Pakistan से आई परंपरा को निभाने के बाद kaithal में किया जाता है Ravan Dahan
Dusshera 2022: कैथल में दशहरे का पर्व मनाने की अलग पर्था सामने आई है. जहां दशहरे के 40 दिन पहले से ही वहां के मूल निवासी हनुमान का स्वरूप धारण कर 40 दिन तक व्रत रखते हैं और आखिरी दिन दशहरे केा त्योहार मनाते हैं.
विपिन शर्मा/ हरियाणा: दशहरा उत्सव पर कैथल में एक खास तरह की परंपरा है. इस परंपरा के तहत कुछ युवक प्रभु हनुमान का स्वरूप अपने सीर पर धारण करते हैं और पूरे शहर में घूमते हैं. परंपरा के अनुसार जब तक यह स्वरूप अपनी गदा से रावण के शरीर पर वार नहीं करते तब तक यहां रावण दहन नहीं होता है.
पाकिस्तान से आई ये परंपरा
यह परंपरा भारत की आजादी के बाद पाकिस्तान में रहने वाले लोगों द्वारा कैथल में आई. मिली जानकारी के अनुसार भारत के विभाजन के बाद एक परीवार भारत लेकर आया था. बता दें कि जो लड़के हनुमान जी का स्वरुप धारण करते हैं वह 40 दिन का व्रत रखते हैं. घर से बाहर रहते हैं और जमीन पर सोते हैं केवल एक समय फल फ्रूट का सेवन करते हैं और 40 दिनों के बाद दशहरे के दिन इन सब स्वरूपों की पूजा अर्चना की जाती है.
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40 दिन के तप के बाद श्री हनुमान की शक्तियां होती हैं उजागर
इन स्वरूपों की लंबाई 3 फीट से लेकर 12 फीट तक होती है. ऐसा कहा जाता है कि यह काफी मेहनत और तप का काम है. लोगों की आस्था है कि 40 दिनों के तप के बाद भगवान हनुमान जी की शक्ति इन स्वरूपों में आ जाती है. दशहरे के दिन लोग इन स्वरूपों अपने घर में निमंत्रण देते हैं और मन्नतें मांगते हैं. इन लोगों का कहना है कि ऐसा करने से भगवान हनुमान सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं.
पानीपत में प्रचलित है यह परंपरा
यह स्वरूप केवल कैथल में ही प्रचलित नहीं है. इन स्वरूपों का निर्माण पानीपत में होता है. जो भी इन स्वरूपों का निर्माण करता है वह खुद भी 40 दिन का व्रत करता है और बड़ी शुद्धता के साथ इनको बनाया जाता है. यह स्वरूर हनुमान का मुकूट होता है. जिसको ये 40 दिन तक धारण करके रखते हैं. यह स्वरूप को धारण कर ढोल नगाड़ों के साथ नाचते हुए पूरे शहर में घूमते हैं और रावण दहन से पहले अपनी गदा से रावण के शरीर पर प्रहार करते है तब कैथल का रावण दहन होता है.