलाने की काफी पुरानी परंपरा हमारे यहां चलती आई है, लेकिन धीरे-धीरे अब ये परंपरा खत्म होता हुआ नजर आ रहा है. आज दीपावली में दीप जलाने की परंपरा सिर्फ विधि के तौर पर रह गई है. ज्यादातर लोग अपने घर को रोशन करने के लिए एलइडी लाइट या डिजिटल लाइटों का इस्तेमाल करते हैं. दीपावली के पर्व से पहले प्रजापति समाज के लोग बेहद खुश होते हैं क्योंकि उन्हें उम्मीद होती है कि दीपावली के पर्व पर उनकी घर में छाई आर्थिक तंगी व कर्ज उतर सकेगा, लेकिन दीपावली के पर्व आने से पहले ही प्रदूषण दिल्ली में अपना कहर बरपाता है और सरकार तमाम बर्तन बनाने वाली भट्टियों को बैन कर देती है.


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कम बिकते हैं समान
मिट्टी के बर्तन बनाकर बेचने वाले एक दुकानदार का कहना है कि वह सिर्फ दीपावली में ही दीपक बनाने का काम करते हैं. ताकि परंपरा को जिंदा रखा जा सके. बाकी समय वो चाय बेचकर अपने घर का गुजारा करते हैं. इसके साथ ही एक दुकानदार ने बताया कि अब उन्हें कहीं भी मिट्टी के बर्तन बनाने की जगह नहीं मिल पाती. कुछ प्रजापति समाज के लोग समय से पहले बर्तन व दीपक और मिट्टी की मूर्तियां बनाकर तैयार कर लेते हैं फिर भी दीपावली पर जब दुकान लगाते हैं तो मार्केट में लोग मिट्टी के बर्तन कम खरीदते हैं और मिट्टी के दीप भी जरूरत के हिसाब से कम ही खरीदे जाते हैं.


स्वेदेशी नारा का नहीं दिखा असर
दिल्ली में मिट्टी के बर्तन व चिराग बेचने वाले दुकानदार मायूसी से अपनी दुकानों पर बैठे हुए हैं. क्योंकि उनकी दुकान पर कोई खरीदार नजर नहीं आ रहा है. हालांकि कल दिल्ली में बारिश हुई तो उसके चलते खरीदारी नहीं हुई और आज छोटी दीपावली है और कल बड़ी दीपावली है. इस दीपोत्सव पर स्वदेशी अपनाने के लिए लोग तैयार नहीं हैं. हालांकि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले ही लोगों से अपील कर चुके हैं कि ज्यादातर लोग स्वदेशी अपनाएं और भारत को आत्मनिर्भर बनाएं परंतु यह स्लोगन मिट्टी के बर्तन बेचने वाले दुकानदारों को देखकर लगता है कि सिर्फ सिमट कर रह गया है. फिलहाल जरूरत है इस दीपोत्सव पर भारतीय संस्कृति को बढ़ाते हुए सभी भारतीय दीप से दीप जलाकर बनाएं. ताकि भारतीय संस्कृति को संझौह के रखने वाले प्रजापति समाज का भी मनोबल बढे़ और देश की मिट्टी की सुगंध हर घर में महके.


INPUT- NASEEM AHMED